चुनाव प्रणाली सरल बनाने की जरूरत

By: May 23rd, 2019 12:05 am

सुरेश शर्मा

लेखक, नगरोटा बगवां से हैं

चुनावी ड्यूटी लगाते समय कर्मचारियों के वेतनमान व पद की गरिमा का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए। प्रायः कम वेतनमान के अधिकारियों को सेक्टर ऑफिसर तथा उच्च अधिकारियों को पीठासीन अधिकारी बना दिया जाता है। चुनावी ड्यूटी को कर्मचारियों की सेवा पंजिका में दर्ज किया जाना चाहिए, ताकि बार-बार अपने चुनावी कर्त्तव्य से किनारा करने वालों का पता चल सके…

हाल ही में देश में 17वें संसदीय चुनाव का महायज्ञ संपन्न हुआ, जिसको संपूर्ण करने के लिए लाखों कर्मचारियों ने अपने सहयोग की आहुति दी। सात चरणों में आयोजित इस चुनाव में जहां चुनाव आयोग ने अपनी सशक्त भूमिका निभाई, वहीं पर देश-प्रदेश की जनता भी प्रशंसा व बधाई की पात्र है। इस चुनावी महासमर में निष्पक्ष, निर्भय, शांतिपूर्वक व पारदर्शिता से निर्वाचन आयोग ने अपनी जिम्मेदारी निभाई, वहीं चुनाव में नियुक्त लाखों कर्मचारियों व अधिकारियों के सहयोग के बिना यह महाआयोजन संभव नहीं था। लोकतंत्र के इस पर्व में निश्चित रूप से सभी का सहयोग अपेक्षित होता है और सामूहिक भागीदारी से ही लोकतंत्र मजबूत होता है। लोकसभा चुनावों में मतदाताओं की प्रतिशतता बढ़ाने के लिए प्रदेश चुनाव आयोग ने मतदाता जागरूकता अभियान तथा युवाओं में जोश जगाने के लिए अनेक गतिविधियों के आयोजन करवाए। लोकतंत्र में चुनाव में भाग लेना, चुनाव आयोजित करवाना तथा मतदान करना सभी का राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। चुनाव आयोग सभी कर्मचारियों से कर्त्तव्यनिष्ठा व कर्त्तव्यपरायणता की उम्मीद करता है। वहीं पर चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने वाले कर्मचारी भी चुनाव आयोग से अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने की आशा करते हैं।

हिमाचल प्रदेश चुनाव आयोग ने जहां वोटर अवेयरनेस के लिए पाठशालाओं व महाविद्यालयों में 7681 इलेक्ट्रोल लिट्रेसी क्लब बनाकर, स्वीप अभियान चलाकर लगभग चार लाख वोटर यानी आठ प्रतिशत मतदान बढ़ाकर प्रशंसनीय कार्य किया है, वहीं पर लाखों कर्मचारियों के प्रशिक्षण के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। यह सही है कि प्रशासनिक पकड़ के बिना दोस्ताना व्यवहार से लोकतांत्रिक जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं किया जा सकता। कार्यों में निश्चितता तय करना प्रशासन का दायित्व होता है। वहीं पर बिना दबाव व तनाव से कार्य करने वाले व्यक्तियों को सौहार्दपूर्ण, प्रेमपूर्वक, जागरूक, संवेदनशील व जिम्मेदार बनाने के लिए चुनाव प्रशासन प्रेरक व मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकता है। यह सही है कि इतने बड़े कार्य को सफल बनाने के लिए प्रशासनिक अधिकारी भी तनाव व दबाव में होते हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि चुनाव प्रक्रिया में जुटे कर्मचारियों से चुनाव प्रशासन अत्यधिक पूर्णतः की आशा करता है, जबकि वे केवल चुनाव करवाने के लिए ही नियुक्त नहीं होते हैं तथा यह उनका नियमित कार्य भी नहीं होता। उपमंडल स्तर पर चुनाव के लिए दिया जाने वाला प्रशिक्षण व प्रबंधन बहुत ही निम्न स्तर का होता है। चुनाव प्रक्रिया को पूर्ण सफलता से संपन्न करवाने के लिए एक सशक्त चुनावी प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। प्रदेश में इस लोकसभा चुनाव में दो कर्मचारियों की असमय मृत्यु होना जहां दुखद है, वहीं पर मतदान प्रक्रिया में कोताही बरतने पर 24 कर्मचारियों का निलंबन भी दुर्भाग्यपूर्ण है। उपमंडल स्तर पर कई जगह चुनाव प्रशिक्षण से पूर्व ही कर्मचारियों से सफल चुनाव प्रशिक्षण प्राप्त करने का प्रमाण-पत्र सहायक निर्वाचन अधिकारियों द्वारा प्राप्त कर लिया गया। चुनाव के लिए तैनात कर्मचारियों से सफल चुनाव संपन्नता की पूरी आशा करता है, लेकिन चुनाव आयोग अपने चुनाव सुधारों के लिए कुछ विशेष नहीं करता। 24 कर्मचारियों का निलंबन उनकी कोताही के लिए तो तुरंत हो जाता है, लेकिन इस चुनाव में प्रदेश में 353 ईवीएम खराब पाई गईं, जिससे चुनाव में कर्मचारियों को परेशानी का सामना करना पड़ा, तो इसके लिए कौन सा प्रशासनिक व चुनाव अधिकारी अपनी जिम्मेदारी लेगा? चुनाव ड्यूटी से पूर्व व बाद में कुछ रसूखदार लोगों की ड्यूटी काट दी जाती है। प्रशासनिक अधिकारियों से अच्छे संबंध बना लेने वाले कर्मचारी कभी भी अपनी चुनावी ड्यूटी नहीं देते। अगर चुनाव में कोताही पर कर्मचारियों का निलंबन हो सकता है, तो हर बार चुनाव में अपनी ड्यूटी काटने व कटवाने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो सकती? इस बार हद तो तब हो गई, जब मात्र 10 दिन बाद सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों की भी चुनावी ड्यूटी लगी, जबकि सेवानिवृत्ति के लिए एक वर्ष होने पर उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त रखा जाता है।

इस बार जेसीबी चलाने वाले तथा लोक निर्माण विभाग में मिस्त्री का कार्य करने वाले व्यक्तियों को भी पोलिंग ऑफिसर के तौर पर नियुक्त किया गया। चुनावी ड्यूटी लगाते समय कर्मचारियों के वेतनमान व पद की गरिमा का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए। प्रायः कम वेतनमान के अधिकारियों को सेक्टर ऑफिसर तथा उच्च अधिकारियों को पीठासीन अधिकारी बना दिया जाता है। चुनावी ड्यूटी को कर्मचारियों की सेवा पंजिका में दर्ज किया जाना चाहिए, ताकि बार-बार अपने चुनावी कर्त्तव्य से किनारा करने वालों का पता चल सके। यद्यपि चुनाव दल में सभी सदस्य महत्त्वपूर्ण एवं जिम्मेदार होते हैं, परंतु चुनाव सही ढंग से संपन्न करवाना पीठासीन अधिकारी की अंतिम जवाबदेही होती है।

अपने चुनाव बूथ पर निश्चित कार्यों को सुनिश्चित करते हुए, एक समय सीमा के भीतर पीठासीन अधिकारी पर आवश्यकता से अधिक दस्तावेज तैयार करने का दायित्व भी होता है। कार्यों की अधिकता के कारण पीठासीन अधिकारी की पीठ ही टूट जाती है। इसलिए भारी-भरकम व अनावश्यक लेखन कार्य को कम व व्यवस्थित किया जाना चाहिए। चुनाव संपन्न होने पर रिटर्निंग ऑफिसर के स्तर पर चुनाव सामग्री जमा करवाने की सही व्यवस्था होनी चाहिए। कर्मचारियों की सम्मानपूर्वक अगवाई होनी चाहिए तथा किसी तरह की अव्यवस्था व किसी का अपमान नहीं होना चाहिए। हम सभी चुनाव सुधारों की बात तो करते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में चुनाव आयोग को भी अपने में उचित परिवर्तन कर अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाना चाहिए। चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाया जाना चाहिए तथा सभी कर्मचारियों को चुनाव में राष्ट्रीय कर्त्तव्य के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।


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