बंजर जमीन पर महकी कॉफी

By: Apr 7th, 2019 12:08 am

धर्मशाला के एक्सीलेंस अवार्डी परिवार ने माटी को तराशकर बनाया सोना, कॉफी की फसल उगाकर हजारों किसानों को दिखाई कामयाबी की राह

हिमाचल में ऐसे हजारों किसान हैं,जो बंजर जमीन पर कुछ भी नहीं उगाते हैं। तो ऐसे किसान भाइयों के लिए एक बड़ी उम्मीद बनकर उभरा है कांगड़ा जिला का नामी प्रगतिशील किसान परिवार। जिला मुख्यालय धर्मशाला से सटी चैतड़ू पंचायत के बनवाला गांव में ‘दिव्य हिमाचल’ एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित दिवंगत विधि सिंह दरिद्र का परिवार आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। समय- समय पर किसानों को कामयाबी की राह दिखाने वाले इस परिवार ने इस बार बंजर जमीन पर कॉफी के साढ़े चार सौ पौधे तैयार किए हैं, जिन पर फसल भी खूब हो रही है। पौधों की देखरेख करने वाले उनके बेटों संतोष कुमार (94181-12146) और जितेंद्र (94181-47500) ने बताया कि तीसरे साल कॉफी के पौधे फसल देना शुरू कर देते हैं। स्व. विधि सिंह के बेटे जितेंद्र सिंह ने बताया कि कॉफी ने फल देना शुरू कर दिया है। हालांकि बंदरों का इसमें काफी प्रकोप रहता है। इसे बंदरों से बचाना पड़ता है। दूसरी ओर टेक्निकल टी आफिसर ने बताया कि बगली क्षेत्र में कॉफी के बूटे दिए गए थे,जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।  किसानों को लगातार जागरूक किया जा रहा है। दूसरी ओर विधि सिंह के दूसरे बेटे संतोष ने बताया कि समय समय पर देखरेख करने से कॉफी की बेहतर फसल हुई है। गौर रहे कि यह परिवार न्यू होप नर्सरी चला रहा है। नर्सरी में नए-नए प्रयोग किए जाते हैं। इससे सैकड़ों किसानों को इस परिवार के जरिए लाभ पहुंच रहा है।

टिप्सः कृषि धन की वर्षा करने वाला साधन है बस एक बार दिल लगाकर इस ओर जाने की जरूरत है। ऐसा नहीं कि एक बार खेत में बीज लगा दिए फिर मुड़ कर देखें ही नहीं। तो हानि ही होगी फायदा नहीं और मैं युवाओं से यही कहना चाहूंगा कि अपनी बंजर जमीन को हरा बनाओ लाभ ही लाभ है नुकसान नहीं।

– विमुक्त शर्मा, गगल, जयदीप रिहान, पालमपुर

सोने से कम नहीं है गुच्छी

मौसम खुलते ही लोगों ने वनों का रुख कर लिया है और ये लोग वनों में किसी मौज मस्ती के लिए नहीं बल्कि अपनी रोजी रोटी के लिए जा रहे हैं। जी हां ऊपरी शिमला के देवदार के घने जंगलों में महंगी वनस्पति गुच्छी का सीजन शुरू हो चुका है। बता दें कि प्रदेश के ऊपरी इलाकों में देवदार के जंगलों में कुदरती रूप से उगने वाली गुच्छी का प्रयोग जहां पांच सितारा होटलों में विशेष प्रकार के व्यंजन बनाने में होता है वहीं इसका इस्तेमाल कई प्रकार की महंगी औषधियों में भी इस्तेमाल होता है जिस वजह से इसके दाम भी काफी ऊंचे रहते हैं। गुच्छी आमतौर पर पांच -छह हजार से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में वनों में उगती है। गुच्छी के उगने की जो धारणा लोगों में है वह भी कम दिलचस्प नहीं हैं। ऐसी धारणा है कि सर्दियों में बर्फबारी के बाद जब बर्फ  पिघलनी शुरू होती है उस समय के दौरान आसमान में बादल घिरने पर जो गर्जना होती है उसी से गुच्छी उगती है। इस साल तो गुच्छी के लिए मौसम शुरू से ही अनुकूल बना हुआ है। पहले जनवरी और फरवरी में भारी बर्फबारी हुई उसके बाद मार्च माह में बारिश के साथ-साथ बादलों की गर्जना भी खूब हुई। लिहाजा इस साल जंगली सोने यानी गुच्छी की खूब पैदावार की उम्मीद की जा रही है। गुच्छी दाम सोने से कहीं कम नहीं हैं। बीते कुछ सालों पर नजर दौड़ाई जाए तो गुच्छी के दाम आठ हजार रुपए प्रति किलो से पंद्रह हजार रुपए तक रहे हैं। इस साल अभी तक गुच्छी के दाम तय नहीं हुए हैं, परंतु उम्मीद की जा रही है कि ये दाम दस हजार रुपए से ऊपर ही रहेंगे। इन दिनों उपमंडल चौपाल के देवदार के घने वनों में गुच्छी तलाश करने वालों की भरमार देखी जा सकती है। या यूं कह लें कि चौपाल के वनों में आजकल जंगल में मंगल हो रहा है। लोग अल सुबह ही दिन का भोजन पैक कर वनों का रुख कर लेते हैं व शाम ढलने के बाद ही घर पहुंचते हैं। गुच्छी को भाग्य से जोड़कर भी देखा जाता है।

– सुरेश सूद, नेरवा

भूलकर भी कीटनाशक ने डालें सेब के पौधों पर

शिमला जिला के कुछ क्षेत्रों में इन दिनों सेब के पौधों में फूल खिल गए हैं। बागबानी विशेषज्ञों ने शिमला  के बागबानों को सलाह दी है कि इन दिनों बागीचों में किसी भी प्रकार की कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग न करें। उद्यान विभाग के उद्यान विकास अधिकारी डा. कुशाल मेहता ने चिड़गांव में आयोजित शिविर में जानकारी देते हुए बताया कि सेब के बागीचों में इन दिनों परागण की प्रक्रिया चल रही है। परागण की प्रक्रिया में मधुमक्खी और दूसरे कीट महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सेब की पैदावार प्रदेश में बड़े पैमाने पर होती है, इसलिए फसल की सही देखभाल, उसका रखरखाव और उसे बेहतर बनाने व उसकी पैदावार को बढ़ाने के लिए सही ढंग से देखरेख की आवश्यकता होती है। बदलते मौसम के अनुकूल सेब के पौधों को और भी ज्यादा ध्यान देने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में बागीचों में किसी भी प्रकार के कीटनाशक के छिड़काव से मधुमक्खी और दूसरे कीटों को भी नुकसान हो सकता है। इन मधुमक्खियों के आने से ही फूलों का केसर एक पौधे से दूसरे पौधों पर जाता है और फल बनता है। ऐसी स्थिति में इस समय किसी भी कीटनाशक के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। कीटनाशकों के प्रयोग से मधुमक्खियों की जीवसंख्या समाप्त हो जाती है। साथ ही फल बनने की क्रिया पर भी उलटा प्रभाव पड़ता है। ऐसी रसायन जिससे गंध निकलती हो उसका प्रयोग किसी भी परिस्थिति में न करें, इससे मक्खियां बागीचों से दूर रहेंगी और बहुत कम संख्या में फूलों पर बैठेंगी, जिससे फल बनने की प्रक्रिया प्रभावित होगी। बहरहाल शिमला जिले में सबसे ज्यादा लोग सेब की फसल पर ही निर्भर हैं। ड़ा कुशाल मेहता ने कहा है कि विदेश यात्रा के दौरान न्यूजीलैंड में बागबानों से सीख ली कि लाल मिन्डु से लेकर पंखुड़ी पात तक यदि बागबान कीटनाशक का उपयोग करता हे उसे मधुमक्खी पोलीनेशन के लिए नहीं दी जाती है। सेब बागबानी सौ प्रतिशत निर्वरता प्ररागण प्रक्रिया पर है। मधुमक्खी को जीवित रखने के लिए कीटनाशक का प्रयोग न करें। वही इस वर्ष अधिक बर्फ व बारिश के कारण कीटों का हमला कम होने की संभावना है।

– बृजेश फिस्टा, रोहडू

आने वाले पांच दिनों के मौसम का पूर्वानुमानः

अगले पांच दिनों में मौसम शुष्क रहने, बीच-बीच में हल्के बादलों के  साथ मध्म हवा चलने की संभावना है। दिन व रात के  तापमान में 1-2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होने की संभावना है।

साप्ताहिक कृषि कार्यः मौसम शुष्क रहेगा। इसलिए मटर, टमाटर तथा मिर्च  व बेल वाली सब्जियों में समय-समय पर सिंचाई  करते रहें।  प्याज में नाइट्रोजन खाद डालें व रोपाई करें। बागबानी संबंधित कार्यः

शीतोष्ण फलों सेब, आडृ, बेहमी, अखरोट, पीकानट आदि के बीजों को क्यारियों में बीजने से पहले स्टेंटिफिकेशन के लिए डालें। नींबू प्रजाति व लीची में जस्ते की कमी को पूरा करने के लिए एक किग्रा. जिंक सल्फेट,  500 ग्राम. अनबुझा चूना प्रति 100 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

माटी के लाल

देशी नुस्खे से बीज की पावर डबल कर देते हैं

ओंकार सिंह 70185-14930

आज अंग्रेजी खाद और रसायन स्प्रे करने के बाद भी आलू-अदरक का साइज घट रहा है। ऐसे में हर किसी के मन में सवाल उठता है कि आखिर  20 साल पहले किसानों के पास ऐसी कौन सी जादू की छड़ी थी कि सब्जी का साइज काफी बड़ा होता था और वह भी  बिना किसी स्प्रे या उर्वरक के। इसी सवाल का जवाब खोजने की कोशिश की है दिव्य हिमाचल के लिए अपनी माटी की टीम ने। ऊना से हमारे संवाददाता एमके जसवाल कांगड़ा जिला के ज्वालामुखी में एक छोटे से गांव डोहग देहरियां पहुंचे। इस गांव के होनहार किसान हैं रिटायर्ड सूबेदार मेजर आेंकार सिंह। ओंकार ने बताया कि कैसे बिना स्प्रे आदि के भी सब्जी का साइज बड़ा हो सकता है। वह आज भी पुराने नुस्खों में यकीन करते हैं और उन्हीं से सीख पाकर कई किसान इसे अपना रहे हैं। उन्होंने बताया कि बीज को लगाने से पहले आधे घंटे तक गोबर,गोमूत्र और चूने के घोल में डालें। इसके बाद बीज को सुखा लें। फिर देखिए कमाल,कैसे आलू,अदरक से लेकर हर सब्जी का साइज कैसे बढ़ता है। इस नुस्खे से पैदावार भी बढ़ती है और फसल की जड़ों में कीड़े की टेंशन भी नहीं रहती। तो इस सप्ताह इतना ही। जल्द मिलेंगे नई गुड स्टोरी के साथ

टिप्स: मैं यही कहना चाहूंगा कि विषमुक्त खेती बहुत फायदेमंद है। इसमें पैदावार में कमी नहीं है। इस खेती से हमारी सेहत ठीक रहती है, जानवर भी ठीक रहते हैं। फायदा ही फायदा है इसलिए  मेरी यही सलाह है कि सभी विषमुक्त खेती को अपनाएं।

– एमके जसवाल,ऊना

देशी गाय की मांग बढ़ रही है

देशी गाय के लिए हिमाचल क्रेजी, पहाड़ी से लेकर मैदानों तक बढ़ी डिमांड

धर्मशाला। यूं तो हिमाचल के मैदानी इलाके भैंस पालन के लिए मशहूर हैं, लेकिन अब यह ट्रेंड बदलने लगा है। पहाड़ से लेकर मैदानों तक अब  देशी गाय पहली पसंद बन गई है। माना जा रहा है कि ज्यादातर लोग दूध के उत्पादों में मिलावट से बचने के लिए देशी गाय की तरफ  मुड़े हैं।  इसके अलावा देशी  गाय के दूध का स्पैल भैंस के मुकाबले काफी लंबा चलता है। इसी तरह इन दिनों गोमूत्र और गोबर की भी मांग खूब है। चाहे छोटा किसान हो या फिर बड़ा व्यवसायी या अफसर, हर कोई घर में देशी गाय रखना चाह रहा है। दूसरी ओर पशुपालन विभाग भी मान रहा है कि दुधारू पशुपालन का ट्रेंड चेंज हुआ है। विभाग की ओर से बेटरिनरी हास्पिटल को मुहैया करवाए गए सीमन में भी बढ़ोतरी हुई है। विभाग ने पिछले वर्ष प्रदेश भर में देशी नस्ल की शाहीवाल गाय के 71528 सीमन पशु चिकित्सालयों में भेजे हैं। इसके अलावा रेडसिंधि गाय के 109315 सीमन पहुंचाए हैं। देशी गाय का सबसे ज्यादा रुझान चंबा जिला में बढ़ा है।

दंगल गर्ल रीना

समाजसेवा से बड़ी कोई सेवा नहीं है, लेकिन राजा का तालाब में ब्रिलिएंट स्पोर्ट्स अकादमी के संचालक मनीष कुमार इस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। मनीष  ने राजा का तालाब में ब्रिलिएंट स्पोर्ट्स अकादमी खोल रखी है जिसमें बच्चों, लड़कों, लड़कियों, को मुफ्त में कुश्ती की ट्रेनिंग दी जाती है। बोहडक्वालु में आयोजित छिंज मेला में राजा का तालाब अकादमी से ट्रेनिंग प्राप्त करने वाली रीना ने 60 किलोग्राम भार वर्ग में अपनी प्रतिद्वन्दी को पछाड़कर हिमाचल केसरी का खिताब अपने नाम किया है व कुश्ती में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। हिमाचल केसरी पहलवान रीना ने बताया कि उनके पिता पहलवान हैं। अकादमी में  हमें कड़ी मेहनत करवाई जाती है और इसी के बलबूते प्रैस मुकाम को हासिल किया गया है। रीना ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल हासिल करना लक्ष्य है जिसको हासिल करके ही दम लेगी। रीना प्रतिदिन ब्रिलिएंट स्पोर्ट्स अकादमी राजा का तालाब में कुश्ती के गुर सीखती है। अकादमी के संचालक मनीष कुमार ने बताया कि उनकी अकादमी में 6 लड़कियां व 50 लड़के कुश्ती सीखते हैं। अकादमी से ट्रेनिंग लेने वाले नेशनल, इंटरनेशनल स्तर भी अपनी प्रतिभा मना चुके हैं।

– सुनील दत्त, जवाली

आप सवाल करो, मिलेगा हर जवाब

आप हमें व्हाट्सऐप पर खेती-बागबानी से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी भेज सकते हैं। किसान-बागबानों के अलावा अगर आप पावर टिल्लर-वीडर विक्रेता हैं या फिर बीज विक्रेता हैं,तो हमसे किसी भी तरह की समस्या शेयर कर सकते हैं।  आपके पास नर्सरी या बागीचा है,तो उससे जुड़ी हर सफलता या समस्या हमसे साझा करें। यही नहीं, कृषि विभाग और सरकार से किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा तो हमें नीचे दिए नंबरों पर मैसेज और फोन करके बताएं। आपकी हर बात को सरकार और लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।

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