जैव विविधता का संरक्षण समय की मांग

कुल्लू -हिमाचल प्रदेश को प्रकृति ने अनुपम वनस्पति से नवाजा है और यहां अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियों का भंडार मौजूद है, जो विभिन्न प्रकार की दवाइयां बनाने तथा अन्य उत्पादों के निर्माण के लिए प्रयुक्त होती हैं। यह बात अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी अक्षय सूद ने बुधवार को कुल्लू के समीप मौहल में अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में कही। इसका आयोजन गोबिंद बल्लभ पंत हिमालयी पर्यावरण एवं सतत् विकास संस्थान, हिमाचल क्षेत्रीय केंद्र मौहल तथा हिमाचल प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड शिमला द्वारा किया गया। एडीएम अक्षय सूद ने कहा कि दुनियाभर में जैव विविधता बढ़े खतरे के दौर से गुजर रही है। हर रोज हजारों प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। मनुष्य का स्वार्थ इसका सबसे बड़ा कारण है। उन्होंने कहा कि वनस्पति का उपयोग वैज्ञानिक ढंग से किया जाना चाहिए। पहले हमारे बुजुर्ग पेड़-पौधे लगाना धर्म समझते थे और इनका सरंक्षण भी करते थे। उन्हें बहुत सी प्रजातियों के महत्व का भी पता था, लेकिन आज यह स्थिति बिलकुल बदल चुकी है। उन्होंने कहा कि बहुत से क्षेत्रों में कुछ धार्मिक मान्यताओं के चलते भी पेड़-पौधों को नहीं काटा जाता है। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में वनस्पति की बहुमूल्य संपदा है और इसके संरक्षण की आवश्यकता है।  उन्होंने आम जनमानस से कहा कि हम सब भावी पीढि़यों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए जैव वनस्पतियों का संरक्षण करें और अधिक से अधिक पेड़-पौधों की प्रजातियों को तैयार करें। उन्होंने कहा कि बच्चों व युवाओं को जड़ी-बूटियों व हर्बल पौधों की पहचान व जानकारी प्रदान करें ताकि वे बहुमूल्य संपदा का महत्त्व समझ सके और भविष्य में इनका संरक्षण करने में आगे आएं। इस अवसर पर राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के भूतपूर्व अध्यक्ष डा. पीएल गौतम ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि वनस्पति के समाप्त होने से विश्व में मरुस्थल भूमि बढ़ रही है जोकि चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1992 से पहले जैव विविधता किसी की बपौती नहीं मानी जाती थीए बल्कि पूरी विश्व की सांझी संपदा थी। 1992 के बाद इसके संरक्षण की दिशा में वैश्विक स्तर पर कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। जैव विविधता अधिनियम-2002 इसी का परिणाम है। उन्होंने इस अधिनियम के विभिन्न पहलुओं की विस्तृत जानकारी दी। इससे पहले हिमाचल प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड की वरिष्ठ वैज्ञानिक शुभ्रा बैनर्जी ने मुख्य अतिथिए विभिन्न वक्ताओं और सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। गोविंद वल्लभ पंत संस्थान के वैज्ञानिक डा. एसएस सामंत ने कार्यशाला के महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यशाला के अन्य सत्रों में बजौरा स्थित बागबानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान केंद्र के भूतपूर्व एसोसिएट डायरेक्टर डा. जेआर ठाकुर ने जैव विविधता संरक्षण में पोलीनेटरों की भूमिका पर प्रकाश डाला। कृषि विज्ञान केंद्र बजौरा के कार्यक्रम समन्वयक डा. केसी शर्मा ने जैव विविधता के महत्व और जैव विविधता रजिस्टर तैयार करने की प्रक्रिया से अवगत करवाया।  हिमाचल प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड के परियोजना समन्वयक डा. एमएल ठाकुर ने सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। इस कार्यशाला में कुल्लू जिला के विभिन्न विकास खंडों में गठित जैव विविधता समितियों के पदाधिकारियों तथा पंचायत जनप्रतिनिधियों ने भाग लिया।