किन्नौर के लोगों के लिए सतलुज ही समुद्र है

By: May 15th, 2019 12:03 am

किन्नौर में सबसे बड़ी नदी सतलुज है, इसलिए यहां के लोगों के लिए यही ‘सोमोद्रङ’ यानी समुद्र है। शिप्की से लेकर किन्नौर की अंतिम सीमा रेखा, ‘चौरा’ तक सतलुज को 130 किलोमीटर बहना पड़ता है। शिप्की और नमग्या के मध्य  इसकी दायीं ओर सोम और टशिंग हैं। नमग्या के नीचे खाबो में सतलुज और स्पीति नदी का संगम होता है…

गतांक से आगे …

सतलुज : किन्नौर में सतलुज, लङछेन खंबा (हस्तिमुखी) के साथ-साथ ‘जङ-ती’ (सुवर्णन्द) ‘मुकसङ, ‘सङ-पो’, ‘सोमोद्रङ’ के नाम से भी जानी जाती है। किन्नौर में सबसे बड़ी नदी सतलुज है, इसलिए यहां के लोगों के लिएयही ‘सोमोद्रङ’ यानी समुद्र है। शिप्की से लेकर किन्नौर की अंतिम सीमा रेखा, ‘चौरा’ तक सतलुज को 130 किलोमीटर बहना पड़ता है। शिप्की और नमग्या के मध्य  इसकी दायीं ओर सोम और टशिंग हैं। नमग्या के नीचे खाबो में सतलुज औरस्पीपि नदी का संगम होता है स्पीति लाहौल और  स्पीति क्षेत्र की सीमा रेखाभूत कुंजम ला के पाद से कुंजम ला टेक-पो, कब्जिमा तथा दि खड्डों से मिलकर ‘कौरिक’ तक पहले पूर्व दिशा में बहती है, वहां से दक्षिणामुख होकर सुम्दो से किन्नौर के हङरङ उपत्यका में प्रवेश  कर यहां पहुंचती है।  हङरङ उपत्यका में स्पीति में पहुंचती चलगोरा- पो इसके बाएं तट पर  और युलङ लिपक तथा तिरासङ खड्ड इसके दाएं तट पर मिलती है। खाबो में स्पीति से मिलने के बाद सतुलज डवलिङ-डुवलिङ होती हुई ‘पूह’ क्षेत्र में प्रवेश करती है। पूह गांव से दस किलोमीटर और आगे बढ़ने पर सतलुज का मिलन गोनयुल उपत्यकर के शीश में स्थित रोपा गांव के ऊंचाई वाले क्षत्रों से बनकर आने वाली रोपा खड्ड जिसे श्यासों खड्ड भी कहते हैं

श्यासो खड्ड से चलकर नेसड़ पुल के पास पहुंचने पर सतलुज का मिलन ग्यथिङ या नेसड़ उपत्यका की चोटी से आने वाली ‘नेसड/ग्यथिङ खड्ड से इसके बाएं तट पर’ कोरङ के पास सतलुज का मिलन इसके बाएं तट पर लिट्-फू, जिसे पेंजुर या तेती उपत्यका भी कहते हैं, शीश-लरसा तथा इसके आसपास के क्षेत्रों से बनकर आने वाली पेंजुर या तेती नाम की नदी से होता है। स्पीति के बाद तेलेती दूसरी बड़ी नदी है, जो सतलुज में मिलती है। लरसा से कीरङ तक इसके दाएं तट पर क्रमशः टेपोङ चिपोङ, गुमजङ, वारी, शुलती, द्रमलिङ आदि खड्डें इसमें मिलती हैं। कोरङ ये आगे बढ़ने पर बाईं तरफ स्थित ‘मूरंग’ क्षेत्र में सतलुज का मिलन ‘ तिरूङ खड्ड’ से होता है। यह खड्ड भारत- तिब्बत की सीमा से बनकर उत्तर-पश्चिम दिशा में बहती हुई यहां पहुंचती है। इस खड्ड की बाईं तरफ किन्नर कैलास पर्वत स्थित है। मूरंग से आगे बढ़ने पर सतलुज में बाएं तट पर डुबा गारड, चेरड, रल्दङ आदि खड्डे मिलती हैं                  


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