इस साल 57 हजार करोड़ होगा कर्ज

वित्त वर्ष में 5000 करोड़ बढ़ी लोन की लिमिट, अभी 52 हजार करोड़ पहुंचा आंकड़ा

 शिमला —हिमाचल प्रदेश पर इस वित्त वर्ष के अंत तक 57 हजार करोड़ रुपए का कर्ज हो सकता है। अभी प्रदेश का कर्ज 52 हजार करोड़ तक पहुंचा है। सूत्रों के अनुसार प्रदेश सरकार की लोन की लिमिट बढ़ गई है, जो कि अब पांच हजार करोड़ तक पहुंची है। बताया जा रहा है कि नियमों के अनुसार कुल जीडीपी का तीन फीसदी लोन हर साल सरकार ले सकती है और हिमाचल की सरकार उसी आधार पर चल रही है। क्योंकि प्रदेश की अपनी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, इसलिए सरकार लगातार लोन लेकर अपना काम चलाती है। खुद मुख्यमंत्री बोल चुके हैं कि बिना लोन के सरकार नहीं चल सकती। यहां तक कि लोन लेने को लेकर महालेखाकार हर साल टिप्पणियां करते हैं और इस पर खासा ऐतराज जताया जाता है, परंतु यहां बिना लोन के काम नहीं चल सकता और इस वित्त वर्ष के अंत तक सरकार को पांच हजार करोड़ रुपए का लोन लेने की छूट रहेगी। वर्तमान में 52 हजार करोड़ रुपए के कर्ज बोझ से तले दबा हिमाचल पांच हजार करोड़ रुपए की लोन लिमिट को पूरा करता है तो प्रदेश का कर्ज 57 हजार करोड़ तक पहुंच जाएगा। इसके विपरीत संसाधन जुटाने के लिए यहां पर एकमात्र बड़ा विकल्प टैक्स कलेक्शन का है, परंतु जीएसटी लागू होने के बाद हिमाचल जैसे छोटे राज्य को उसमें भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। पिछले वित्त वर्ष में भी प्रदेश को जीएसटी में उतना लाभ नहीं मिला है, जितना मिलना चाहिए था। वहीं, 2022 के बाद रही सही कसर भी पूरी हो जाएगी। प्रदेश सरकार को विकल्पों पर काम करने की जरूरत है। इसमें कुछ प्रयास किए गए हैं, परंतु वे नाकाफी हैं। यहां पर संसाधन काफी हैं, लेकिन सरकारें उन्हें भुना नहीं पाई हैं और केवल कर्ज से ही काम चलाया जा रहा है। वर्तमान सरकार ने टूरिज्म के क्षेत्र में संसाधन जुटाने की सोची है, लेकिन अभी तक उसके नतीजे सामने नहीं आ सके हैं। इसी तरह से यहां खनिज से भी कमाई करने पर जोर दिया जा रहा है। बताया जाता है कि इससे 200 करोड़ की अतिरिक्त कमाई का लक्ष्य सरकार ने रखा है। वहीं, आबकारी करों से भी अतिरिक्त आय कमाने का लक्ष्य है।

नए प्रोजेक्ट्स पर नहीं बनी बात

प्रदेश सरकार के पास ऊर्जा दोहन का एक बड़ा विकल्प है, परंतु यहां पर नए प्रोजेक्ट लेने के लिए कोई नहीं आ रहा, वहीं पुराने कई प्रोेजेक्टों पर काम ही शुरू नहीं हो पाया है। वर्तमान सरकार के कार्यकाल में निजी क्षेत्र में कोई नई बड़ी परियोजना शुरू नहीं हो सकी है। ऐसे में सरकार किस तरह से अपने स्तर पर संसाधन जुटाएगी, यह सोचने वाली बात है।