त्योहार और मेले सांस्कृतिक झांकी प्रस्तुत करते हैं

By: May 8th, 2019 12:05 am

वास्तव में त्योहार व मेले किसी भी क्षेत्र में सांस्कृतिक जीवन की सही झांकी प्रस्तुत करते हैं। जहां हमारे त्योहार हमें एकता के सूत्र में बांधते हैं, ये हमारे अतीत की लड़ी के साथ संबंध जोड़कर विभिन्न देवी-देवताओं  से जुड़ी गाथाओं के साथ हमारे जीवन का तारतम्य जोड़ते हैं। हमारे मेले चाहे वे त्योहारों के साथ संबंधित हों या नहीं, हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं और हमारे आर्थिक, धार्मिक व सामाजिक जीवन से इनका सीधा संबंध है…

गतांक से आगे …

‘खेल’ : यह भी बीमारियों या जादू-टोने के इलाज का एक तरीका है, जिसमें या तो ‘चेला’ या ‘गुर’ स्वयं खेलकर अर्धचेतन अवस्था में पहुंचकर बीमारी, किसी चीज के खिलाए जाने या भूत-पिचाश के किसी व्यक्ति द्वारा लगा दिए जाने का पता लगाते हैं और उससे उसके छुटकारे का तरीका पूछते हैं या फिर गुगल आदि का धूप जलाकर, घड़े या थाली बजाते हुए मंत्र (जिसे भारनी कहते हैं) ऊंचे-ऊंचे पढ़कर खेल लाई जाती है और कथित व्यक्ति के अपने मुंह से ही कारण और उपचार बुलवाया जाता है।  खेल में कथित व्यक्ति के मुंह से भूत-पिशाच भगाने के लिए जो भी बलि मांगता है, वह देना स्वीकार की जाती है और सात-आठ दिन के अंदर ही  श्मशानघाट या अन्य निर्जन स्थान पर मांगे गए पशु-पक्षी की बलि चढ़ा दी जाती है। व्यथित व्यक्ति पर उसके खून के छींटे मारे जाते हैं। मांस पका कर वहां उपस्थित व्यक्तियों को खिला दिया जाता है या फिर पशुओं को  ‘चेला’ या ‘गुर’ अपने घर ल जाता है।  इस काम के लिए भादों का महीना और शनि या मंगलवार चुने जाते हैं। वास्तव में त्योहार व मेले किसी भी क्षेत्र में सांस्कृतिक जीवन की सही झांकी प्रस्तुत करते हैं। जहां हमारे त्योहार हमें एकता के सूत्र में बांधते हैं, ये हमारे अतीत की लड़ी के साथ संबंध जोड़कर विभिन्न देवी-देवताओं  से जुड़ी गाथाओं के साथ हमारे जीवन का तारतम्य जोड़ते हैं। हमारे मेले चाहे वे त्योहारों के साथ संबंधित हों या नहीं, हमारी सांस्कृतिक विरासत है और हमारे आर्थिक, धार्मिक व सामाजिक जीवन से इनका सीधा संबंध है। हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाले त्योहारों का प्रदेश में बदलती ऋतुओं से सीधा संबंध है। प्रत्येक नई ऋतु के आने पर कोई त्योहार मनाया जाता है। इसके साथ कुछ त्योहारों का फसल के आने से भी संबंध है। यद्यपि दिवाली, दशहरा व होली आदि त्योहारों से हमारा परिचय सातवीं और 15वीं शताब्दी के मध्य मैदानों से आने वाले लोगों के संपर्क या वहां से आने वाले राजाआें के राज्य स्तर पर इन व कुछ अन्य त्योहारों के मनवाए जाने के कारण हुआ, कुछ त्योहार अति-प्राचीन हैं और उनका शिव या शक्ति की पूजा से सीधा संबंध है। आधुनिक युग में मनाए जाने वाले व्यापारिक या पशु मेले अलग हैं। त्योहारों की तिथियां देसी विक्रमी-संवत् के महीनों के अनुसार गिनी जाती हैं। वैसे प्रत्येक महीने का पहला दिन संक्रांति कहकर पुकारा जाता है और कई लोग इस दिन व्रत रखते हैं। कुल-पुरोहित का इस दिन अपने यजमानों के घर जाकर अनाज (जिसे निम्न भाग में नसरावां कहते हैं।)


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