खोखले बीजों पर किसानों ने पकड़ा सिर महकमे का दावा, ऐसा कुछ नहीं

By: May 5th, 2019 12:08 am

ऊना के दीनालाल ने लाख कोशिशें कीं, लेकिन खेत में भिंडी नहीं उगी, इसी तरह पांवटा के संतोष ने टमाटर की पनीरी डाली, तो बीज फूट ही नहीं बन पाया। कुछ ऐसी ही कहानी थी कांगड़ा के रमेश की, उनके खेत में इस बार गेहूं का सिल्ला ढाई इंच भी नहीं बन पाया है। खैर, अब बेहद अहम फसल धान का सीजन सिर पर है। ऐसे में किसान फिर कन्फयूज हैं। किसानों की ओर से लगातार मिल रही शिकायतों पर अपनी माटी के लिए दिव्य हिमाचल ने प्रदेश के कई स्थानों पर किसानों से बात की, तो पता चला कि उन्हें बीजों से शिकायत है। बीज चाहे विभागीय हों या फिर ओपन मार्केट, दोनों ओर से शिकायत है। किसानों के सवालों का जवाब जानने के लिए हमारी टीम सीधे पहुंची डायरेक्टर एग्रीकल्चर देशराज के पास। हमारी सहयोगी प्रतिमा चौहान ने उनसे बात की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश…

 एग्रीकल्चर डायरेक्टर, देशराज

हिमाचल में बीज कैसे प्रमाणित होता है?

हिमाचल में बीज प्रमाणित करने के लिए स्पेशल एजेंसी है। यह एजेंसी बाहर से आने वाले और अपने यहां तैयार होने वाले बीजों पर पूरा नियंत्रण रखती है।

बीज विक्रेताओं पर कौन चैक रखता है?

बीज विक्रेताओं के समय-समय पर लाइसेंस चैक किए जाते हैं। इंस्पेक्टर की इन पर कड़ी नजर रहती है। नियमों की अनदेखी पर कड़ी कार्रवाई अमल में लाई जाती है।

प्रदेश में सबसे ज्यादा खपत किस बीज की होती है?

हिमाचल में खरीफ सीजन में सबसे ज्यादा खपत मक्की के बीज की होती है। करीब 14 हजार क्विंटल मक्की का बीज यहां लगता है। इसके बाद धान, सब्जी आते हैं।

विभाग बीज कैसे मुहैया करवाता है?

विभाग सरकारी और निजी दोनों स्तरों पर किसानों के लिए बीजों का इंतजाम करता है।

असली और नकली बीज का पता कैसे लगाया जाता है?

दरअसल नकली बीज की धारणा ही गलत है। बीज कभी नकली नहीं होता। बीज सब स्टैंडर्ड हो सकता है, जिसमें कम पोषक तत्त्व होंगे, वह पिट जाएगा। हमारा प्रयास रहता है कि किसानों को बेहतर क्वालिटी के बीज मुहैया करवाए जाएं। बहरहाल विभाग तो यहां तक कहता है कि बीज नकली नहीं होते, सब स्टैंडर्ड होते हैं, लेकिन किसानों का कहना है कि कुछ भी कह लें, नुकसान तो उन्हीं को उठाना पड़ रहा है।

– प्रतिमा चौहान, रुचिका चंदेल, शिमला

5 बीघा में जैविक खेती, गेहूं का एक दाना न मिला

प्रदेश सरकार के जैविक खेती को बढ़ावा देने के प्रयास कारगर होते नहीं दिख रहे हैं। जोगिंद्रनगर में कृषि विभाग क ी 86 बीघा भूमि में से लगभग 5 बीघा भूमि पर जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए बोई गई गंदम की खेती में न के बराबर पैदावार होने से सरकार द्वारा इस दिशा में किए गए प्रयासों को धक्का ही लगा है। प्रदेश के राज्यपाल द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने क ा आह्वान किसानों से किया गया था, लेकिन विभाग द्वारा जोगिंद्रनगर के कृषि फ ार्म में इस दिशा में अब तक किए गए प्रयासों क ो सफ लता मिलती नहीं दिखाई दे रही है। इसके पीछे कारण चाहे जो भी रहे हों, लेकिन जैविक खेती क ो बढ़ावा देने का प्रथम प्रयास फिलहाल असफल ही साबित हुआ है। कृषि विभाग जोगिंद्रनगर द्वारा जीरो प्रतिशत मेनुअल केमिकल पद्धति के अंर्तगत जोगिंद्रनगर के कृषि फ ार्म में लगभग 5 बीघा भूमि पर एक छोर पर बोई गई गंदम की खेती आशानुकूल नहीं बढ़ पाई है, लेकिन दूसरी तरफ  युरीया खाद व केमिकल के उपयोग द्वारा बोई गई खेती अपने पूरे यौवन में लहरा रही है तथा दोनों फसलों में साफ अंतर देखा जा सकता है। जैविक खेती के उपयोग में लाए गए गंदम के बीजों को मानो पोलिया मार गया हो। गंदम के पौधे पूरे खेतों में न तो उग पाए हैं न ही उनकी बढ़ोतरी हो पाई है। हालांकि कृषि विभाग द्वारा जैविक खेती को बिना यूरिया व केमिकल के छिड़काव के तैयार करना था इसकी जगह विभाग को विजा मृत,व जीव मृत यानी गौमूत्र तथा देसी गाय के गौबर से इसको तैयार करना था, लेकिन लगता है कि विभाग इन दोनों चीजों का प्रयोग करने में नाकामयाब साबित हुआ है। फि लहाल सुरक्षित खाद्य भंडार लोगों को उपलब्ध करवाने की दिशा में विभाग के कदम रुकते नजर आ रहे हैं। पौधों का विस्तार नहीं होने का कारण पिछले कई वर्षों से खेतों की मिट्टी में कि ए जा रहे केमिकल छिड़काव व यूरीया खाद का डालना भी बताया जा रहा है।

– हरीश बहल, जोगिंद्रनगर

क्या कहते हैं अधिकारी

कृषि विभाग जोगिंद्रनगर के कृषि प्रसार अधिकारी पूर्ण चंद के अनुसार प्रदेश सरकार के आदेश पर जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जोगिंद्रनगर कृ षि विभाग की लगभग पांच बीघा जमीन पर यह खेती बोई गई है, लेकिन उम्मीद के मुताबिक यह फ सल तैयार नहीं हो पाई है इसके कारण ढूंढ कर सफ लता हासिल करने के लिए विभाग तत्पर रहेगा।

पहले बारिश ने बिछाई गेहूं बाद में आग ने जलाई

हिमाचल में 6 माह की कड़ी मेहनत के बाद गेहूं की फसल तैयार तो हो गई ,लेकिन अब इंद्रदेव मानों किसानों के दुश्मन बन बैठे हैं। पहले जगह-जगह बारिश और ओलों ने पकी फसल खेतों में बिछा दी और आग कहर बरपा रही है। प्रदेश भर में आग से गेहूं के हुए नुकसान की पड़ताल की, तो पता चला कि किसानों की लाखों की फसल तबाह हुई है। जानकारी के अनुसार कांगड़ा जिला के डमटाल इलाके में  गांव बाई अटरिया गांव में कई एकड़ पर फसल जलकर स्वाह हो गई। इससे पहले कि फायर ब्रिगेड टीम लपटें काबू करती, लाखों रुपए की फसल राख हो चुकी थी। कांगड़ा के ही राजा का तालाब में 15 कनाल पर गेहूं जल गई। इसी तरह ऊना जिला में अंब की दिलवा पंचायत में चार कनाल पर खड़ी गेहूं जल गई। पुलिस ने आग के कारणों की पड़ताल तेज कर दी है। ऊना जिला में ही अमलैहड़, कैलाशनगर और अपर देहलां से भी आग से गेहूं का नुकसान की खबर है। उधर, सोलन जिला के नालागढ़ में दो स्थानों पर गेहूं आग की भेंट चढ़ गई। 

– डिजिटल टीम

किन्नौर में फ्लावरिंग के बीच हिमपात सेब का बिगड़ा खेल

कल रात से ही किन्नौर जिला के निचले व मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रुक-रुक कर तेज बारिश होने के साथ ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी का दौर शुरू हो गया है। मौसम में आए इस बदलाब के कारण किन्नौर के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तापमान शून्य से भी नीचे दर्ज किया जा रहा है जबकि दो दिन पूर्व ही जिला में तेज गर्मी ने लोगों को स्वेटर तक उतरवा दिए थे। मौसम में आई इस बदलाव के कारण किन्नौर के जिन क्षेत्रों में इन दिनों सेब के पौधों पर फ्लावरिंग चल रहा है उन क्षेत्रों के बागबानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। बागबानी के माहिरों का मानना है कि यदि सेब फ्लावरिंग के दौरान रात के समय में तापमान माइंस डिग्री में चला जाता है तो उसे सेब सेटिंग के लिए घातक माना गया है। जिला किन्नौर में कल रात से मौसम में आई इस बदलाब के चलते पर्यटन स्थल छितकुल व आसरंग में करीब आठ इंच बर्फ  पड़ने के साथ नेसंग, रकछम , नाको, रोपा, कल्पा , पूह आदि क्षेत्रों में दो से चार इंच के बीच बर्फ  दर्ज किया गया है। जिला मुख्यालय रिकांगपीओ, स्पिलो , पवारी , करछम , चोलिंग, किल्बा , मीरु , उरनी , चगांव , टापरी , जानी , कटगांव , निचार , बरी , वांगतू , भावानगर, निगुलसरी, चोरा आदि क्षेत्रों में जमकर बारिश दर्ज की जा रही है। जिला में हिमपात का यही क्रम रहा, तो सेब को और नुकसान हो सकता है।

– मोहिंदर नेगी, रिकांगपिओ 

 गुच्छी की बहार

सराज-नाचन के ऊपरी क्षेत्रों में आजकल गुच्छियों की बहार है। हिमाचल सहित हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली गुच्छी संपूर्ण विश्व में अत्यधिक लोकप्रिय है। गत दिनों से हो रही बारिश से वन क्षेत्र के समीप रहने वाले लोगों को गुच्छी के अच्छे सीजन की उम्मीद बंध गई है। अधिकतर परिवारों के सदस्य प्रातः काल ही गुच्छी की तलाश में निकलकर शाम तक काफी मात्रा में गु्च्छीयां एकत्रित कर घर लौटते हैं। बागबानी निदेशालय शिमला में कार्यरत वैज्ञानिक डाक्टर शरद गुप्ता का कहना है कि समुद्रतल से 1800 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाने वाली इस गुच्छी में प्रोटीन की मात्रा 42 प्रतिशत तक पाई जाती है। इसके अतिरिक्त अपने अलग स्वाद के लिए जाने जानी वाली इस फफूंद प्रजाति में खनिज पदार्थ भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। गुच्छी को भोजन के रूप में इस्तेमाल करने के इलावा इसे दवाइयां बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है। एक आंकलन के अनुसार विश्व भर में प्रति वर्ष 150 टन सूखी गुच्छियों का उत्पादन होता है। जिसमें 50 टन केवल भारत और पाकिस्तान में ही होता है। इस उत्पादन का लगभग 95 प्रतिशत दूसरे देशों को निर्यात किया जाता है। पांगणा के समाजसेवी डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि गुच्छी ढूंढना कोई आसान कार्य नहीं है। कई बार तो दिन भर जंगलों-बागीचों-खेतों की खाक छानने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगता। डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि गुच्छी औषधीय गुणों से भरपूर है। इसमें ऊर्जा, प्रोटीन, पोटैशियम, आयरन आदि पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते है। यह सूजनरोधी, दिल के दौरों से मानव को सुरक्षा प्रदान करने वाली, थकान हरने वाली, प्रोस्टेट और स्तन कैंसर की संभावना को तथा मानव शरीर में पाए जाने वाले हानिकारक प्रभावों को कम करने में  भरपूर है।  – नरेंद्र शर्मा, करसोग

जंगली फर्न लिंगड़

मंजू लता सिसोदिया

सहायक प्राध्यापक वनस्पति

विज्ञान, एमएलएसएम कालेज सुंदरनगर एवं भूतपूर्व सहायक प्राध्यापक वनस्पाति विज्ञान केंद्रीय विश्वविद्यालय वाराणासी

गर्मियों का मौसम आते ही अकसर आपने नदी, नालों तालाबों और पानी वाली जगह जहां नमी रहती है। आपकी नजर फर्न प्रजाती के पौधे पर जरूर गई होगी, जो कि गर्मी के मौसम शुरू होते ही हमारे नदी नालों और नमी वाली जगह पर उगना शुरू हो जाता है। इसे हम स्थानीय भाषा में लिंगड़, लिंगडू इत्यादि नामों से जानते हैं। यह एक खाने योग्य फर्न है। और इसका वानस्पातिक नाम डिपलेजियम ऐसकुलेंटम है। यह लगभग 50 सेमी. लंबा होता है। यह सामान्यता जंगली पौधा है। भरपूर है इसके साथ विभिन्न गुणों से भी भरपूर है। इसके कोमल पत्तों का उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। पौधे के सजाबट के रूप में भी उपयोग किया जाता है। जिस मिट्टी में पौधा अच्छा बढ़ता है। इसके सिरे में जो गोला आकार रिंग बनता है उसे र्मोचे के नाम से भी जाना जाता है। इसके  कोमल पत्तों को उबालकर सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है और इसका आचार भी बनाया जाता है। इस पौधे का उपयोग पारंपारिक चिकित्सा में भी किया जाता है। इसकी पत्तियों का काढ़ा टॉनिक का काम करता है। इसमें अर्क में कई प्रकार के पदार्थ पाए जाते हैं जो कि एंटिआक्सीडेंट का काम करते ,जो कि हमें तरो-ताजा और कई बीमारियों से मुक्त रखते हैं। बिना कोई कीमत चुकाए हम इस शानदार और गुणों से भरपुर जंगली सब्जी का आनंद ले सकते हैं। 

फोन न. 9418124980

माटी के लाल

केंचुआ खाद से बनाई स्प्रे ने किया कीड़ों का काम तमाम

आपने केंचुआ खाद से फसल की पैदावार बढ़ते देखी होगी, लेकिन हम केंचुआ खाद का वह गुण बताने जा रहे हैं, जिससे आप दंग रह जाओगे। हिमाचल के एक होनहार किसान ने खाद से निकाले केंचुए को धोकर वर्मी वाश तैयार किया है। यह स्प्रे इतनी इफेग्टिव है कि फसलों पर लगे कीड़े पर पड़ते ही उसका नामोनिशान मिटा दे रही है। यह कारनामा करने वाले किसान का नाम है राम कुमार। राम ऊना जिला के देहलां गांव निवासी हैं। दिव्य हिमाचल अपनी माटी की टीम ने उनसे मुलाकात की। पुलिस से बतौर इंस्पेक्टर रिटायर राम कुमार ने बताया कि फलदार बूटों पर इस स्प्रे का असर दोगुना होता है,जबकि दूसरे पौधों पर भी यह कमाल का असर डालती है।

टिप्स: मैं यही कहना चाहूंगा कि आप कितने भी बड़े अफसर बन जाओ, पर अपनी जमीन से जुड़े रहो। यह हमें स्वस्थ जीवन और शुद्ध भोजन देती है।                                  – एमके जसवाल, ऊना

किसान बागबानों के सवाल

गमिर्यों में पौधों का हर दिन  कितने प्रतिशत पानी की जरूरत होती है।

आप सवाल करो, मिलेगा हर जवाब

आप हमें व्हाट्सऐप पर खेती-बागबानी से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी भेज सकते हैं। किसान-बागबानों के अलावा अगर आप पावर टिल्लर-वीडर विक्रेता हैं या फिर बीज विक्रेता हैं,तो हमसे किसी भी तरह की समस्या शेयर कर सकते हैं।  आपके पास नर्सरी या बागीचा है,तो उससे जुड़ी हर सफलता या समस्या हमसे साझा करें। यही नहीं, कृषि विभाग और सरकार से किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा तो हमें नीचे दिए नंबरों पर मैसेज और फोन करके बताएं। आपकी हर बात को सरकार और लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।

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