नजर-ए-इनायत को तरस रही कांगड़ा चाय

By: Apr 29th, 2019 12:05 am

पालमपुर—खास महक और जायके के लिए जानी जाती कांगड़ा चाय सरकार की नजर-ए-इनायत को तरस रही है। चाय बागानों का रकबा पिछले समय के दौरान काफी कम हुआ है, जिसका सीधा-सीधा असर चाय उत्पादन पर पड़ा है। इतना जरूर है कि कुछ चाय उत्पादक कांगड़ा चाय का रुतबा बरकरार रखने का प्रयास कर रहे हैं। बतौर वाणिच्य संबंधी स्थायी समिति अध्यक्ष सांसद शांता कुमार ने चाय को राष्ट्रीय पेय का दर्जा दिलवाने के प्रयास किए थे। वहीं, टी-टूरिज्म को लेकर भी चर्चा होती रही है। देश के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में चाय का सेवन करने वालों का आंकड़ा 96 प्रतिशत से लेकर 99 प्रतिशत तक है, इन आंकड़ों को ध्यान में रखकर समिति ने चाय को राष्ट्रीय पेय घोषित करने की सिफारिश की थी। चाय उद्योग कठिन दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में है, जहां और कोई अन्य उद्योग नहीं हो सकता। चाय उद्योग इन क्षेत्रों की गरीब पिछड़ी आबादी विशेषकर महिलाओं के रोजगार का साधन है। शांता कुमार की अध्यक्षता में संसदीय स्थायी समिति ने चाय तथा कॉफी उत्पादन क्षेत्रों का दौरा कर चाय व कॉफी उत्पादकों की समस्याओं का आकलन किया था। इनको आधार बनाकर समिति ने हिमाचल व असम सहित अन्य चाय उत्पादन करने वाले प्रदेशों के छोटे चाय उत्पादकों व कॉफी उत्पादकों की समस्याओं को जानकार सौ से अधिक सिफारिशें सरकार को दी थी। समिति ने हिमाचल प्रदेश में चाय उत्पादन क्षेत्र 2300 हेक्टेयर से घट कर 1100 हेक्टेयर होने पर भी चिंता व्यक्त की थी।

यह थी प्रमुख सिफारिशें

समिति ने जैविक चाय के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार से प्रशिक्षण के अतिरिक्त विशेष प्रोत्साहन देने की सिफारिश करने के साथ देश में कॉफी के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कॉफी बोर्ड की गतिविधियों को सुदृढ़ करने और कॉफी के पुनर्रोपण योजना पर सबसिडी दर 50 प्रतिशत बढ़ाने का भी सुझाव दिया था। इसके साथ ही समिति ने कॉफी बागानों में मजदूरों की कमी को पूरा करने के लिए मनरेगा योजना के पुर्नयुक्तिकरण की भी सिफारिश की थी।

क्या हैं हालात

असम, बंगाल जैसे प्रदेशों में जहां चाय बागानों का रकबा दो हजार से पांच हजार हेक्टेयर तक है वहीं प्रदेश में चाय बागान 100 से 150 हेक्टेयर तक सिमटे पड़े हैं। सौ हेक्टेयर से कम क्षेत्र के चाय बागानों का भी अच्छा खासा नंबर है। दूसरे प्रदेशों में बड़े चाय बागान मालिकों को सबसे बड़ा लाभ यह रहता है कि उनका यहां सही दाम में लेबर पूरा साल उपलब्ध रहती है। छोटे चाय बागान होने से पूरा साल लेबर नहीं रख सकते और कुछ समय के लिए आने वाली लेबर काफी अधिक दाम वसूलती है। आंकड़े बताते हैं कि इस समय देश में जहां परमानेंट लेबर की संख्या 12 लाख के आसपास है वहीं, प्रदेश में यह आंकड़ा मात्र पांच दर्जन तक सिमटा है। प्रदेश में इस समय बड़े चाय बागान मालिकों की संख्या मात्र डेढ़ दर्जन के करीब है, जिनके पास दस हेक्टेयर से अधिक रकबे में चाय बागान हैं। लगभगभ तीन दर्जन चाय बागान एक से दस हेक्टेयर क्षेत्र में हैं, जबकि एक हेक्टेयर से कम बागान रखने वालों की संख्या पांच हजार है।


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