अमरीकन कंपनियों का चीन से मोहभंग

By: Apr 29th, 2019 12:02 am

पड़ोसी मुल्क से कारोबार समेटकर भारत में मैन्युफेक्चरिंग यूनिट लगाएंगे 200 इदारे

नई दिल्ली -अमरीकन कंपनियों का चीन से मोहभंग होने लगा है। दिलचस्प बात यह है कि अब उनकी पसंद भारत है। लोकसभा चुनाव के बाद 200 अमरीकन कंपनियां चीन से बोरिया बिस्तर समेटकर भारत शिफ्ट हो सकती हैं। अमरीकी बेस्ड एक एडवोकेसी ग्रुप ने यहां तक कहा है कि कम्युनिस्ट दिग्गज से निपटने के लिए यह एक अच्छा मौका है कि हम भारत में अपनी मैन्युफेक्चिरिंग यूनिट स्थापित करें। यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक एंड पार्टनरशिप फोरम (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कहा कि कई अमरीकन कंपनियां भारत में निवेश करके चीन का विकल्प स्थापित करने के उपाय पूछ रही हैं। वजह है भारत में जारी आर्थिक सुधार, बढ़ती पारदर्शिता और कानूनी जटिलताओं को कम हो जाना। इससे अमरीकन कंपनियों की रुचि भारत में बढ़ गई है। यही नहीं, नई सरकार के गठन के बाद कंपनियां तेजी से भारत में शिफ्ट होंगी। हालांकि यूएसआईएसपीएफ सुधारों में तेजी लाने और निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की सिफारिश अहम होगी। अघी के मुताबिक पिछले 12 से 18 महीनों में वे हम देख रहे हैं कि अमरीकी कंपनियां ई-कॉमर्स या डेटा के स्टोरेज आदि पर अहम फैसले रही हैं। यह उनका भारत की तरफ बढ़ता कदम है।  भारत भी चीन से आने वाले सस्ते सामान से परेशान है। यदि भारत में ही बड़े पैमाने पर यूनिट खुलेंगी और यहीं पर सामान सस्ता बनने लगेगा तो चीन से आयात अपने आप कम हो जाएगा। इसके लिए भारत और अमरीका के बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के बारे में सोचना चाहिए। एफटीए से भारत और अमरीका की एक-दूसरे के बाजारों पर सीधी पहुंच बन जाएगी। अमरीका के जनरलाइज सिस्टम ऑफ प्रीफ्रेंस का मुद्दा भी सुलझ जाएगा।  अघी ने बताया कि सिस्को में वरिष्ठ उपाध्यक्ष जॉन केर्न के नेतृत्व में सदस्य कंपनियों के भीतर एक उच्च-स्तरीय विनिर्माण परिषद का गठन किया है। परिषद ऐसा दस्तावेज बना रही है, जिससे  भारत को विनिर्माण हब में बदलने में मदद मिलें। इसके लिए चुनाव तक की डेडलाइन रखी गई है।

चार साल में 50 बिलियन डालर का निवेश

इतनी सारी कंपनियों के भारत शिफ्ट होने के दावे पर कई सवाल भी हैं। इतना निवेश कैसे आएगी और चीन का नुकसान भारत कैसे पूरा कर पाएगा। इस पर यूएसआईएसपीएफ का कहना है कि पिछले चार साल में उनकी सदस्य कंपनियों ने 50 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक का निवेश किया है। यही  नहीं भारत एक बड़ा बाजार है। यहां निवेश करके माल भी खपाया जा सकता है। भारत में सामान बनने से उसकी लागत कम होगी और भारतीय लोगों के लिए अफोर्डेबल होगी।

 


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