जाखना बिशु मेले का आज आगाज

By: May 15th, 2019 12:05 am

पांवटा साहिब—जिला सिरमौर के गिरिपार-शिलाई क्षेत्र में मनाए जाने वाले बिशु मेलों का आखिरी बिशु मेला जाखना में 15 मई बुधवार से शुरू हो रहा है। यह दो दिवसीय मेला गिरिपार के शिलाई क्षेत्र का अंतिम बिशु मेला होता है। इसके साथ ही क्षेत्र में एक माह से चल रहे बिशु मेलों का समापन हो जाता है। जानकारी के मुताबिक बैसाख माह की संक्रांति से ज्येष्ठ माह की संक्रांति तक पूरे महीने गिरिपार में इन मेलों का आयोजन होता है, जो जाखना के दो दिवसीय मेले के साथ संपन्न होता है। सीजन के आखिरी बिशु मेला मस्तभौज क्षेत्र के जाखना में मेलार्थियों की खूब भीड़ उमड़ती है। इसी संक्रांति को जिला के संगड़ाह क्षेत्र के अंधेरी और उत्तराखंड के जोंसार बाबर मंे भी आखिरी मेला आयोजित होता है। दो दिनों तक चलने वाले इस बिशु मेले का बुधवार को शुभारंभ होगा। इस मेले में शिलाई, कफोटा, कमरऊ के अलावा मस्तभौज के शरली मानपुर, जामना व कांडो च्योग सहित उत्तराखंड राज्य के जोंसार बाबर आदि इलाकों के लोग भारी संख्या में पहुंचते हैं। प्राप्त जानकारी के मुताबिक गिरिपार क्षेत्र में भी बिशु मेले की ऐसी परंपराएं हैं, जिसको जनता सदियों से निभा रही है। यह बिशु मेले, जहां लोगों की आस्था के प्रतीक हैं, वहीं यह संस्कृति के ध्वजवाहक भी हैं। सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र में लगने वाले बिशु मेले के बारे में बुजुर्गों की अलग-अलग मान्यताएं हैं। कुछ लोगों का कहना है कि खेतों में फसल आने की खुशी में त्योहार को मनाते हैं। ऐसा ही एक त्योहार देश के पूर्वोत्तर के राज्य असम में भी मनाया जाता है। इसे बिहु कहा जाता है। इस त्योहार को भी असम के लोग फसल आने की खुशी में मनाते हैं। पंजाब में बैसाखी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि गिरिपार क्षेत्र के कई बिशु मेलों में शिरगुल महाराज अन्य देवताओं की पालकी को बिशु मेलों में लगाया जाता है, ताकि क्षेत्र में सुख-समृद्धि बनी रहे। मान्यता है कि यदि मेले में पालकी नहीं ले जाते तो प्राकृतिक आपदा जैसी घटनाएं होती हैं। पिछले एक माह के भीतर गिरिपार में विभिन्न स्थानों शरली मानपुर, टौंरू गांव के बुंगा, भरली गांव के कांडो, कफोटा, तिलोरधार, कांडो दुगाना, शिलाई, गिरनौल, सुईनल, नैनीधार, सतौन व अंतिम मेला जाखना में दो दिन का मनाया जाता है। रोचक बात यह है कि इसी अंतराल के दौरान पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के जोंसार बाबर मंे भी इसी प्रकार के बिशु मेलों का अलग-अलग स्थानों पर आयोजन होता है। उनके रीति-रिवाज और परंपराएं गिरिपार से पूरा मेल खाती हंै। हाटी समिति के केंद्रीय कार्यकारिणी सचिव कुंदन सिंह शास्त्री बताते हैं कि गिरिपार और जोंसार बाबर की बहुत सी समानताएं हमंे एक-दूसरे से जोड़ती है। बिशु मेले भी उनमें से एक है। कांडो च्योग पंचायत के प्रधान माया राम चौहान ने बताया कि बुधवार से शुरू हो रहे दो दिवसीय बिशु मेले की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। गिरिपार के जाखना मंे होने वाले अंतिम बिशु मेले में भी ठोडो नृत्य आकर्षण का केंद्र रहता है। यह एक ऐसी प्रथा है जो बुजुर्गों के मुताबिक महाभारत काल से चली आ रही है।


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