70 लाख की आबादी फूड सेफ्टी आफिसर दो

मंडी – आम जनता को बीमार होने पर सरकारी अस्पताल में बेहतर इलाज मिले, इसके लिए करोड़ों हैल्थ कवर के नाम पर सरकारें खर्च करती हैं, लेकिन बीमार होने से पहले जनता की सेहत का ख्याल ही नहीं रखा जा रहा। प्रिवेंटिव हैल्थ पर सरकारें कितनी सजग हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता जांचने के लिए 70 लाख की आबादी पर मात्र दो प्रहरी (फूड सेफ्टी अफसर) ही तैनात हैं। ये हालात हैं स्वास्थ्य विभाग के तहत आने वाले फूड सेफ्टी एंड रेगुलेशन की। फूड लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन से हर साल करोड़ों रुपए का राजस्व तो जुटाया जा रहा है, लेकिन लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन के बाद क्या बेचा जा रहा है, उसकी गुणवत्ता जांचने के लिए फूड सेफ्टी अफसर ही तैनात नहीं हैं। प्रदेश में मात्र दो फूड सेफ्टी अफसर (एफएसओ) ही सेवाएं दे रहे हैं। एफएसओ के न होने से फूड सैंपलिंग का काम ठप है। असिस्टेंट कमिश्नर भी फील्ड में जाकर खाद्य पदार्थ विक्रेताओं को नोटिस देकर ही काम चला रहे हैं। आपके घर तक जो राशन पहुंच रहा है, वह सही है या मिलावटी इसकी जांच ही नहीं हो पा रही। 2015 में फूड सेफ्टी अफसर प्रोमोट होकर असिस्टेंट कमिश्नर बने, लेकिन सरकारें एफएसओ पद पर भर्ती करना ही भूल गई। लंबे समय बाद 2017 में इन पदों के लिए भर्ती निकाली गई, जिसकी प्रक्रिया ही 2019 फरवरी तक चली, लेकिन 18 फरवरी, 2019 को क्वालिफिकेशन पूरी न होने पर सभी अभ्यर्थियों को अयोग्य करार दे दिया गया। अब आने वाले कितने और सालों तक हिमाचल को फूड सेफ्टी अफसर मिलेंगे, यह सबसे बड़ा सवाल है, लेकिन इतना साफ है फूड सेफ्टी के नाम पर प्रदेशवासियों की सेहत से खिलवाड़ हो रहा है।

दिल्ली में हो गई भर्ती

दिल्ली में भी एफएसओ के लिए कुछ समय पहले भर्ती निकाली गई थी, जिसमें हिमाचल की तरह आर एंड पी रूल्ज लिखे गए थे, लेकिन दिल्ली में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथारिटी की क्लेरिफिकेशन मिलने के बाद भर्ती कर दी गई, जबकि हिमाचल में सभी उम्मीदवार अयोग्य घोषित कर दिए गए।

न स्टाफ, न ही गाड़ी

वर्तमान में फूड सेफ्टी रेगुलेशन की हालत की इतनी खस्ता है कि एक असिस्टेंट कमिश्नर के सहारे ही पूरा जिला है। न तो फूड सेफ्टी अफसर हैं और न ही पर्याप्त स्टाफ। फील्ड इंस्पेक्शन के लिए गाड़ी तक नहीं है।