लोमश ऋषि की पुण्यभूमि रिवालसर
रिवालसर को ब्रह्मा, विष्णु, गणपति, सूर्य और शिव-पार्वती यानी 5 देवताओं के निवास स्थल के रूप में भी जाना जाता है। मकर संक्रांति और बैसाखी को यहां बसोआ उत्सव हर्षोल्लास से मनाया जाता है…
विश्व भर में देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल प्रदेश के चप्पे-चप्पे में ईश्वर की उपस्थिति का साक्षात अनुभव करवाने वाले देव स्थलों और मंदिरों में जाना प्रत्येक प्राणी मात्र को आध्यात्मिक शांति की अनुभूति करवाता है। ऐसा ही एक पवित्र तीर्थ स्थल मंडी जिले के रिवालसर में हैं। 1350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित और मंडी शहर से 24 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित रिवालसर झील और आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य सदा से ही श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी तरफ लुभाता रहा है। रिवालसर का प्राचीन नाम हृदयलेश है अर्थात ‘झीलों का राजा’। स्कंद पुराण के पहले, दूसरे और तीसरे अध्याय में इस स्थान का वर्णन लोमश ऋषि की तपोस्थली के रूप में भी आता है। रिवालसर को ब्रह्मा, विष्णु, गणपति, सूर्य और शिव- पार्वती यानी 5 देवताओं के निवास स्थल के रूप में भी जाना जाता है। मकर संक्रांति और बैसाखी को यहां बसोआ उत्सव हर्षोल्लास से मनाया जाता है। आदि काल से ही भारतवर्ष में ज्ञान को प्रधानता दी गई है और अनेकों ऋषि-मुनियों ने अपनी तपस्या से प्राप्त दिव्य ज्ञान को सामान्य जन तक पहुंचाया है। विद्वान, धर्मात्मा और तीर्थाटन प्रेमी लोमश ऋषि के बारे में प्रचलित दंत कथाओं के अनुसार इन्होंने 100 वर्षों तक कमल पुष्पों से शिव भोलेनाथ की पूजा की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने इन्हें इनकी इच्छानुसार वरदान दिया था कि कल्पांत होने पर इनके शरीर का एक बाल झड़ा करेगा अर्थात जब तक इनके शरीर पर बाल रहेंगे इनकी मृत्यु नहीं होगी। शरीर पर रोएं अधिक होने के कारण इन्हें लोमश नाम मिला था। इनके द्वारा लिखित 2 ग्रंथों लोमश संहिता और लोमश शिक्षा का उल्लेख भी मिलता है। रिवालसर के अलावा जिला कुल्लू के आनी तहसील के विनान गांव में भी लोमश ऋषि का मंदिर है और ये सराज पंचायत के आराध्य देवता के रूप में भी पूजे जाते हैं। रिवालसर झील के किनारे भगवान शिव के प्राचीन मंदिर के साथ लोमश ऋषि का मंदिर है। इसके अलावा गुरु गोबिंद सिंह का गुरुद्वारा और तिब्बती गुरु पद्म संभव को समर्पित बौद्ध मठ भी है। यहां तीनों धर्मों के अनुयायियों की धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई हैं। ऐसी मान्यता है कि लोमश ऋषि ने ही पौष पुत्रदा एकादशी के व्रत का विधान बताया था। गुरु गोबिंद सिंह की याद में यहां एक गुरुद्वारा है। ऐसी मान्यता है कि मुगलों से युद्ध में पहाड़ी राजाओं से मदद मांगने के उद्देश्य से वे यहां आए थे और 30 दिन तक यहां निवास किया था। बाद में 1930 में मंडी के राजा जोगिंदर सेन ने यहां गुरुद्वारे का निर्माण करवाया था। वर्षपर्यंत यहां देश-विदेश से श्रद्धालु एवं पर्यटक प्रकृति के आंचल में स्थित रिवालसर झील के आसपास के मंदिरों, बौद्धमठ और गुरु गोबिंद सिंह को समर्पित गुरुद्वारे में शीश नवाकर अपनी मुरादें मांगते हैं ।
— अनुज कुमार आचार्य, बैजनाथ
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