अप्पर में फंसी सेब की सेटिंग

By: Apr 21st, 2019 12:08 am

निचले इलाकों में मौसम ने साथ दिया, लेकिन अप्पर में बारिश-धुंध बिगाड़ रही खेल

दिव्य हिमाचल वेव टीवी के लिए अपनी माटी की टीम ने इस बार अप्पर शिमला में सेब की विस्तृत पड़ताल की। इस दौरान पता चला कि समुद्रतल से 2200 मीटर तक ऊंचाई वाले इलाकों में इस बार सेब की सेटिंग  प्रोपर हुई है, जबकि इससे ऊपर वाले इलाकों में फ्लावरिंग का काम चल ही रहा था कि बारिश और धुंध ने सारा खेल बिगाड़ दिया। ऐसे में यहां सेब की सेटिंग पर बुरा असर  पड़ सकता है

इस बार हिमाचल के ऊंचाई वाले इलाकों में सेब की सेटिंग अटक गई है। खासकर वे इलाके जो समुद्रतल से 2400 मीटर व उससे ज्यादा की ऊंचाई पर हैं। दिव्य हिमाचल वेब टीवी के लिए अपनी माटी की टीम ने इस बार अप्पर शिमला में इस मसले की विस्तृत पड़ताल की। इस दौरान पता चला कि समुद्रतल से 2200 मीटर तक ऊंचाई वाले इलाकों में इस बार सेब की सेटिंग प्रोपर हुई है, जबकि इससे ऊपर वाले इलाकों में फ्लावरिंग का काम चल ही रहा था कि बारिश और धुंध ने सारा खेल बिगाड़ दिया है। ऐसे में यहां सेब की सेटिंग पर बुरा असर पड़ सकता है। आलम यह रहा कि बारिश का एक ही स्पेल 50 घंटे से ज्यादा का रहा। इस बारिश ने सारा खेल बिगाड़ दिया है। इससे तापमान बुरी तरह से गिरा है, जबकि सेटिंग के लिए कम से कम 15 डिग्री तापमान जरूरी रहता है। बहरहाल सेब की बंपर फसल की उम्मीदें पाले बैठे बागबानों को गहरा झटका लग सकता है। गौर रहे कि प्रदेश में 44 करोड़ वाला बागबानी सेक्टर हिमाचल की दिशा और दशा तय करता है। इसमें सेब का सबसे अहम रोल रहता है।

– सुधीर शर्मा, मतियाना

 इस बार मौसम ने दिया साथ, स्टोन फ्रूट की बल्ले बल्ले

सेब का चाहे कु छ भी हो, लेकिन इस बार स्टोन फ्रू ट ही है। सेटिंग बेहतर होने से  पहले फू ल चुके नाशपाती, प्लंम, चैरी, आडू  आदि की बंपर फसल लगने की उम्मीद है। अप्पर शिमला की ही बात की जाए, तो फ्लावरिंग के समय नारकंडा, मतियाना सहित उंचाई वाले कुछ क्षेत्रों में बारिश व हल्की ओलावृष्टि हुई थी।

रसायनों के कम इस्तेमाल से निखरेगी खेती

जाने माने विशेषज्ञ हर्षवर्द्धन किक्केरी ने प्रदेश कृषि विवि में कृत्रिम प्रतिभा (आर्टिफिशियल इन्टैलिजैंस) व रोबोटिक्स के इस विषय पर विस्तृत व्याख्यान और वैज्ञानिकों व विद्यार्थियों के विभिन्न प्रश्नों के उतर दिए। श्री किक्केरी ने चेहरे की पहचान से लेकर स्वचालित रोबोट इत्यादि पर लगभग 44 पेटेन्ट पंजीकृत करवाएं हैं तथा विश्व के शीर्ष संस्थानों नासा, यूएसए में शोध कार्य करने के बाद अपने देश में वापस आए हैं। आर्टिफिशियल इन्टैलिजैंस का खाद्यान्न उत्पादन तक में महत्व बढ़ रहा है। उत्पादकता तथा दक्षता बढ़ाने के लिए कृषि उद्योगों में मशीनी बोध, वस्तु पहचान व भावी सूचक क्रियाओं व प्रतिमानों की स्थापना के लिए इन तकनीकों का प्रयोग हो रहा है। प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल ने कृषि में कृत्रिम प्रतिभा व रोबोटिक्स के महत्त्व तथा आवश्यकता पर बल दिया। कुलपति ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या के लिए भरपूर खाद्य उत्पादन तथा खेती में कम से कम रसायनों के प्रयोग, बिमारियों की तुरंत पहचान, जलवायु परिवर्तन व श्रम आपूर्ति के लिए मजदूरों की समस्या के विकल्प के लिए आर्टिफिशियल इन्टैलिजैंस आधारित तकनीकों का उपयोग एक महत्त्वपूर्ण  कदम साबित हो रहा है।

माटी के लाल

लक्की ने बागबानी की रेस में पीछे छोड़े बड़े बड़े

लोकिंदर चौहान फोन नं.  98161-12831

हिमाचल में अपनी मेहनत से मिट्टी को सोने में बदलने वाले एक से बढ़कर एक बागबान हैं। होनहार बागबानों के दम पर हिमाचल का लोहा पूरी दुनिया मान चुकी है। इन्हीं में से एक हैं शिमला जिला के लोकिंदर चौहान उर्फ लक्की।  लक्की अब तक कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में सम्मान पा चुके हैं। महज 30 साल के लक्की के पास आज दो हेक्टेयर भूमि में 5 हजार रूट स्टाक हैं, जिससे उनकी सालाना आय अभी 50 लाख रुपए के करीब हो रही है। उम्मीद है कि आने वाले पांच सालों में यह आय एक करोड़ रुपए से पार हो जाएगी। वह कहते हैं कि सात साल पहले उनकी इस भूमि में रायल डिलिशियस के 250 पौधे थे और बड़ी मेहनत करने के बाद डेढ़ लाख रुपए की कमाई होती थी। इसी बीच उन्होंने रूट स्टाक का बिजनेस अपनाया। बस फिर क्या था। आज वह प्रदेश के सबसे सफल बागबानों में से एक हैं।

नोट : हम कोई भी बिजनेस करते हैं वह हमें आसानी से नहीं मिलता, मेहनत रंग लाती है। थोड़ी सी मेहनत आगे चलकर खुशनुमा जीवन देती है।

– बृजेश फिस्टा, रोहड़ू

लंगड़ा आम चाहिए या फिर आम्रपाली

बेल सिंह के पास हर वैरायटी

बेल सिंह फोन नं.  96255-90500

आम्रपाली और लंगड़ा आम  जिनके लिए दुनिया दीवानी है, लेकिन हाइब्रिड के दौर में ये मिलती कहां है। कुछ ऐसी ही पड़ताल करते हुए अपनी माटी की टीम पहुंची ऊना जिला के गांव संजोट में। यहां पता चला कि प्रगतिशील बागबान बेल सिंह चौधरी की नर्सरी में आम्रपाली और लंगड़ा के अलावा कई किस्में हैं। यही नहीं, उनके पास महज एक वर्ष में फल देने वाले नींबू व आम के मदर प्लांट हैं। बेल सिंह ने बताया कि जब वह सेना में थे, तो एक बार अंडेमान निकोबार में अपने दौरे के दौरान उन्होंने वहां की बागबानी के गुर सीखे थे, उन्हीं पर वह आज भी काम कर रहे हैं। मौजूदा समय में उनके पास कुल 20000 पौधे हैं।

नोट : बेल सिंह का कहना है कि अगर आप कहीं जाकर कुछ सीखते हैं, तो उसका प्रयोग घर पर अवश्य करें आपको लाभ ही होगा हानि नहीं। बस जरूरत है धैर्य की।

– एमके जसवाल, ऊना

बेजोड़ है बनफशा

मंजू लता सिसोदिया सहायक प्राध्यापक वनस्पति विज्ञान, एमएलएसएम कालेज सुंदरनगर एवं भूतपूर्व सहायक प्राध्यापक वनस्पाति विज्ञान केंद्रीय विश्वविद्यालय वाराणासी

बनफशा को अनेक नामों से जाना जाता है। जैसे कि नील पुष्पा, बनफसा, सूक्ष्म पत्ता इत्यादि। इसका वानस्पातिक नाम बांदोला ओडोरेटा है। इसका पौधा लगभग 4-8 सेंटीमीटर होता है। यह सामन्यता कश्मीर और हिमालय की घाटियों में 5 से 6 हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है। इसका आयात ईरान में भी किया जाता है और वहां की बनफशा बहुत उत्तम की होती है।  इसके पत्ते हृदयकार, अंडाकार और नुकीले होते हैं। इसमें नीले- बैंगनी रंग के फूल गुच्छों में खिलते हैं, और वे सुगंधित होते हैं।

औषधीय गुण : बनफशा सर्दी-जुकाम, कफ में अत्यंत लाभकारी होता है। इसे उबाल कर इसका काढ़ा बनाया जाता है, जो सर्दी-जुकाम और कफ से निजात दिलाता है। यह हमारे शरीर में रक्त को शुद्ध करने में सहायक है और कई तरह के रक्त विकारों को ठीक करता है। यह शरीर में विभिन्न पुकार की गर्मी से पित्त को शांत रखता है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के कैंसर उपचार के लिए भी किया जाता है। इसके पत्ते और फूलों का उपयोग चाय बनाने के लिए भी किया जाता है। इसकी चाय बहुत गुणों से भरपूर रहती है। जैसे : कि विटामिन एसी,आयरन और कैल्शियम इसमें प्रचूर मात्रा में रहता है।

चैहड़ अखाड़ा… इनाम एक लाख

उमेश ने प्रीतपाल को दी फाइनल में मात

उत्तर भारत में अपनी खास पहचान बना चुके घुमारवीं के चैहड़ अखाड़े के महादंगल में मथुरा के उमेश पहलवान भारत केसरी बने। फाइनल में उमेश ने फगवाड़ा के प्रीतपाल पहलवान को हराकर खिताब हासिल किया। विजेता पहलवान को एक लाख रुपए व गुर्ज तथा उपविजेता को 75 हजार रुपए इनाम दिया। जबकि हिमाचल केसरी दिली के कृष्ण पहलवान बने। इस मौके पर महिला रेसलर ने भी दमखम दिखाया। दिली  के कृष्ण पहलवान हिमाचल केसरी के विजेता व अंबाला के नरेश पहलवान उपविजेता रहा। चैहड़ केसरी के खिताब को बागा के सुनील व घुमारवीं के निशांत के बीच मुकाबला बराबरी पर छूटा। इसके अलावा बड़े-बड़े नामी पहलवानों के बीच लाखों रुपए की बंधी कुश्तियां भी करवाई गई। दूरदराज क्षेत्रों से कुश्ती देखने के लिए पहुंचे लोगों ने छिंज का भरपूर लुत्फ  उठाया। घुमारवीं के चैहड़ अखाड़े में 9वां भारत केसरी महादंगल का आयोजन किया। इसमें देशभर के नामी पहलवान माटी के अखाड़े में उतरे। महादंगल के शुभारंभ समारोह में पूर्व बीडीसी एवं समाजसेवी कमलदेव राव ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। जबकि शुभारंभ कार्यक्रम की अध्यक्षता नगर परिषद की उपाध्यक्ष रीता सहगल ने की। सुबह कोर्ट रोड से लेकर कुश्ती स्थल तक शोभायात्रा निकाली। समापन अवसर पर हिमाचल प्रदेश कुश्ती संघ के प्रधान चंद्र मोहन शर्मा ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। जबकि समापन समारोह की अध्यक्षता खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के पूर्व निदेशक विक्रम शर्मा ने की। मुख्यातिथि ने छिंज के विजेता व उपविजेता पहलवानों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। कमेटी ने इस साल कुश्ती प्रेमियों के लिए मनोरंज की भी व्यवस्था की थी। महिला मंडल की कलाकारों ने लोकनृत्य प्रस्तुत कर लोगों का मनोरंजन किया। इस मौके पर विधायक राजेंद्र गर्ग,  पूर्व विधायक राजेश धर्माणी सहित काफी संख्या में लोगों ने भाग लेकर छिंज का लुत्फ  उठाया।

राजकुमार सेन, घुमारवीं

शिमला, सोलन, सिरमौर व बिलासपुर जिलों के किसान यहां दें ध्यान

पिछले सप्ताह का मौसम : पिछले सप्ताह सभी जिलों में मौसम शुष्क रहा। दिन व रात का तापमान सामान्य से कम रहा।

आने वाले पांच दिनों के मौसम का पूर्वानुमान : अगले पांच दिनों में मौसम परिवर्तनशील रहने, बीच-बीच में हल्के  बादलों के  साथ मध्यम हवा चलने हल्की वर्षा होने की संभावना है। दिन व रात के  तापमान में 1-2 डिग्री सैल्यिस की बढ़ोतरी होने की संभावना है। हवा की गति दक्षिण-पूर्व दिशा से 7 से 9 किमी. प्रति घंटा चलने तथा औसतन सापेक्षित आर्द्रता 20-62 प्रतिशत तक रहने की संभावना है।

सप्ताहिक कृषि कार्यः

बागवानी संबंधित कार्यः गुठलीदार फलों में मैन्कोजैब या कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 600 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। सेब में हरी पंखुड़ी से गुलाबी कली की अवस्था में बोरिक एसिड 100 प्रति 100 लीटर पानी तथा यूरिया 500 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी का छिड़काव करें। सेब में कॉलर रोग, सड़न रोग, डाईबैक रोग से बचाने के लिए कॉपर आक्सीक्लोराईड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

किसान बागबानों के सवाल

*  इस मौसम में कौन से फूल लगाएं?

* हिमाचल में चंदन के पौधे कहां  मिलते हैं?

*  चूल्हे की राख को खेतों में डालने से क्या फायदा होता है?

*  प्रदेश में  जब जीरो बजट खेती कर रहे हैं, तो  डिपुओं में खाद क्यों?

चौपाल में ओलों की मार

ओलावृष्टि से चौपाल के कई क्षेत्रों में सेब की फसल को भारी नुकसान हुआ है। वहीं सोमवार को हुई बारिश से ऊपरी शिमला के कई स्थानों पर सेब के पेड़ों में खिले फूल झड़ गए हैं। बागबानी विशेषज्ञों की मानें तो सेब के पौधों में फ्लावरिंग के दौरान तापमान सामान्य बना रहना जरूरी है। इस दौरान बारिश व तापमान लुढ़कने से सेब के पौधों में फूल से फल की प्रक्रिया को गति नहीं मिलती है।

बारिश से खेतों में बिछी गेहूं

हिमाचल के मैदानी इलाकों में लंबे ड्राई स्पेल के बाद बारिश हुई। शुरुआती चरण में किसान खुश थे, लेकिन जब बारिश के साथ तूफान चला, तो सारी गेहूं खेतों में बिछ गई। ऐसे में कल तक खुद को बंपर होने का दावा कर लहलहा रही गेहूं अब औंधे मुंह गिरी है। इससे लाखों किसानों में मायूसी का आलम है। ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, कांगड़ा, चंबा और सोलन सिरमौर का शायद ही कोई इलाका हो,जहां बारिश की मार गेहूं पर न पड़ी हो।

आप सवाल करो, मिलेगा हर जवाब

आप हमें व्हाट्सऐप पर खेती-बागबानी से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी भेज सकते हैं। किसान-बागबानों के अलावा अगर आप पावर टिल्लर-वीडर विक्रेता हैं या फिर बीज विक्रेता हैं,तो हमसे किसी भी तरह की समस्या शेयर कर सकते हैं।  आपके पास नर्सरी या बागीचा है,तो उससे जुड़ी हर सफलता या समस्या हमसे साझा करें। यही नहीं, कृषि विभाग और सरकार से किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा तो हमें नीचे दिए नंबरों पर मैसेज और फोन करके बताएं। आपकी हर बात को सरकार और लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।

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