गतिशील होगी अर्थव्यवस्था

By: May 27th, 2019 12:07 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

 

ऐसे में इस बार भी 17वीं लोकसभा चुनावों में दुनिया की सबसे अधिक विकास दर और बढ़ते हुए विदेशी मुद्रा भंडार, रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचे निर्यात, दुनिया के निवेशकों का भारत में बढ़ता हुआ आर्थिक विश्वास चमकीले रूप में प्रभावी रहे हैं। देश के करोड़ों मतदाता यह कहते हुए दिखाई दिए कि नरेंद्र मोदी के आर्थिक कदम देश के लिए अच्छे हैं…

यकीनन लोकसभा चुनाव 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की जीत में आर्थिक मुद्दों की भी अत्यधिक अहमियत रही है। 17वीं लोकसभा चुनावों के नतीजों को तय करने में आर्थिक कारक भी विशेष प्रभावी रहे हैं। यदि हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूरे लोकसभा चुनाव के अभियान की तस्वीर को देखें, तो पाते हैं कि इस तस्वीर में रोजगार वृद्धि, अर्थव्यवस्था की तेज गतिशीलता, कृषि, ग्रामीण विकास, बुनियादी ढांचा, विकास, कारोबार संबंधी हितों तथा महंगाई पर नियंत्रण जैसे बार-बार प्रस्तुत किए गए मुद्दे चमकते हुए दिखाई दे रहे हैं। निश्चित रूप से देश की आजादी के बाद से 16वीं लोकसभा चुनावों तक कहीं न कहीं आर्थिक मुद्दे आगे बढ़ते रहे थे, लेकिन वर्तमान 17वीं लोकसभा चुनावों में आर्थिक मुद्दे और सबका विकास जैसे नारे पिछली लोकसभा चुनावों की तुलना में अधिक प्रभावी रहे हैं। पिछले कई चुनावों में खासतौर से जमींदारी प्रथा की समाप्ति, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, गरीबी हटाओ, रोजगार गारंटी, भूमि अधिग्रहण, किसान हित, भ्रष्टाचार हटाओ जैसे आर्थिक मुद्दों ने चुनाव के नतीजों को बहुत कुछ प्रभावित किया था। ऐसे में इस बार भी 17वीं लोकसभा चुनावों में दुनिया की सबसे अधिक विकास दर और बढ़ते हुए विदेशी मुद्रा भंडार, रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचे निर्यात, दुनिया के निवेशकों का भारत में बढ़ता हुआ आर्थिक विश्वास चमकीले रूप में प्रभावी रहे हैं।

देश के करोड़ों मतदाता यह कहते हुए दिखाई दिए कि नरेंद्र मोदी के आर्थिक कदम देश के लिए अच्छे हैं और एक मजबूत आर्थिक भारत ही दुनिया में परचम फहराते हुए आगे बढ़ सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी तथा जीएसटी की प्रारंभिक तकलीफों के बाद इनके दिखाई दे रहे लाभ तथा पाकिस्तान सहित दुनिया के कई देशों में महंगाई बढ़ने के बावजूद भारत में महंगाई नियंत्रित रहने जैसे लगातार वक्तव्यों का भी करोड़ों मतदाताओं पर अनुकूल प्रभाव पड़ा है। वस्तुतः मोदी सरकार महंगाई को लेकर सतर्क रही और भाग्यशाली भी रही। भाग्यशाली इसलिए रही कि मोदी  सरकार के कार्यकाल के पहले चार सालों में कच्चे तेल की कीमतें घटीं और अंतिम पांचवें साल में तेल की कीमतें कुछ ही बढ़ी थीं। परिणामस्वरूप छलांगें लगाकर बढ़ते हुए तेल आयात के बिल में कमी आई और उसकी एक बड़ी धनराशि बुनियादी क्षेत्र के विकास पर लगाई जा सकी।   

इसमें कोई दोमत नहीं है कि देश में रोजगार पूरे चुनाव के दौरान एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बना रहा। जहां एक ओर मोदी का विरोध करने वालों ने कहा कि देश में नौकरियां तेजी से घटी हैं, वहीं दूसरी ओर मोदी के वक्तव्यों में यह बात उभरकर सामने आई कि देश में स्वरोजगार बढ़ा है। 17 करोड़ लोगों को मुद्रा योजना के तहत आसान ऋण देकर स्वरोजगार और उद्यमिता की तरफ आगे बढ़ाया गया है। साथ ही कर्मचारी भविष्य निधि योजना (ईपीएफओ) के तहत संगठित क्षेत्र में अधिक लोगों को रोजगार दिए जाने के आंकड़े भी जोरदार ढंग से प्रस्तुत किए गए। यह साफ-साफ बताया गया  कि स्वरोजगार के माध्यम से नई पीढ़ी को रोजगार के अवसर प्रभावी रूप से उपलब्ध कराए गए हैं। निश्चित रूप से नई पीढ़ी को मुस्कुराहट देने के लिए रोजगार वृद्धि तथा नई पीढ़ी की मुट्ठियों को रोजगार अवसरों से भरपूर करने के लिए मोदी सरकार द्वारा जो घोषणाएं की गईं, उससे भी युवा नरेंद्र मोदी की तरफ आकर्षित हुए। इसके साथ ही किसानों को लाभान्वित करने के लिए बनाई गई योजनाओं और गरीब किसानों के लिए छह हजार रुपए प्रतिवर्ष उनके खातों में जमा करने की किसान आय समर्थन योजना तथा विभिन्न कृषि पदार्थों के समर्थन मूल्यों में वृद्धि के कदमों को ग्रामीण मतदाताओं का समर्थन मिला। निस्संदेह वर्ष 2018-19 में देश की विकास दर सात फीसदी से अधिक है, जो दुनिया में सर्वाधिक है और आने वाले वर्षों में भी भारत की विकास दर ऊंचाई पर बने रहने की संभावनाओं की जो अध्ययन रिपोर्टें प्रस्तुत हुईं, उसका भी मतदाताओं पर गहरा प्रभाव पड़ा। वास्तव में जीडीपी की वृद्धि दर किसी भी सरकार की सफलता की एक बड़ी कसौटी होती है। वर्ष 2014 में जब यूपीए सरकार सत्ता से बाहर गई, तो उसका एक बड़ा कारण जीडीपी में भारी कमी आना भी रहा। ऐसे में वर्ष 2025 तक पांच हजार अरब रुपए वाली भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास रचने के लिए 17वीं लोकसभा के चुनावों के दौरान मोदी सरकार ने देश की सालाना आर्थिक वृद्धि दर को 8 से 8.5 फीसदी ले जाने की बात कही। उल्लेखनीय है कि देश के करोड़ों मतदाताओं ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि एक मजबूत नेतृत्व से मजबूत सरकार आर्थिक विकास को आगे बढ़ा सकती है। ऐसे में यदि भारत उपयुक्त विकास रणनीति के साथ आगे बढ़ेगा, तो वर्ष 2030 तक भारत दुनिया की तीसरी आर्थिक बड़ी शक्ति बन जाएगा। निश्चित रूप से 2016 की नोटबंदी और 2017 की जीएसटी के कारण लोगों की मुश्किलें अब कम हुई हैं और ये दोनों मुद्दे इस चुनाव में मतदाताओं पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डाल पाए। इसमें कोई दोमत नहीं है कि जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं की ढुलाई सुगम हुई और टैक्स भी एक समान हुए।

कम्प्यूटरीकृत कर अनुपालन व्यवस्था लागू होने से इसमें मानवीय हस्तक्षेप भी बहुत कुछ खत्म हो गया, जिसके कारण दलाली और भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगा है। उद्यमी और व्यापारियों ने भी जीएसटी के लाभों को समझते हुए मोदी सरकार को समर्थन देना उपयुक्त समझा है। साथ ही नोटबंदी के बाद जिस तरह से डिजिटलीकरण हुआ है और कालेधन पर बहुत कुछ नियंत्रण हुआ है, उसके लाभों को भी मतदाताओं द्वारा समझा गया है। निश्चित रूप से छलांगें लगाकर बढ़ते हुए भारत के उपभोक्ता बाजार और भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में जिस मध्यम वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, उस मध्यम वर्ग ने एक बार फिर मोदी सरकार की जीत सुनिश्चित कराने में प्रभावी भूमिका निभाई है। देश की आबादी में मध्यम वर्ग की संख्या करीब 40 फीसदी के करीब है, यानी देश की 52 करोड़ आबादी मध्यम वर्ग के दायरे में आती है। नरेंद्र मोदी सरकार ने मध्यम वर्ग का झुकाव अपनी ओर करने के लिए उद्योग और कारोबार के लिए सरल नियम, ऋण में सरलता और इन्कम टैक्स दर में कमी जैसे वादे करके मध्यम वर्ग को प्रभावित किया, जिससे इस वर्ग की भूमिका नरेंद्र मोदी की वापसी में अहमियत लिए हुए दिखाई दे रही है।

इसके साथ ही मध्यम वर्ग शेयर बाजार की नई उम्मीदों से भी प्रभावित हुआ है। यह अनुभव किया गया कि शेयर बाजार की ऊंचाई के लिए ऐसी मजबूत सरकार जरूरी है, जो अधिक लोकलुभावन कदम नहीं उठाए और उद्योग-व्यापार को प्रोत्साहन देते हुए दिखाई दे। यद्यपि देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष कदम-कदम पर चुनौतियां दिखाई दे रही हैं, लेकिन देश और दुनिया के अर्थविशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक स्थिर तथा उपयुक्त निर्णय लेने वाली सरकार आर्थिक चुनौतियों से निपटते हुए देश को विकास की डगर पर आगे बढ़ाएगी। हम आशा करें कि नरेंद्र मोदी की नई सरकार एक कदम वित्तीय अनुशासन को कायम रखने तथा कृषि और रोजगार को अहमियत देने के लिए आगे बढ़ाएगी, वहीं दूसरा कदम देश के आम आदमी के जीवन को आर्थिक और सामाजिक खुशियों से संवारने के लिए आगे बढ़ाएगी।


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