किसी अजूबे से कम नहीं हैं महाभारत के पात्र

By: May 25th, 2019 12:05 am

अहमदिया आधुनिक युग का एक पंथ है। कृष्ण को उनके मान्य प्राचीन प्रवर्तकों में से एक माना जाता है। अहमदी खुद को मुसलमान मानते हैं, लेकिन वे मुख्यधारा के सुन्नी और शिया मुसलमानों द्वारा इस्लाम धर्म के रूप में खारिज करते हैं जिन्होंने कृष्ण को अपने भविष्य-वक्ता के रूप में मान्यता नहीं दी है। गुलाम अहमद ने कहा कि वह स्वयं कृष्ण, यीशु और मुहम्मद जैसे भविष्य-वक्ताओं की तरह एक भविष्य-वक्ता थे जो धरती पर धर्म और नैतिकता के उत्तरार्द्ध पुनरुद्धार के रूप में आए थे…

-गतांक से आगे…

सिख धर्म

कृष्ण को चौबीस अवतार में कृष्ण अवतार के रूप में वर्णित किया गया है जो परंपरागत रूप से और ऐतिहासिक रूप से गुरु गोबिंद सिंह को समर्पित दशम ग्रंथ है।

बहाई पंथ

बहाई पंथियों का मानना है कि कृष्ण ईश्वर के अवतार हैं, भविष्य-वक्ताओं में से एक हैं जिन्होंने धीरे-धीरे मानवता को परिपक्व बनाने हेतु भगवान की शिक्षा को प्रकट किया है।

अहमदिया

अहमदिया आधुनिक युग का एक पंथ है। कृष्ण को उनके मान्य प्राचीन प्रवर्तकों में से एक माना जाता है। अहमदी खुद को मुसलमान मानते हैं, लेकिन वे मुख्यधारा के सुन्नी और शिया मुसलमानों द्वारा इस्लाम धर्म के रूप में खारिज करते हैं जिन्होंने कृष्ण को अपने भविष्य-वक्ता के रूप में मान्यता नहीं दी है। गुलाम अहमद ने कहा कि वह स्वयं कृष्ण, यीशु और मुहम्मद जैसे भविष्य-वक्ताओं की तरह एक भविष्य-वक्ता थे जो धरती पर धर्म और नैतिकता के उत्तरार्द्ध पुनरुद्धार के रूप में आए थे।

भीष्म पितामह

भगवान परशुराम के शिष्य देवव्रत अपने समय के बहुत ही विद्वान व शक्तिशाली पुरुष थे। महाभारत के अनुसार हर तरह की शस्त्र विद्या के ज्ञानी और ब्रह्मचारी देवव्रत को किसी भी तरह के युद्ध में हरा पाना असंभव था। उन्हें संभवतः उनके गुरु परशुराम ही हरा सकते थे, लेकिन इन दोनों के बीच हुआ युद्ध पूर्ण नहीं हुआ और दो अति शक्तिशाली योद्धाओं के लड़ने से होने वाले नुकसान को आंकते हुए इसे भगवान शिव द्वारा रोक दिया गया। इन्हें अपनी उस भीष्म प्रतिज्ञा के लिए भी सर्वाधिक जाना जाता है जिसके कारण इन्होंने राजा बन सकने के बावजूद आजीवन हस्तिनापुर के सिंहासन के संरक्षक की भूमिका निभाई। इन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया व ब्रह्मचारी रहे। इसी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए महाभारत में इन्होंने कौरवों की तरफ  से युद्ध में भाग लिया था। इन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान था। यह कौरवों के पहले प्रधान सेनापति थे जो सर्वाधिक दस दिनों तक कौरवों के प्रधान सेनापति रहे थे। कहा जाता है कि द्रौपदी ने शरशय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह से पूछा कि उनकी आंखों के सामने चीरहरण हो रहा था और वे चुप रहे, तब भीष्म पितामह ने जवाब दिया कि उस समय मैं कौरवों का नमक खाता था, इस वजह से मुझे मेरी आंखों के सामने एक स्त्री के चीरहरण का कोई फर्क नहीं पड़ा। परंतु अब अर्जुन ने बाणों की वर्षा करके मेरा कौरवों के नमक ग्रहण से बना रक्त निकाल दिया है, अतः अब मुझे अपने पापों का ज्ञान हो रहा है। अतः मुझे क्षमा करें द्रौपदी। वैसे भीष्म पितामह को वीर पुरुष माना जाता है। उनके पास अनेक शक्तियां थीं और किसी के पास उन्हें हराने का सामर्थ्य नहीं था। श्रीकृष्ण ने युद्ध से पहले संकल्प लिया था कि वे इस युद्ध में हथियार नहीं उठाएंगे, किंतु भीष्म पितामह ने ऐसा भयंकर युद्ध किया कि श्रीकृष्ण शस्त्र उठाने के लिए बाध्य हो गए। फिर उन्हें याद दिलाना पड़ा कि उन्होंने इस युद्ध में शस्त्र न उठाने का संकल्प ले रखा है। तब जाकर श्रीकृष्ण को अपने संकल्प का ख्याल आया। वैसे एक बार तो वह भी शस्त्र उठाने के लिए बाध्य हो गए थे।  


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