किसानों के लिए राहत की सांस
शिमला—शिमला जिला के किसानों के लिए राहत भरी खबर है। किसान व बागबानों को जीवामृत और सप्त धान्यांकुर बनाने की विधि पता नहीं है, उन्हें कृषि विभाग के अधिकारी ऑनलाइन व फोन पर जानकारी देंगे। जानकारी के अनुसार आत्मा प्रोजैक्ट के तहत फामर्स को यह जानकारी देने के लिए अधिकारियों की ड्यूटी भी लगा दी गई है। वहीं बताया जा रहा है कि विभाग में रोजाना जीवामृत और धान्यांकुर अर्क बनाने की विधि जानने के लिए लगभग 10 से 15 किसानों के फोन भी आ रहे है। यही वजह है कि अब इन किसानों को अलग से यह जानकारी देने के लिए ऑनलाइन पोर्टल अलग बनाने की योजना भी बनाई जा रही है। फिलहाल मौजूदा समय में जिला के किसान व बागबानों को व्हट्सएप ग्रुप पर जीवामृत व सप्त धान्यांकुर बनाने के टीप्स दिए जा रहे हंै। जानकारी के अनुसार सप्त धान्यांकुर अर्क बनाने के लिए एक कटोरी में तिल के बीजों को थोड़े पानी में रातभर भिगोकर रखना पड़ेगा। दूसरे दिन उपरोक्त बीजों को मिलाकर रात भर फिर से पानी में रखें। विभागीय जानकारी के अनुसार तीसरें दिन सातों प्रकार के बीजों को पानी से निकालकर एक पोटली में बाध्ंाकर घर के अंदर बांधकर अंदर ही टांग कर पानी को सुरक्षित रखने के भी निर्देष दिए गए है। इसी तरह सात बीजों के मिश्रण से बनी यह प्राकृतिक स्प्रे किसानों के लिए बड़ी लाभदायक सिद्ध होगी। बता दें कि सप्त धान्यांकुर अर्क का उपायोग 48 घंटों के अंदर किसान-बागबानों को करना होगा। विभाग का दावा है कि सप्त धान्याकंुर अर्क छिड़कने से बीजों पर चमक आती है, वहीं फलों का गिरना बंद होता है, फली में दाने पूरे भरते हंै। बताया जा रहा है कि अगर इस सप्त बीजों के मिश्रण को फसलों पर छिड़काएं तो इससे दानों का भार व आकार भी बड़ता है। अहम यह है कि दानों में सुगंध बढ़ने के साथ ही प्राकृतिक आपदाओं को सहन करने की शक्ति भी बढ़ती है। जिला कृषि विभाग का दावा है कि यह सप्त धान्यांकुर अर्क के इस्तेमाल से रासायनिक स्प्रे से होने वाले नुकसान से भी किसानों को राहत मिलेगी, इसके साथ फसलों में लगने वाले कीड़ों से भी छुटकारा मिलेगा।
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