खराब सड़कों पर प्रत्याशियों का भाग्य
चुनावी मौसम में खस्ताहाल मार्गों पर जवाब मांग रही जनता, फोरलेन पर हो रहा वार
शिमला —सड़कों की खस्ता हालत भी इस लोकसभा चुनाव का अहम मुद्दा है। कांगड़ा जिला में लोगों ने सड़क नहीं तो वोट नहीं का एक नारा दिया है, जिसके बाद प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों के लोग भी सड़क निर्माण और सड़कों की खस्ता स्थिति को लेकर बात कर रहे हैं। सड़कें, पहाड़ी राज्य की भाग्य रेखाएं हैं और बिना सड़कों के यहां पर विकास संभव नहीं। स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की देन प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना ने हिमाचल की तस्वीर बदल दी है, लेकिन उस रफ्तार को कायम रखने और बनी हुई सड़कों की स्थिति को दुरूस्त रखने में आगे कितना काम हो सका, इस पर सवाल हैं। सड़कों के निर्माण में केंद्र सरकार की अहम भूमिका वर्तमान में दिखाई देती है। केन्द्र सरकार ने यहां सड़कों को पैसा भी खूब दिया और राज्य में 69 एनएच के निर्माण का वादा भी किया गया, परंतु इस पर विधानसभा चुनाव से लेकर आज तक राजनीति ही हो रही है। शिमला संसदीय क्षेत्र की बात करें तो यहां पर ऊपरी शिमला को जोड़ने वाली ठियोग-रोहडू-हाटकोटी सड़क आज भी चुनावी मुद्दा बनी हुई है। इसी तरह से कालका से शिमला के फोरलेन का भी अहम मुद्दा है, जिस पर सालों से काम चल रहा है लेकिन किसी अंजाम तक नहीं पहुंच पा रहा। आए दिन वहां मलबा गिर जाता है और सड़क की हालत खराब हो जाती है। इस फोरलेन के तहत अब सोलन से शिमला की ओर भी काम चल पड़ा है, लेकिन इस पूरे फोरलेन का काम कब तक पूरा होगा यह किसी को पता नहीं। सिरमौर जिला में ग्रामीण सड़कों की खस्ता स्थिति भी वहां चुनावी मुद्दा है। इस आधारभूत सुविधा को लेकर विपक्ष लगातार पलटवार कर रहा है। हालांकि कांगे्रस सालों तक यहां पर सत्ता में रही है और तब उसे इस दिशा में काम करना चाहिए था, जिस पर जवाब मांगा जा रहा है, परंतु दुखद यह है कि चुनावी समय में तो वादे होते हैं, मगर बाद में इनको पूरा न करके अगले चुनाव के लिए भी यह मुद्दा कायम रहता है।
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