बढेड़ा में…जीवन के दिन चार, काम हजार

By: May 7th, 2019 12:05 am

ऊना—मनुष्य को नित्य सुख देने वाला परमात्म प्रेम ही है। हम भगवान के हैं और भगवान हमारे हैं इस तथ्य का नित्य ही अभ्यास करना चाहिए। सत्य के आचरण से बुद्धि स्वाभाविक ही विलक्षण लक्षणों से संपन्न हो जाती है। आत्म शांति के समक्ष विश्व के समस्त वैभव तुच्छ हैं। जिज्ञासा जीवित मनुष्य की पहचान है। शरीर अंदर की आत्मा का वस्त्र मात्र है। हम वस्त्र पहनने वाले को भूलकर वस्त्र से प्रीति कर बैठते हैं। अनित्य एवं परिवर्तनशील वस्त्र को ही सत्य समझकर व्यवहार करने लगते हैं। उक्त ज्ञानसूत्र श्रीराम कथा के तृतीय दिवस में परम श्रद्धेय अतुल कृष्ण महाराज ने शिव मंदिर बढेड़ा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सदैव प्रसन्न रहना प्रभु भक्तों का जन्मसिद्ध अधिकार है। भगवान की निर्मलता, तेजस्विता एवं शीघ्रकारिता ग्रहण करने योग्य है। मनुष्य ज्ञानमय, आनंदमय एवं रसमय ईश्वरीय सत्ता का अविभाज्य एवं सुंदरतम प्रकट रूप है। दुखी आदमी की भूल यह है कि वह संसार के सुख से दुख को मिटाना चाहता है, जबकि दुख मिटता है अपने स्वरूप या भागवत् तत्त्व के ज्ञान से। इस दिव्य तत्त्व की प्राप्ति ही श्रीराम कथा है। हमें आलसी एवं प्रमादी पुरुषों से आगे बढ़ना है। मनुष्य को ऐसे कार्यों से सदैव दूर रहना चाहिए, जिसमें विवेक का उपयोग न होता हो। अतुल कृष्ण महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन थोड़ा है और करने के लिए काम बहुत हैं। अतः हमें को दीर्घसूत्री नहीं होना चाहिए। अच्छे कार्य में देर नहीं ँकरनी चाहिए। विषय विकारों से अपने को बचाकर निर्विषय नारायण का आश्रय लेना चाहिए। रावण ने धरती से स्वर्ग तक सीढ़ी बनानी चाही थी, समुद्र के खारेपन को मिटाने की योजना थी, चंद्रमा को निष्कलंक एवं अग्नि को धुएं से रहित करने का मनोरथ था। परंतु उसने यह सब भविष्य पर टाल कर अपना सारा समय सांसारिक सुखों में खो दिया, अंत में पछताता हुआ मर गया। आज कथा में सती का भ्रम, शिवजी द्वारा सती का त्याग, दक्ष यज्ञ विध्वंश, पार्वती की तपस्या, शिव पार्वती विवाह, नारद जी का अभिमान, अयोध्या में भगवान श्रीराम के प्राकट्य का प्रसंग सभी ने तन्मय होकर सुना। इस अवसर पर भगवान की पावन झांकी भी निकाली गई। सोमवार को विशेष रूप से डेरा बाबा रुद्रानंद के उत्तराधिकारी आचार्य हेमानंद जी महाराज ने भी कथा में सारी संगत को दर्शन एवं अपने प्रवचनों से निहाल किया।


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