जयशंकर को सीधे कैबिनेट मंत्री बनाकर सबको चौंकाया

By: May 31st, 2019 12:03 am

सुब्रह्मण्यम जयशंकर

टाटा समूह के वैश्विक कॉरपोरेट मामलों के प्रमुख

जन्म : 15 जनवरी, 1955 (आयु 64 वर्ष), नई दिल्ली

शिक्षाः सेंट स्टीफन्स कालेज, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, वायुसेना विद्यालय

जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक रहे थे भारत के विदेश सचिव

नई दिल्ली – पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर मोदी सरकार में शामिल होने जा रहे हैं, यह तो शाम को उनके प्रधानमंत्री निवास पर पहुंचने के बाद ही पुष्ट हो गया था, लेकिन सीधे कैबिनेट मंत्री बनाकर नरेंद्र मोदी ने चौंका दिया है। एस जयशंकर ने राष्ट्रपति भवन में कैबिनेट मंत्री की शपथ ली। मोदी कैबिनेट में सुषमा स्वराज की गैर-मौजूदगी की वजह से उन्हें विदेश मंत्रालय मिलने के कयास लगाए जा रहे हैं। इससे पहले पूर्व विदेश सचिव उन चुनिंदा लोगों में थे, जो गुरुवार शाम प्रधानमंत्री मोदी से मिलने उनके आधिकारिक आवास सात लोक कल्याण मार्ग पहुंचे थे। इस मीटिंग में उन लोगों को ही बुलाया गया था, जिन्हें मोदी सरकार 2.0 में मंत्री बनाया जाना था। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद क्रम में 10वें नंबर पर शपथ ली।

डोकलाम विवाद सुलझाने में अहम भूमिका

एस जयशंकर जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक भारत के विदेश सचिव रहे थे। चीन से डोकलाम विवाद को सुलझाने में उनकी बड़ी भूमिका रही थी। इसके अलावा वर्ष 2007 में यूपीए सरकार के कार्यकाल में अमरीका से हुई सिविल न्यूक्लियर डील में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एस जयशंकर को इसी सालपद्मश्री सम्मान से भी नवाजा गया था।

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23 मई को जैसे-जैसे नतीजे बीजेपी के हक में साफ हो रहे थे, देश की नई कैबिनेट की चर्चा जोर पकड़ रही थी। कई बातें स्पष्ट थीं, लेकिन कुछ के गर्भ में अटकलें पल रही थीं। सवाल उठ रहे थे कि नई मोदी सरकार में नंबर 2 कौन होगा। यह अहमियत के साथ-साथ रसूख का सवाल भी था। इसी की पूंछ पकड़कर दूसरा सवाल निकला कि क्या अमित शाह सरकार में शामिल हो सकते हैं। यह सवाल इसलिए उभरा, क्योंकि शाह बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर अपना दूसरा और आखिरी कार्यकाल समाप्त कर चुके हैं। पार्टी को उनका भी उत्तराधिकारी खोजना है। ऐसे कयास और आकलन तब तक होते रहे, जब तक 30 मई की शाम राष्ट्रपति भवन में सजे स्टेज की कुर्सियां भरने नहीं लगीं। ये कुर्सियां उन सांसदों के लिए लगाई गई थीं, जो नरेंद्र मोदी के साथ-साथ मंत्रीपद की शपथ लेने जा रहे थे। इन कुर्सियों पर बैठने वाले तमाम चेहरे परिचित हैं, जो पिछली मोदी सरकार में भागीदार थे। शाम को सात बजकर चार मिनट पर नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इसी के साथ वह सत्ता में लौटने वाले भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के तौर पर इतिहास में दर्ज हो गए। मोदी के बाद शपथ लेने की बारी थी दूसरे नेताओं की, जिनका क्रम अपने-आप में मोदी कैबिनेट में हैसियत-अहमियत बयां करता है। नरेंद्र मोदी के बाद राजनाथ सिंह ने शपथ ली, जो स्टेज पर मोदी की बगल वाली कुर्सी पर बैठे थे। वह पिछली मोदी सरकार में गृहमंत्री थे, जिनका कार्यकाल काफी चुनौती भरा रहा। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ बॉर्डर पर तनातनी हो, देश के आंतरिक हमलों का मसला हो या सैनिकों के भरण-पोषण का मामला। राजनाथ ने बीते पांच साल में मुश्किल सफर तय किया है। जिस नाम के बारे में नंबर 2 होने के कयास लगाए जा रहे थे, उन अमित शाह ने राजनाथ सिंह के बाद शपथ ली। शाह ने राजनाथ सिंह के बाद ही बीजेपी अध्यक्ष का पद संभाला था। उसके बाद उन्होंने हर राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जी-जान से लड़ाया। यह शाह की मेहनत ही थी, जिसने बीजेपी को 2019 में 300 सीटों का आंकड़ा पार करने में मदद की। 2014 से 2019 के बीच मोदी सरकार के सबसे सफल मंत्री के तौर पर जाने जाने वाले गडकरी ने शाह के बाद शपथ ली। पिछली सरकार में वह सड़क-परिवहन मंत्री थे। चुनावी नतीजों से पहले गडकरी के बारे में ये अटकलें भी लगाई जाती रहीं कि अगर बीजेपी अपने बूते सरकार बनाने की स्थिति में न हुई, तो सहयोगी पार्टियां गडकरी के नाम पर सहमत हो सकती हैं।

बेटे ने ली दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ, तो मां ने खुशी से बजाई ताली

अहमदाबाद – भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस मौके पर उनकी मां हीराबेन ने भी शपथ ग्रहण समारोह का लाइव प्रसारण टीवी पर देखा। बेटे को दूसरी बार प्रधानमंत्री बनता देखकर उनकी मां ने खुशी से ताली बजाई। बता दें कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री भी रहे थे।

टॉप-5 में रामविलास पासवान

बीजेपी के टॉप-5 नेताओं के शपथ लेने के बाद रामविलास पासवान की बारी आई, जो लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया हैं और हृष्ठ्न में बीजेपी के सहयोगी हैं। पासवान ने आम चुनाव से काफी पहले से ही बीजेपी से साथ अपना गठबंधन जारी रखने की बात कही थी। बिहार में उन्हें गठबंधन के तहत 6 सीटें मिलीं, जिनमें से सभी पर उनकी पार्टी ने जीत

दर्ज की।

गडकरी के बाद निर्मला सीतारमण ने ली शपभ

गडकरी के बाद निर्मला सीतारमण ने मंत्रीपद की शपथ ली, जिन्होंने पिछली सरकार में देश की पहली महिला रक्षामंत्री होने का गौरव हासिल किया। सदन में राफेल के मुद्दे पर उन्होंने अपनी सरकार का बचाव करने की ठोस कोशिश की। छ्वहृ में पढ़ीं निर्मला के बोलने के कायल उनके विरोधी भी हैं।

राष्ट्रपिता-वाजपेयी संग शहीदों को नमन

नई दिल्ली – मनोनीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा देश की खातिर अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। श्री मोदी गुरुवार सुबह सबसे पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि स्थल राजघाट पहुंचे और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित की। इसके बाद श्री मोदी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि स्थल ‘सदैव अटल’ गए और पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और भाजपा के अन्य नेता भी मौजूदा थे। स्व. वाजपेयी की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद श्री मोदी इंडिया गेट स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक गए और देश की खातिर अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले जांबाज शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत, नौसेना  प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा और वायुसेना के उपप्रमुख एयर मार्शल आरके सिंह भदौरिया भी मौजूद थे।

अटलजी होते, तो बहुत खुश होते

मोदी ने अटलजी को याद करते हुए ट्वीट भी किया। उन्होंने लिखा- मैं हर एक मौके पर प्यारे अटलजी को याद करता हूं। वे यह देखकर बहुत खुश होते कि भाजपा को लोगों की सेवा करने का इतना अच्छा मौका मिला। अटल जी के जीवन और कार्य से प्रेरित होकर, हम सुशासन बढ़ाने और जीवन को बदलने का प्रयास करेंगे।

शपथ ग्रहण में परिवार को नहीं मिला न्योता

वडनगर – नरेंद्र मोदी गुरुवार को दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में देश-दुनिया के 6,000 दिग्गजों को आमंत्रित किया गया, लेकिन उनके परिवार को ही आमंत्रित नहीं किया गया। पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में उनके परिवार का कोई भी व्यक्ति शामिल नहीं हुआ। इस बात की जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहन वसंतीबेन ने दी। वसंतीबेन ने पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के मुद्दे पर बताया कि प्रधानमंत्री मोदी की ओर से शपथ ग्रहण समारोह में परिवार के किसी भी व्यक्ति को आमंत्रित नहीं किया गया।

148 शब्दों वाली गोपनीयता की वह शपथ, जिसे नहीं तोड़ सकेंगे प्रधानमंत्री मोदी

ईश्वर को साक्षी मानकर शपथ की प्रक्रिया शुरू की जाती है। शपथ ग्रहण के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा  कि ‘मैं अमुक ईश्वर की शपथ लेता हूं कि विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा’। इस तरह पूरी शपथ में करीब 148 शब्द होते हैं। यह शपथ देश के राष्ट्रपति दिलाते हैं। शपथ का ड्राफ्ट पहले आम चुनाव से पहले भारतीय संविधान के अनुसार तैयार किया गया था, जिसके बाद प्रधानमंत्री संवैधानिक परिपत्र पर हस्ताक्षर करते हैं। उसके बाद हस्ताक्षर किया हुआ यह दस्तावेज राष्ट्रपति के पास जमा किया जाता है। यह दस्तावेज हमेशा के लिए सुरक्षति रखने के लिए संरक्षित भी किए जाते हैं। प्रधानमंत्री पद की शपथ का प्रारूप गोपनीयता की शपथ के प्रारूप से एकदम अलग होता है। संविधान के 16वें संशोधन अधिनियम और 1963 की धारा पांच से पद की शपथ को लिया गया है। इसके अनुसार प्रधानमंत्री शपथ लेते हैं कि ‘मैं, ईश्वर की शपथ लेता हूं या सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान का पालन करूंगा।’ ‘मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा। सत्यनिष्ठा के साथ अपने कर्त्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूंगा। मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा। एक प्रधानमंत्री या केंद्रीय मंत्री के तौर पर कई ऐसी जानकारियां होती हैं, जिनके अपने प्रोटोकॉल होते हैं। ये जानकारियां किसी के सामने खुले तौर पर न बताने की शपथ लेनी होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस शपथ के साथ कहा कि एक पीएम के तौर पर मेरे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर मेरे अधीन या विचाराधीन मामले या राष्ट्रहित से जुड़े किसी भी मामले की जानकारी को किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों से तब तक साझा नहीं करेंगे, जब तक कि प्रधानमंत्री के रूप में उनके कर्तव्यों के निर्वहन के लिए ऐसा करना जरूरी न हो।

मोदी कैबिनेट के सितारे

हार से टूट गया हौसला

कांग्रेस-एनसीपी अपना सकते हैं विलय का फॉर्मूला

नई दिल्ली – चुनावों में लगातार हार और कई कद्दावर नेताओं के भाजपा या शिवसेना में जाने के बाद से महाराष्ट्र कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी में हलचल मची हुई है। ऐसे में एनसीपी के कांग्रेस में विलय की बातें जोर पकड़ रही हैं। इसके पक्ष में दलील दी जा रही है कि सिर्फ सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के चलते ही कांग्रेस से निकलकर एनसीपी बनी थी। इसके अलावा दोनों की विचारधारा और तौर-तरीके में रत्ती भर भी फर्क नहीं है। दोनों ने केंद्र और राज्य में सरकार भी चलाई। वहीं सोनिया गांधी का विदेशी मूल का मुद्दा भी खत्म हो गया है। साथ ही पहले दोनों दल महाराष्ट्र में बराबर की ताकत रखते थे, तब विलय संभव नहीं था। दोनों दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं की लंबी फेहरिस्त को एक दल में लाना खासा मुश्किल था, लेकिन अब दोनों कमजोर हैं। ऐसे में चर्चा है कि इसी साल होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले दोनों एकजुट होकर मुकाबला करें तो ज़्यादा बेहतर रहेगा। फैसला तो कांग्रेस और एनसीपी के आलाकमान करेंगे, लेकिन दोनों दलों के नेताओं में चर्चा जोरों पर है कि अब एनसीपी का कांग्रेस में विलय हो जाना चाहिए। इस विलय का सुझाव देने वाले नेता दोनों दलों में हैं, लेकिन आलाकमान का रुख साफ हुए बिना खुलकर बोलने से बच रहे हैं। पार्टी के नेताओं ने अंदरखाने प्रस्ताव भी तैयार किया है, जिसके तहत विलय होने पर एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को राज्यसभा में विपक्ष के नेता का पद दे दिया जाए। इससे विपक्षी एकता को पवार धार देंगे। वहीं लोकसभा में एनसीपी के पांच सांसदों के विलय से कांग्रेस सदस्यों की संख्या भी बढ़कर 57 हो जाएगी ।

जुलाई के पहले हफ्ते में पेश हो सकता है बजट

नई दिल्ली – नई सरकार के गठन के बाद मोदी सरकार जुलाई के पहले हफ्ते में बजट पेश कर सकती है। इससे पहले सरकार ने चुनाव से पहले अंतरिम बजट पेश किया था। अंतिरिम बजट में कुछ फैसले ऐसे रखे गए थे, जिन्हें जुलाई में पेश होने वाले बजट में पूर्ण रूप दिया जा सकता है। सूत्रों की मानें तो वित्त मंत्रालय ने एनडीए को मिले प्रचंड बहुमत के बाद ही बजट का खाका तैयार करना शुरू कर दिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बजट के लिए पहले ही इंडस्ट्रीज के साथ बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। केंद्र की मोदी सरकार ने पहली फरवरी, 2019 को परंपरा के मुताबिक, चुनाव से पहले अंतरिम बजट पेश किया था, लेकिन बजट पेश करने से पहले ही सरकार ने इशारा दिया था कि यह बजट पूर्ण बजट की ही छवि है। बजट डॉक्यूमेंट पर भी अंतरिम बजट नहीं लिखा गया था।

नौकरी बढ़ाने वाले क्षेत्रों पर होगा सरकार का फोकस

बजट में सरकार का फोकस इकॉनोमी की ग्रोथ को पटरी पर लाने का होगा। नौकरी बढ़ाने वाले रियल एस्टेट, इंफ्रा और कंस्ट्रक्शन सेक्टर पर भी सरकार ध्यान देगी। किसानों की आय बढ़ाने की योजनाओं पर अमल में लाया जा सकता है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग की लाभ योजनाओं को पहले से ज्यादा असरदार किए जाने की संभावना है। सरकार की रतफ से ‘मेक इन इंडिया’ और एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने पर भी जोर है। इसके अलावा एफडीआई के नियमों को और आसान बनाने की कोशिश सरकार की तरफ से की जाएगी। ज्यादातर क्षेत्रों में ऑटोमेटिक रूट से एफडीआई नियमों में छूट। लोगों को नौकरी लायक हुनरमंद बनाने पर भी सकरार फोकस करेगी। बड़े टैक्स सुधार के तौर पर डायरेक्ट टैक्स का खाका तैयार किया जाएगा।

एफआईसीसीआई के साथ भी हुई बैठक

वित्त मंत्रालय ने 19 मई को आए एग्जिट पोल के बाद से ही बजट की तैयारियां शुरू कर दी गई थीं। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने सबसे पहले एफआईसीसीआई के अधिकारियों के साथ बैठक की। वहीं, दूसरे उद्योग संगठनों के साथ भी बजट संबंधी बैठकें हो चुकी हैं। सूत्रों की मानें तो मंत्रालय ने दूसरे मंत्रालयों से भी सुझाव मंगाए हैं। वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कुछ अधिकारियों को बजट को लेकर डॉक्यूमेंटेशन करने की जिम्मेदारी 19 मई को ही सौंप दी गई थी।


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