कहानी : ऐसे मिला सबक

By: May 22nd, 2019 12:03 am

दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले सुनील को पापा-मम्मी एक ही बात बार-बार समझाते कि ‘बेटा यह बहुत ही गंदी आदत है, जो तुमने पाली हुई है। तुम इस आदत के कारण हर बार सबको परेशानी में डाल देते हो, जो अच्छा नहीं है। इस आदत को सुधारो, नहीं तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं…

सुनील आज स्कूल के लिए फिर से लेट था। आज उसकी टाइ और बेल्ट गुम थी। टाइ मिली तो बेल्ट नहीं मिल रही थी। इन चीजों को ढूंढते-ढूंढते आज उसकी स्कूल बस फिर से निकल चुकी थी। यह अब उसकी रोज की रुटीन में शामिल हो चुका था। आज पापा को फिर अपना नहाना छोड़कर उसे अपनी गाड़ी में स्कूल पहुंचाना पड़ा। आते वक्त ट्रैफिक जाम में फंसे और आफिस के लिए लेट हुए, वह अलग।

सुनील की यह गंदी आदत कई बार बहुत ही ज्यादा परेशानी का कारण बन जाती थी। वह चीजों को सही स्थान पर न रखकर उन्हें यहां-वहां रख देता था। जगहें भी ऐसी होतीं जिस जगह पर उस वस्तु के होने का अंदाजा तक नहीं लगाया जा सकता था। सुनील पढ़ाई में होशियार था। वह हर बार परीक्षा में प्रथम स्थान ही झटकता था। दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले सुनील को पापा-मम्मी एक ही बात बार-बार समझाते कि ‘बेटा यह बहुत ही गंदी आदत है, जो तुमने पाली हुई है। तुम इस आदत के कारण हर बार सबको परेशानी में डाल देते हो, जो अच्छा नहीं है। इस आदत को सुधारो, नहीं तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। ऐसी आदतों के कारण कई बार बनते-बनते काम भी बिगड़ जाया करते हैं।’ समझाने के बावजूद भी सुनील के कान में जूं तक न रेंगती। वह उसी लापरवाही के साथ अपनी हर चीज को उसके स्थान पर न रखकर हर कंही रखने से बाज नहीं आता। उसे जैसे किसी चीज की फिक्रही नहीं थी। स्कूल ड्रैस, जूते, टाइ, बेल्ट, किताबें, कापियां व घर का अन्य सामान कहां का कहां मिलता। जहां उसका दिल करता वह उसे वहीं छोड़ देता। हद तो तब हुई जब एक बार पढ़ते-पढ़ते उसे लघुशंका ने घेर लिया और अपनी कापी लेकर सीधा टायलेट में जा घुसा और कापी वहीं रख आया। दूसरी सुबह उस विषय का क्लास टैस्ट था। टायलेट से निकलने के कुछ घंटे पश्चात जब वह याद करने के लिए कापी ढूंढने लगा तो उसे वह नहीं मिली। सभी एक बार फिर कापी खोजने में व्यस्त हो चुके थे। मिलने की गुंजाइश वाली हर जगह उन्होंने उसे ढूंढा परंतु उन्हें वह कहीं नजर नहीं आई। पापा-मम्मी ने उसे खूब खरी-खोटी सुनाई और उससे पूछा भी कि वह कापी कहीं स्कूल में ही तो नहीं रख आया है, लेकिन उसे पता था कि वह कुछ समय पहले तो उसे पढ़ रहा था। वह कहां चली गई होगी? बाद में जब पापा टायलेट गए तो कापी को वहां पाकर बहुत हैरान हुए। इसके लिए सुनील को पापा से थप्पड़ भी पड़े। आज वह रो रहा था, लेकिन मम्मी ने उसे प्यार से समझाते हुए एक बार फिर कहा, ‘बेटा, तुम काम ही ऐसा करते हो। भला ज्ञान की इस वस्तु को तुम ऐसी गंदी जगह पर रख कर आ गए। यह तो तुमने बहुत बेहुदा काम किया है। बेटा, अब तुम बड़े हो रहे हो। अपनी इस आदत को सुधारो। ऐसी लापरवाही के कारण कई बार लेने के देने पड़ जाते हैं। तुम्हें पता है तुम्हारी चीजों का स्थान कहां है। उन्हे सावधानी से वहीं रखा करो। जब दिल से तुम इस काम को करोगे तो धीरे-धीरे तुम्हारी यह आदत भी बन जाएगी और तुम्हारा हर काम आसानी से भी हो जाया करेगा। इससे समय की भी बचत होगी और रोज-रोज की परेशानी से भी सभी को छुटकारा मिल जाएगा।’

 परंतु इस बात का भी सुनील पर ज्यादा असर न हुआ। फिर वह दिन भी आया जब सुनील को अपनी इस आदत के कारण एक बेशकीमती तोफहा और बेहतरीन मौका अपने हाथ से गंवाना पड़ा। इस वर्ष जिले में एक लैपटाप कंपनी ने एक प्रतियोगिता का आयोजन करवाना निश्चित किया। जिले के पहले दस विजेताओं को प्रदेश के मुख्यमंत्री के हाथों से लैपटाप ईनाम में दिए जाने थे। कंपनी यह अपने प्रोडक्ट की मशहूरी के लिए कर रही थी। हर स्कूल से प्रतियोगिता में बैठने वाले विद्यार्थियों के नाम कंपनी को भेजे गए। कंपनी ने सभी विद्यार्थियों को परीक्षा के लिए हाल टिकट जारी किए जिनके बगैर परीक्षा में कोई भी विद्यार्थी नहीं बैठ सकता था। सुनील खुश था। अपने ज्ञान के बल पर लैपटाप हासिल करने का यह एक सुनहरी मौका था, जो सुनील किसी भी सुरत में खोना नहीं चाहता था। उसे अपने ऊपर विश्वास था क्योंकि वह पहले भी इस तरह की परीक्षाओं में जिला क्या प्रदेशभर में अपना नाम रोशन कर चुका था। इस बार भी वह परीक्षा की तैयारी में रात-दिन जुट गया था। उसे लैपटाप जो हासिल करना था वह भी प्रदेश के मुख्यमंत्री के हाथों से। वह दिन उसके और उसके परिवार के लिए कितना खुशी वाला होगा! यह सोच-सोचकर वह आनंदित हुआ जाता था। परीक्षा का दिन भी आ गया, लेकिन वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था। आज उसका हाल टिकट नहीं मिल रहा था। सुनील और उसके मम्मी-पापा सुबह से ही हाल टिकट को ढुंढने में जुटे हुए थे। बहुत मशक्कत के बाद भी उन्हें हाल टिकट तो नहीं मिला परंतु परीक्षा का समय जरूर निकल गया था। सुनील का किया धरा आज सब मिट्टी में मिल चुका था। उसके सपनों की उड़ान ने हामी भर दी थी। आज वह सचमुच बहुत दुखी था। लगभग डेढ हफ्ता पहले उसे स्कूल से हाल टिकट मिला था। जाने उसे वह लापरवाही से कहां रख बैठा था।

दोपहर का समय हो चला था। सुनील की मम्मी के हाथ में इस वक्त हाल टिकट था, जो लंच तैयार करते समय उन्हें रसोईघर में फ्रिज के ऊपर रखे कपड़े के नीचे मिला। सुनील को अब सबकुछ स्मरण हो आया था कि कैसे उसने वह टिकट उस जगह पर रख दिया था। परंतु अब समय निकल चुका था। अब सुनील के पास पछतावे के अलावा और कोई चारा न था। उसे रह-रहकर मम्मी-पापा की बातें याद आ रही थी। वह अपनी गलती के लिए शर्मिंदा हो रहा था। इस घटना ने सुनील में परिवर्तन का दीया जला दिया था। उसने मम्मी-पापा से अपनी इस गलती के लिए माफी मांगी और मन ही मन प्रण भी कर लिया कि वह अब कभी किसी भी काम में लापरवाही नहीं बरतेगा और सही जगह पर ही चीजों को रखा करेगा। उसे सबक मिल चुका था।

– पवन चौहान, गांव व डाकघर महादेव,  तहसील -सुंदरनगर, जिला मंडी


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