रिजल्ट खराब, तो शिक्षकों पर कार्रवाई

By: Apr 30th, 2019 12:20 am

शिमला  —हिमाचल में इस बार भी बोर्ड परीक्षाओं के खराब परिणाम शिक्षकों पर भारी पड़ेंगे। जमा दो की बात करें या फिर दसवीं, दोनों ही कक्षाओं का रिजल्ट पिछले कुछ सालों के मुताबिक खराब रहा है। कम रिजल्ट आने के क्या कारण हैं, इस पर विभाग ने आकलन करना शुरू कर दिया है। अहम यह है कि इस बार जिस विषय में छात्र सबसे ज्यादा पिछड़े होंगे और रिजल्ट 25 प्रतिशत से भी कम रहा होगा, तो उन शिक्षकों की खैर नहीं होगी। शिक्षा विभाग ने खुद इस बार कम रिजल्ट देने पर शिक्षकों पर कार्रवाई करने के लिए तरकीब निकाल दी है। शिक्षा विभाग सरकार पर खुद दबाव शिक्षकों पर कार्रवाई करने के लिए डालेंगे। बता दें कि शिक्षा विभाग ने हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड से 12वीं कक्षा में 0 से 25 फीसदी और 25 से 50 फीसदी परिणाम देने वाले स्कूलों की सूची मांगी है। विभाग की ओर से जारी अधिसूचना के तहत 22 अप्रैल को घोषित हुए 12वीं बोर्ड के परिणाम के तहत नो बिंदुओं पर स्कूल शिक्षा बोर्ड से जानकारी मांगी गई है। इसके तहत 12वीं बोर्ड के परिणाम की ओवरऑल पास प्रतिशतता, कुल उत्तीर्ण हुए छात्रों में से 60 फीसदी से अधिक अंक और प्रतिशत प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या, टॉप 500 में रहने वाले छात्रों के अंक सहित सूची, टॉप 50 में रहने वाले छात्रों के अंक व सूची, तीसरी श्रेणी में आने वाले छात्रों की सूची, विषयवार ओवरऑल परिणाम, 80 से 100 फीसदी अंक प्राप्त करने वाले स्कूलों की सूची भेजने को कहा गया है। इसके अतिरिक्त टॉप 100 स्कूलों की पास प्रतिशतता, साथ ही जिन स्कूलों का सौ फीसदी परिणाम रहा है, ऐसे स्कूलों की सूची भी विभाग ने मांगी है। गौर रहे कि पिछले वर्ष भी शिक्षा विभाग ने बोर्ड परीक्षा के परिणाम घोषित होने के बाद प्रदेश के स्कूलों की स्थिति का आकलन किया था। इसमें जिन स्कूलों का खराब परिणाम रहा था, उनसे जवाब मांगा था। सूत्रोंं की मानें, तो इस बार शिक्षा विभाग कम रिजल्ट देने पर शिक्षकों की इन्क्रीमेंट रोकने की मांग को लेकर सरकार से मुलाकत करेंगे। बता दें कि सोमवार को दसवीं का परीक्षा परिणाम भी कुछ सही नहीं रहा है। शिक्षा मंत्री ने भी खराब रिजल्ट पर चिंता जाहिर की है। ऐसे में कहा जा रहा है कि इस बार खराब रिजल्ट देने वाले शिक्षकोंं को बख्शने के पक्ष में खुद सरकार भी नहीं है। हालांकि पिछले वर्ष भी लगभग 35 शिक्षकों पर कार्रवाई करने में शिक्षा विभाग व सरकार नाकाम रही थी। इसका कारण यह है कि शिक्षक संगठनों ने सरकार पर एक मौका देने का दबाव बनाया था।


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