बिजली आपूर्ति को दुरुस्त करना जरूरी

By: Apr 13th, 2019 12:06 am

सुखदेव सिंह

लेखक, नूरपुर से हैं

 

गर्मियों में जहां बिजली लोगों की अत्यधिक जरूरत बन जाती है, वहीं बिजली ट्रांसफार्मर पर लोड का बोझ भी पहले की अपेक्षा कहीं अधिक बढ़ जाता है। ठीक इसी वजह से भी कई बार लोगों के घरों में बिजली के उपकरण लोड बढ़ने और घटने के कारण जल जाते हैं। विद्युत बोर्ड ने क्या कभी इस तरह जलने वाले उपकरणों की जिम्मेदारी लेना गवारा समझा है? विद्युत बाधित रहने से लोग समस्याएं उठाते हैं…

हिमाचल प्रदेश में तूफान आने से अगर बिजली गुल हो जाए, तो उपभोक्ताओं को घंटों अंधेरे में रहने की आदत डाल लेनी चाहिए। हिमाचल प्रदेश विद्युत बोर्ड द्वारा आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए कोई खास योजना बनाई गई फिलहाल नजर नहीं आती है। प्रदेश सरकार बेशक पहाड़ की जनता को कम्प्यूटरयुक्त मीटर लगाकर उसके बिल भुगतान की अदायगी पर रियायत देने की बातें कर रही हो, मगर सच्चाई यह कि विद्युत बोर्ड के पास कर्मचारियों का अभाव होने का खामियाजा जनता को भुगतना ही पड़ रहा है। जनसंख्या के अनुसार विद्युत कर्मचारियों की नियुक्ति करना अब समय की मांग है। आलम यह कि अगर रात के समय बिजली गुल हो जाए, तो उपभोक्ताओं को विद्युत बोर्ड के कार्यालयों में सिवाय दरवाजे पर लटके तालों के कुछ नहीं मिलता है। विभाग कार्यालय के बाहर किसी शिकायत लॉगबुक का भी मौजूद न होना, उसकी कार्यप्रणाली को दर्शाता है।

सरकार जनमंचों के माध्यम से जनता की समस्याओं को प्राथमिक तौर पर समाधान करवा रही है, मगर विद्युत बोर्ड की सेवाएं पहाड़ की जनता को चौबीस घंटे मिलें, इसके लिए योजना बनाने की अब जरूरत है। विद्युत बोर्ड बिजली खंभों में बिछाई जाने वाली बिजली की तारों को अधिकतर बिना स्पेसर डाले ही लटका रहा है। बिजली की तारों को समय पर न कसने की वजह से वह अकसर नीचे लटककर रह जाती हैं। ऐसी सूरत में अगर मामूली तूफान भी आए, तो ये बिजली की तारें आपस में टकराकर स्पार्किंग पैदा करते ही बिजली ट्रांसफार्मर से फ्यूज को उड़ा देती हैं और बिजली गुल हो जाती है। विद्युत बोर्ड के कुछेक कर्मचारी इसे प्राकृतिक समस्या का नाम देकर जनता के प्रति जिम्मेदारियां सही से नहीं निभा पा रहे हैं। नतीजतन रातभर लोगों को अंधेरे में रहने को मजबूर होना पड़ता है। यही नहीं, पेड़ों की टहनियों के अकसर बिजली की तारों से टकरा जाने से भी बिजली बाधित हो जाती है। विद्युत तारों की मरम्मत समय पर न होने की वजह से भी ये कहीं से भी टूट कर अप्रिय घटनाओं को अंजाम दे सकती हैं। बिजली ट्रांसफार्मर पर भी सुरक्षा के प्रबंध कोई खास नहीं दिखते, जिसके चलते कोई भी अनहोनी घटना घटित हो सकती है। अगर बिजली का ट्रांसफार्मर जल जाए, तो उसकी रिपेयर करने में ही कई दिन लग जाते हैं। इस बीच विभाग के पास कोई स्थायी तौर पर विकल्प नहीं होता, ताकि बिजली सप्लाई फिर शुरू की जा सके। विद्युत बोर्ड के कर्मचारी अब तो मीटर रीडिंग का आकलन किए बगैर ही अनुमान से बिजली बिल काटना अपनी आदत बना चुके हैं। गर्मियों का मौसम शुरू होते ही लोगों को बिजली की जरूरत भी कहीं अधिक बढ़ जाती है।

अंधेरी रातों में अचानक विद्युत का बाधित हो जाना लोगों के लिए बहुत बड़ी परेशानी का सबब बनकर रह जाता है। पहाड़ में प्राकृतिक जल स्रोत बिलकुल खत्म होने की कगार पर चल रहे हैं। जनता सिर्फ बिजली से चलने वाली सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग की स्कीमों पर ही आश्रित है। ऐसे में बिजली का बाधित हो जाना आम जनमानस के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनकर रह जाता है। गर्मियों में जहां बिजली लोगों की अत्यधिक जरूरत बन जाती है, वहीं बिजली ट्रांसफार्मर पर लोड का बोझ भी पहले की अपेक्षा कहीं अधिक बढ़ जाता है। ठीक इसी वजह से भी कई बार लोगों के घरों में बिजली के उपकरण लोड बढ़ने और घटने के कारण जल जाते हैं। विद्युत बोर्ड ने क्या कभी इस तरह जलने वाले उपकरणों की जिम्मेदारी लेना गवारा समझा है? विद्युत बाधित रहने से जहां लोग समस्याएं उठाते हैं, वहीं इंडस्ट्री मालिकों का कामकाज भी ठप होकर रह जाता है। प्रदेश सरकार ने अब नए लगने वाले बिजली मीटरों को बगैर एनओसी लिए ही लगाने का सराहनीय फैसला लिया है। मुख्यमंत्री जयराम की सरकार विद्युत बोर्ड में चल रही स्टाफ की कमी को पूरा करने लिए नई भर्ती शुरू करे। विद्युत कर्मचारियों की ड्यूटी तीन शिफ्टों में करवाकर जनता को इस समस्या से राहत दिलाई जाए।


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