गुटबाजी के भंवर में फंसी प्रदेश कांग्रेस

शिमला —लोकसभा चुनाव में भी गुटबाजी से उभरना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। हालांकि संगठन गुटबाजी के खत्म होने की बात बार-बार करता है, लेकिन जिस तरह कांग्रेस के नेताआें के एक-दूसरे को लेकर सार्वजनिक रूप से बयान आए, उससे साफ है कि अभी भी कांग्रेस गुटबाजी के भंवर में फंसी है, जो बाहर नहीं निकल पा रही। इसकी पूरी सूचना कांगे्रस प्रभारी रजनी पाटिल और हाइकमान को भी है, जिनसे फटकार लगने के बाद माहौल थोड़ा सुधरा जरूर है, लेकिन यह कब तक कायम रहेगा, यह कहा नहीं जा सकता। इसके साथ कांग्रेस के अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर का पासा पलटने से भी संगठन में कुछ नेता परेशान हैं, जो कभी वीरभद्र सिंह के विरोधी दल में थे, वह आज उन्हीं का हाथ पकड़कर आगे चल रहे हैं, जिससे आनंद शर्मा का खेमा परेशान हो उठा है। राठौर के लिए यह मजबूरी है, क्योंकि बिना वीरभद्र के यहां कांग्रेस का अस्तित्व नहीं माना जाता। इस चुनाव में भी वीरभद्र सिंह एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिन्होंने कांग्रेस की ओर से राजनीतिक माहौल को गर्म रखा है। 23 मई को कांग्रेस की गुटबाजी का भंवर कितना फूटेगा या फिर थम जाएगा, यह चुनाव के नतीजे बताएंगे। इन नतीजों पर कांग्रेस संगठन का काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है। राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा और विप्लव ठाकुर के अलावा पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुक्खू यह बात पचा नहीं पा रहे कि कभी उनके साथ रहकर वीरभद्र सिंह के विरोध का झंडा उठाने वाले कुलदीप राठौर आज वीरभद्र सिंह की गोद में बैठ गए हैं। अब नौबत यह है कि दोनों गुटों के बीच सांप और नेवले की जोरदार लड़ाई बंद कमरों से निकलकर चुनावी मंचों तक आ गई है।

जनाधार बचाने में लगे वीरभद्र सिंह

एक तरफ वीरभद्र सिंह अपना जनाधार बचाने की कोशिश में लगे हैं, वहीं, आलाकमान के नुमाइंदे बने आनंद शर्मा को चुनौती देने से भी पीछे नहीं हट रहे। कांगड़ा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी पवन काजल के नामांकन पत्र भरने के वक्त दोनों गुटों की लड़ाई चरम सीमा पर दिखाई दी। हमीरपुर में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला, जिसके बाद वीरभद्र   हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में नहीं जा रहे।

जीएस बाली को किया जा रहा नजर अंदाज

कांगड़ा में वरिष्ठ नेता जीएस बाली को नजरअंदाज किया जा रहा है, वहीं हमीरपुर में संगठन की गंदगी हटाने तक की बात उछल पड़ी। मंडी में भी पंडित सुखराम को लेकर अभी तक नेताओं में विरोधाभास चल रहा है, हालांकि वीरभद्र सिंह यहां प्रचार में जोर दे रहे हैं, लेकिन पंडित सुखराम को नहीं मानने की बात कहकर कहीं न कहीं अभी भी उनका मनमुटाव कायम है।