किशन सिंह के बाद मोती सिंह बैठा था अर्की की गद्दी पर

By: May 29th, 2019 12:05 am

किशन सिंह के उपरांत उसका पुत्र मोती सिंह 1876 ई. में गद्दी पर बैठा, लेकिन कुछ ही समय उपरांत उसकी मृत्यु हो गई। इसके उपरांत गद्दी को लेकर परिवार में झगड़ा हो गया, लेकिन फिर 1877 में मियां जय सिंह का सुपुत्र ध्यान सिंह गद्दी पर बैठा। मोती सिंह की चार महीने के पश्चात मृत्यु हो गई थी। उसके कोई संतान नहीं थी। इसलिए राज परिवार में जय सिंह का पुत्र ध्यान सिंह, जो राज्य का वजीर रह चुका था तथा दूसरी ओर किशन सिंह का छोटा भाई गद्दी के हकदार और दावेदार थे…

गतांक से आगे …

मोती सिंह (1876-1877 ई.) : किशन सिंह के उपरांत उसका पुत्र मोती सिंह 1876 ई. में गद्दी पर बैठा, लेकिन कुछ ही समय उपरांत उसकी मृत्यु हो गई। इसके उपरांत गद्दी को लेकर परिवार में झगड़ा हो गया, लेकिन फिर 1877 में मियां जय सिंह का सुपुत्र ध्यान सिंह गद्दी पर बैठा।

ध्यान सिंह (1877-1904 ई.) : मोती सिंह की चार महीने के पश्चात मृत्यु हो गई थी। उसके कोई संतान नहीं थी। इसलिए राज परिवार में जय सिंह का पुत्र ध्यान सिंह, जो राज्य का वजीर रह चुका था तथा दूसरी ओर किशन सिंह का छोटा भाई गद्दी के हकदार और दावेदार थे। अतः सरकार ने बीच में हस्तक्षेप करके ध्यान सिंह के हक में निर्णय देकर उसे बाघल का राजा बनाया। ध्यान सिंह एक लोकप्रिय शासक था। रियासत के दस्तूर के मुताबिक राजा के छोटे भाई मान सिंह को राज्य का वजीर बनाया गया। राजा ने प्रशासन चलाने में अपने भाइयों और संबंधियों  को अधिक अधिकार दिए, परंतु वह स्वयं भी सभी बातों का ध्यान रखता था। उसके समय में उल्लेखनीय कार्य हुए :-

  1. इस राजा के समय में राज्य के आदेश व अन्य कार्य लिखा-पढ़ी द्वारा होने लगे।
  2. कोर्ट-फीस और नान ज्यूडिशयल स्टांप पेपर आरंभ किए गए। यह एक साधारण कागज पर मोहर लगाकर प्रचलित किए गए।
  3. भंडार (खजाना) की आय और व्यय की समय-समय पर पड़ताल की जाने लगी।
  4. पहले रियासत में सौ सिपाही होते थे, परंतु इसके समय में 25 सिपाही रखे गए और एक थानेदार नियुक्त किया गया। इससे खर्च में कुछ बचत भी हो गई।
  5. सारे राज्य को चार तहसीलों में बांटा गया।

ध्यान सिंह के समय में 1897 ई. में एक विद्रोह उठ खड़ा हुआ। इसे ठुकराई के छोटे-छोटे जागीरदारों ने उकसाया और उसमें किशन दास नाम के एक व्यक्ति ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। बड़ोग गांव के ब्राह्मणों ने भी इसमें भाग लिया था। उनका कहना था कि एक तो राणा ने उनकी मालगुजारी बढ़ा दी है, दूसरे पशुओं के चराने के लिए बहुत कम भूमि है और तीसरे जंगली सुआरों को मारने पर पाबंदी लगा दी थी जो जमींदारों की फसलों को नष्ट कर देते थे। जब यह झगड़ा बहुत बढ़ गया तो सुपरिटेंटेंड हिल स्टे्टस ने 1902 में हस्तक्षेप करके विद्रोहियों को पकड़ा और उन्हें राणा के पास भेज दिया। ध्यान सिंह के समय में लोगों से अधिक जुर्माना वसूल करने की ज्यादतियां होती रही। राणा और लोगों के मध्य भूमि के झगड़े भी बहुत चलते रहे। इसके कारण रियासत के कर्मचारियों  और लोगों में आपस में कटुता पैदा हो गई थी। राणा के सुकेत, मधान व बिलासपुर राज्यों में वैवाहिक संबंध थे। 1904 में राणा की मृत्यु हो गई।


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