एनडी तिवारी ने मंच पर समझी थी सारी सियासत
नई दिल्ली -यह बात 1980 की है। तब लोकसभा चुनाव की खुमारी चढ़ती जा रही थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी पार्टी के अन्य बड़े नेताओं की तरह चुनावी सभा करने में व्यस्त थे। तब न तो आज की तरह संवाद का त्वरित माध्यम था, न ही किसी क्षेत्र की त्वरित जानकारी देने वाला डिजिटल साधन. नेताओं को एक दिन में कई-कई सभाएं करनी होती थीं और स्थानीय सियासी समीकरण को समझते हुए अपनी पार्टी के के लिए वोट मांगने होते थे। तब इसके लिए चलन यह था कि नेता क्षेत्र में पहुंचने पर वहां के अपने खास कार्यकर्ताओं के साथ कुछ मिनट अलग से बैठक कर क्षेत्र का फीडबैक लेते थे और फिर मंच उसके अनुसार ही भाषण करते थे, मगर कई बार उनके पास इसके लिए वक्त नहीं होता था। ऐसा ही एक वाकया एनडी तिवारी के साथ हुआ। वह संभल की एक रैली में शामिल होने पहुंचे, पर वक्त कम था। तिवारी सुलझे हुए नेता था। उन्होंने संभल पहुंचने के बाद सीधा मंच का रुख किया और मंच पर ही अन्य नेताओं से क्षेत्र की जानकारी ली, वहीं रणनीति बनाई और उसके मुताबिक भाषण भी किया।
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