शिवबाड़ी मेले में मिट्टी के बरतन खींच रहे भीड़
गगरेट—आधुनिकता के इस युग में जहां मोडयूलर किचन ने लकड़ी से जलने वाले चूल्हे को बीते जमाने की बात कर दिया है तो वहीं शायद ही आपको कोई ऐसा किचन दिखे जहां मिट्टी बरतन आपको देखने को मिल जाएं। गर्मी के मौसम में गला तर करने के लिए ठंडे पानी की बात हो तो हर कोई मिट्टी के घड़े से अधिक फ्रिज के पानी को तरजीह देता है यह जानते हुए भी कि घड़े का पानी ज्यादा गुणकारी है। बावजूद इसके कुछ ऐसे भी हठी लोग हैं जो अपने पुश्तैनी धंधे को आधुनिकता की चादर से ऐसे पंख लगाते हैं कि देखने वालों के मुंह से वाह-वाह ही निकले। जिला ऊना के ऐतिहासिक शिवबाड़ी मेले में मिट्टी के बर्तन बेचने वाला एक ऐसा व्यापारी पहुंचा है जिसके बरतन बरबस ही सबका ध्यान अपनी तरफ खींच रहे हैं। पंजाब के फगवाड़ा से आए इस व्यापारी धर्मपाल का दावा है कि इन बर्तनों को वह तैयार भी खुद करते हैं। खास बात यह है कि मिट्टी के ये बरतन इको-फ्रेंडली हैं। मिट्टी के सुराही के नीचे टूटी लगा दी ताकि बार-बार ठंडा पानी निकालने के लिए उसे पलटना न पड़े। यहां तक कि उसने मिट्टी का जग भी तैयार किया और रोटी सेंकने के लिए मिट्टी का तवा भी बना डाला। इसके अतिरिक्त भी उसने रसोई-घर में इस्तेमाल होने वाले कई मिट्टी के बरतन बनाने शुरू किए। लोगों को यह पसंद भी आए और आज पंजाब सहित हिमाचल के कई हिस्सों में उसके द्वारा बनाए गए मिट्टी के बरतनों की खासी डिमांड है। उधर, शिवबाड़ी मेले में मिट्टी के बरतन लेकर पहुंचे स्थानीय व्यापारी किशन सिंह व कुनेरन के गुरवचन सिंह ने बताया कि मिट्टी के बरतनों का यहां खास क्रेज न होने के कारण अब कई लोग इस पुश्तैनी काम को छोड़ गए हैं। नई पौध को यह तक नहीं पता कि चाक किसे कहते हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि मिट्टी के बरतन पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक हैं। अगर प्रदेश सरकार कम से कम हिमाचल टूरिज्म के रेस्तरां में भी मिट्टी के बरतनों का उपयोग जरूरी कर दे तो इस सदियों पुराने ग्रामीण लघु उद्योग को बचाया जा सकता है।
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