उमेद सिंह का विवाह जसरोटा की राजकुमारी से हुआ

By: Apr 17th, 2019 12:03 am

उमेद सिंह भागने में सफल नहीं हो सका और पकड़ कर सूबेदार के समक्ष लाया गया। नवाब ने सारी बातों की खोज करवाई। इससे उसे पता चला कि चंबा की गद्दी का वास्तविक अधिकारी उमेद सिंह ही है। सूबेदार ने उसे चंबा का राजा घोषित करके प्रमाण पत्र दिया और साथ में एक सेना की टुकड़ी भी दी, जिसकी सहायता से उसने अपने राज्य को अपने हाथ में ले लिया…

गतांक से आगे …

दलेल सिंह (1735 ई.) ः जब दलेल सिंह गद्दी पर बैठा तो उसे भी उगर सिंह के दो पुत्रों उमेद सिंह और शेर सिंह का भय हो गया। अतः उसने लाहौर के सूबेदार से मिलकर उन्हें पकड़वा दिया और लाहौर मंे बंदी बनवा दिया। उसने उन लोगों को भी इनाम दिया जिन लोगों ने उसकी राजा बनने मंे सहायता की थी। उसने कई कर भी लेने बंद कर दिए। उमेद सिंह का लाहौर कैद में रहते-रहते 13 वर्ष हो गए थे, परंतु चंबा में उसके भी कई चाहने वाले थे। इनमें उसका एक सेवक भी था। उसने एक दिन उमेद सिंह को अपने वस्त्र पहनाकर किसी प्रकार कैद से बाहर निकाल दिया। स्वयं उसने उमेद सिंह के वस्त्र पहन लिए।

जब यह पता दारोगा को लगा तो उसने उस सेवक को पकड़ कर सूबेदार के सम्मुख प्रस्तुत किया। सूबेदार ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा। सेवक ने उत्तर दिया कि उमेद सिंह उसका स्वामी है। उसने जो कार्य किया वह केवल अपने स्वामी को बचाने के उद्देश्य से किया है, भले ही उसके प्राण निकल जाएं। सूबेदार उसकी स्वामीभक्ति से प्रसन्न हुआ और उसने सेवक को इनाम देकर कैद के बंधन से मुक्त कर दिया।

उमेद सिंह भागने में सफल नहीं हो सका और पकड़ कर सूबेदार के समक्ष लाया गया। नवाब ने सारी बातों की खोज करवाई। इससे उसे पता चला कि चंबा की गद्दी का वास्तविक अधिकारी उमेद सिंह ही है। सूबेदार ने उसे चंबा का राजा घोषित करके प्रमाण पत्र दिया और साथ में एक सेना की टुकड़ी भी दी, जिसकी सहायता से उसने अपने राज्य को अपने हाथ में ले लिया। उमेद सिंह का विवाह जसरोटा की राजकुमारी से हुआ था। अतः वह जसरोटा और बसौली होता हुआ चंबा की ओर बढ़ा। इन राजाओं ने भी उसकी सहायता की। दलेल सिंह से सहानुभूति रखने वालों ने उससे कहा कि वह तैयारी करके बढ़ती सेना का मुकाबला करे, परंतु उसने ऐसा करने से इंकार किया और कहा कि राज्य का असली हकदार उमेद सिंह ही है। अतः वह चंबा नगर में ही रहा।

जब उमेद सिंह वहां पहंुचा तो दलेल सिंह ने उसके समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। उमेद सिंह ने उसके साथ अच्छा व्यवहार किया। कुछ समय तक तो वह चंबा में ही रहा, परंतु बाद में साधु बन गया और उसकी मृत्यु ज्वालामुखी में हुई।

मुगल दरबार से जो नादौन की जागीर राजा पृथ्वी सिंह को मिली थी, बाद हमें राजा उगर सिंह की नीतियों के कारण उससे वापस ले ली गई। इसके बदले में पंजाब के सूबेदार जकारिया खां ने दिल्ली के शाह मोहम्मद शाह के मुहर लगाकर दलेल सिंह को 1744 ई. में कांगड़ा में पठियार की 9500 रुपए मालिये की जागीर प्रदान की।


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