चने के जेनेटिक कोड की खोज

उच्च पैदावार वाली किस्म तैयार करने में मिलेगी मदद

नई दिल्ली -कृषि वैज्ञानिकों ने विश्व में पहली बार चने के आनुवांशिक अनुक्रम (जेनेटिक कोड) का पता लगा लिया है, जिससे जलवायु परिवर्तन के बावजूद रोग प्रतिरोधी उच्च पैदावार वाली चने की प्रजाति विकसित करने में मदद मिलेगी। इस अनुसंधान के दौरान चने की पैदावार के मूल स्थान और फिर उसके दूसरे स्थानों पर पहुंचने का भी पता चला है। इस खोज की मदद से अब चने की ऐसी  प्रजातियां विकसित की जा सकेंगी, जो उच्च पैदावार के साथ जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के अनुकूल होंगी। वैश्विक स्तर के 21 शोध संस्थानों के वैज्ञानिकों ने 45 देशों से मिली चने की 429 प्रजातियों का सफलतापूर्वक अनुक्रम करके सूखे और गर्मी के प्रति सहिष्णुता रखने वाले नए-नए जीन की खोज की है। इस टीम का नेतृत्व हैदराबाद स्थित इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट््यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (एकरीसैट) के डा. राजीव वार्ष्णेय ने किया। इस टीम में भारतीय अनुसंधान परिषद के दो महत्त्वपूर्ण संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के अलावा 19 संस्थानों के वैज्ञानिक शामिल हैं। ज्यादातर भारतीय आहारों में चना प्रोटीन का प्रमुख स्रोत है और भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। दलहन देश में कृषि के केंद्र में है और इस नए शोध से भारत को दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। वैज्ञानिकों के इस प्रयास ने चने की फसल की आनुवंशिक विविधता, उद्गम और उससे जुडे़ कृषि संबंधी लक्षणों को समझने में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है।