कपूर के जाते ही टिकट की लड़ाई

By: May 26th, 2019 12:02 am

40 साल बाद धर्मशाला हॉट सीट खाली होते ही हर कोई फिट कर रहा अपनी गोटियां

धर्मशाला    —प्रदेश की दूसरी राजधानी व कांगड़ा जिला मुख्यालय धर्मशाला का विधायक बनने को कई लालायित हैं। भाजपा नेता किशन कपूर के करीब 40 साल बाद स्थान खाली करने से वर्षों से काम करने वाले सभी लोगों की महत्त्वाकाक्षाएं जाग उठी हैं। आलम यह है कि हर कोई चुनाव लड़ने की इच्छा जताने के साथ साथ टिकट को परिक्रमा करने में जुट गया है। संघ का बड़ा नाम होने के कारण संघ पदाधिकारियों के पास भी टिकट के चाहवान हाजरी भर रहे हैं। इस रेस में बड़ी आयु से लेकर हर वर्ग के लोग हैं, जो अपने अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। खाली स्थान पर कब्जा जमाने को घमासान मच गया है।  किशन कपूर की लंबी पारी के चलते कई लोग तो प्रतीक्षा में उम्रदराज हो गए हैं, लेकिन अब वे भी दावा प्रस्तुत कर रहे हैं। बदले परिवेश में नई पीढ़ी भी आगे दिख रही है। धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र में किशन कपूर के दिल्ली जाने के बाद वह हालात बन रहे हैं जो एक समय शांता कुमार के दिल्ली जाने पर बने थे। यहां टिकटार्थियों की सूची दिन व दिन लंबी होती जा रही है। टिकट की सूची में सबसे पहले उमेश दत का नाम इसलिए चल रहा है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान  अंतिम दौर में उनका नाम काट कर पार्टी ने फिर से कपूर पर भरोसा जताया था।  संगठन में वर्षों काम करने सहित कई फैक्टर उनके साथ जुड़ रहे हैं। इसके अलावा कपूर के करीबी माने जाने वाले गद्दी समुदाय से विपिन नैहरिया भी युवा चेहरे के रूप में देखे जा रहे हैं। पुराने चेहरों की बात करें तो सुनील मनोचा, संजय शर्मा, कमला पटियाल, राजीव भारद्वाज, संघ से जुड़े रहे सचिन शर्मा, मीडिया सह प्रभारी राकेश शर्मा, ओबीसी समुदाय से जिला परिषद सदस्य अनिल चौधरी, राकेश चौधरी व कुछ महिला कर्मचारी चेहरों के नाम भी इस सूची में शामिल हैं।  इसके अलावा विभिन्न संगठनों में काम करने वाले कई नाम हैं। यह भी माना  किशन कपूर की जड़ें काफी गहरी हैं और अब उनके पुत्र शाश्वत कपूर भी रुचि दिखा रहे हैं। कपूर किसे अपना उताराधिकारी चुनते हैं यह भी अहम होगा। भाजपा संगठन के समक्ष भी सबको संगठित कर साथ लेकर चलने की बड़ी चुनौती होगी।

जीत का मंत्र

प्रदेश के दूसरे बड़े केंद्र पर कब्जा करने के लिए भाजपा जहां सत्ता का पूरा इस्तेमाल कर इसे जीतने का काम करेगी। वहीं, कांग्रेस लोकसभा चुनावों में खोई प्रतिष्ठा पाने के लिए जोर आजमाइश करेगी। दोनों ही दलों के समक्ष एका दिखाकर समन्वय बनाना जीत का मंत्र होगा।


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