एक साथ पहुंचे तीन देवताओं के रथ

देव कपल गहरी-सिल्हधार गहरी व सूत्रधारी ब्रह्मा के आते ही देवध्वनियों से गूंज उठा पद्धर

पद्धर—जिला स्तरीय किसान मेला पद्धर में क्षेत्र भर से आए लगभग दो दर्जन देवता और उनके साथ आए सैकड़ों देवलु मेले की शोभा को चार चांद लगाए हुए हैं। हस्तपुर चौहारघाटी (हस्तिनापुर) से मेला में पहली बार आए देव कपल गहरी और सिल्हधार गहरी मेले की विशेष शोभा बने हुए हैं। इन दोनों देवताओं का बड़ादेव सूत्रधारी ब्रह्मा ने अपने प्राचीन मंदिर में स्वागत किया, जिस कारण इस बार देव शुभारंभ में देरी का सामना करना पड़ा। तीनों देवताओं के रथ एक साथ बाद में मेले में पहुंचे। एक साथ आए तीनों देवताओं के दर्शन कर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने स्वयं को धन्य किया। किसान मेला पद्धर में पहली बार देवताओं के आगमन संख्या बढ़ी है। पिछले मेले में करीब अठारह देवी-देवताओं ने मेले में शिरकत की थी। इस बार देवताओं की संख्या 15 पहुंच गई है। किसान मेला पद्धर बड़ादेयो सूत्रधारी ब्रह्मा को समर्पित है। मेले की जलेब में फिलहाल देव सूत्रधारी ब्रह्मा आगे चलते हैं। इस बार भी देव सूत्रधारी ब्रह्मा ने ही जलेब की अगवाई की। मेहमान देवताओं को जलेब में सर्वोच्च स्थान देवताओं की इच्छानुसार दिया गया। मेले में चौहारघाटी के प्रमुख देवता शामिल होते हैं तो उन्हें भी प्रथम पंक्ति में मंडी शिवरात्रि की तर्ज पर स्थान मिलेगा। इस बार मेले में बड़ादेयो सूत्रधारी ब्रह्मा जलेब में सबसे आगे चले, जो जोगिंद्रनगर मेले में तीसरे स्थान पर चलते हैं। मेहमान देवताओं के रूप में चौहार के कपलधार गहरी और देव सिल्हधार गहरी के रथ देव गहरी गरलोग के पीछे चले। इनके अलावा मेले में माता नौणी भगवती पूंदल, देव गहरी सियुन, देव माहूंनाग फागणी सनोहल, देव अगिनपाल कतीउर टीला कुन्नु, देव गहरी गरलोग, माता जालपा भगवती सरौण, देव पाईंदल ऋषि डोलरा, माता चामुंडा भगवती द्रंग, देव पाईंदल ऋषि द्रंग सिरा सिलग, माता भद्राकाली पद्धर, माता जालपा भगवती बसेहड़, माता देवी नव दुर्गा बसेहड़, देव पाईंदल ऋषि बसेहड़, देव काली नारायण माणा, माता चतुर्भुजा पाली, माता कामाख्या बाड़ी, देव शंकर भगवान कुन्नु, माता संतोषी स्नेड, माता नैणा भगवती द्रंग, माता कोयला द्रंग, देव झुगडू़ डलाह पधारे हैं। देव कारदार कमेटी के अध्यक्ष लेख राम ठाकुर ने कहा कि मेले में सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए थे। चौहारघाटी के कुछ प्रमुख देवता अभी मेले में नहीं पहुंच पा रहे हैं, शायद इसके पीछे कुछ देव परंपराएं बाधा बनी हैं। आने वाले समय में इस पर विचार किया जाएगा और देव समाज के लोगों के सहयोग से निर्धारित किया जाएगा कि सभी देवतागण मेले में आएं और मेले की शोभा बढ़ाएं।