किताबें मिली

By: May 12th, 2019 12:05 am

गांव की एक शाम

एक नई पुस्तक हाथ लगी, ‘गांव की एक शाम’। लेखक विक्रम गथानिया की कहानियों का संग्रह है यह। चौदह कहानियों के इस संग्रह को कुल 84 पन्नों में सहेजा गया है। विक्रम की लेखन विधा से ज्ञात होता है कि वह स्वयं भी ग्रामीण परिवेश में  रमे-रचे हैं। संग्रह की पहली कहानी दिल्ली का लखपति है। इसी क्रम में एक के बाद एक चौदह कहानियों में हम पाते हैं कि मात्र पात्र बदलते हैं, कहानी का मजमून एक जैसा दिखाई पड़ता है। हां, बोवो एक ऐसी कहानी जरूर है जो किताब की कीमत से ज्यादा पैसे और प्रशंसा बटोर लेती है। कहानी एक ऐसी लड़की की है जो शादी के पश्चात पति के प्रहारों से तंग आकर मायके चली आती है। उसे तपेदिक जकड़ लेती है। बाद में वह बेमौत मर जाती है। फिर वह बोवो की बहन से शादी की जिद्द करता है। घर वाले शर्त नहीं मानते हैं। पति उसके बेटे को अपने पास ले जाता है और अंततः वह व्यक्ति दूसरी शादी कर लेता है। कहानी के अंत में बोवो का भाई अपने भांजे से मिलने जाता है। बहन के ससुराल में उसे कोई पहचानता नहीं है। खैर उसे पता चलता है कि बोवो का बच्चा जवान हो गया है, नौकरी लग गया है। ऐसे में कई स्मृतियां तैरती हैं। यानी कहानी एक अच्छी याद के साथ समाप्त होती है। लेखक स्कूल प्रवक्ता हैं, लिहाजा वे स्कूलों के परिवेश पर सटीकता के साथ लिखते हैं। स्कूलों के माहौल पर उनकी लेखनी से कई तरह के पहलू बाहर आते जाते हैं। ग्रामीण परिवेश पर घूमता यह कहानी संग्रह पाठक को कभी-कभी बहुत पीछे ले जाता है, जहां विकास नाम की कोई चीज नजर नहीं आती। खैर लेखक को यह छूट अवश्य है कि वह कोसों दूर अथवा अतीत में प्रवेश पा जाने को स्वतंत्र है। लेखक को साधुवाद इसलिए कि उन्होंने ग्राम्य जीवन को भोगा और एक सही तस्वीर में उतारा।

गांव की एक शाम, विक्रम गथानिया, बोधि प्रकाशन जयपुर, 100 रुपए  

 -ओंकार सिंह

रचना-गुलेरी विशेषांक

त्रैमासिकी ‘रचना’ जनवरी-जून 2018 का अंक ताजा हवा के झोंके की तरह लगा। पत्रिका ने इसे साहित्य के वटवृक्ष चंद्रधर शर्मा गुलेरी को समर्पित करते हुए गुलेरी विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया है। चूंकि डाक्टर पीयूष गुलेरी ने चंद्रधर शर्मा गुलेरी पर गहन शोध कार्य किया था, अतः उन्हें भी पत्रिका प्रबंधन की ओर से सुखद व मंगल कामनाओें के साथ यह अंक प्रस्तुत है। अलबत्ता आज जब यह अंक  हाथ में है तो डाक्टर पीयूष हमारे बीच नहीं हैं। खैर ‘रचना’ के इस अंक में साहित्य के सर्वविधा मर्मज्ञ चंद्रधर शर्मा गुलेरी पर भरपूर सामग्री समाहित है। पुस्तिका को संदर्भ संग्रह के रूप में सहेजा जा सकता है। शोधार्थी इसका लाथ उठा पाएंगे, ऐसी उम्मीद है। डाक्टर पीयूष गुलेरी के शोध संदर्भाें को भी कई जगह इंगित किया गया है। ‘रचना’ का एक और प्रयास सराहनीय रहा। जनवरी-जून 2019 के अंक को प्रबंधन ने एकांकी के रूप में प्रस्तुत कर अनुकरणीय पहल की है। अजय पाराशर, त्रिलोक मेहरा, कृष्ण चंद्र महादेविया, हीना चिनौरिया, डोलिमा भारद्वाज और स्वयं डाक्टर सुशील कुमार फुल्ल का एकांकी ‘और तेज, और तेज’ तथा ‘बुरे फंसे’ शामिल हैं। डाक्टर फुल्ल पत्रिका के संपादक भी हैं। एकांकी के बहाने आधा दर्जन शब्द शिल्पियों को साथ लेकर चलना इस अंक की खासियत रही। भविष्य में भी रचना क्रम ऐसे ही चलता रहे, ऐसी उम्मीद है।

रचना-गुलेरी विशेषांक, डा. सुशील कुमार फुल्ल, रचना साहित्य एवं कला मंच, पालमपुर, 100 रुपए  

-ओंकार सिंह


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