बीत गया पोस्टर-झंडों का जमाना

By: May 15th, 2019 12:02 am

चुनावों में बदले प्रचार के तरीके, सोशल मीडिया बना सहारा

भुंतर —चुनावों में झंडों-पोस्टरों से प्रचार का जमाना लदने लगा है। आम चुनाव-2019 के मतदान के लिए महज पांच दिन ही रह गए हैं, लेकिन पहले की तरह न तो चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के पोस्टरों से सजी दीवारें दिख रही हैं और न ही घरों की छत पर लगने वाले झंडों को लगाने का क्रेज नजर आ रहा है। लिहाजा, प्रचार से गायब होते झंडे व पोस्टर चुनाव प्रचार के बड़े बदलाव का संकेत इस बार दे रहे हैं।  राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो चुनाव आयोग की सख्ती ने नेताओं को इस बड़े बदलाव के लिए मजबूर करवाया है। दरअसल चुनावों के दौरान किसी भी व्यक्ति के घरों की दीवार में लगने वाले पोस्टरों को पूरा ब्यौरा प्रत्याशियों को अब चुनाव आयोग को देना पड़ता है और चुनाव खत्म होने के बाद इन पोस्टरों को हटाना भी पड़ता है। इसके अलावा घरों में लगाए जाने वाले झंडों का भी हिसाब-किताब चुनाव आयोग रखता है और प्रत्याशियों से पूरा रिकार्ड तलब करता है। जानकारों के अनुसार साल 2014 के चुनावों से पहले पोस्टरों और झंडों को लेकर इतनी सख्ती नहीं होती थी। दरअसल, पोस्टरों के कारण घरों की दीवारों व अन्य निजी संपत्ति को होने वाले नुकसान के संदर्भ में मिली शिकायतों के बाद इस पर सख्ती बढ़ी है। इसके अलावा सोशल मीडिया भी पोस्टर-बैनर के युग को समाप्त करवाने में अहम भूमिका निभा रहा है। फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, टविटर के जरिए पार्टियां व नेता जमकर प्रचार कर रहे हैं और ऐसे में पोस्टर लगाने में पैसे की बर्बादी मानी जा रही है। मंडी लोकसभा सीट के तहत शामिल कुल्लू जिला के शहरी और ग्रामीण इलाकों में भी इस बार पोस्टर युग की समाप्ति की तस्वीर बयां कर रही है। कुल्लू के जिला निर्वाचन अधिकारी युनुस खान के अनुसार पोस्टरों का प्रचलन कम होने के कारण इससे फैलने वाली गंदगी पर भी रोक लगी है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी यह सकारात्मक पहल है।

लोग खुद ले रहे फैसला

चुनावों में किसी भी प्रत्याशी के समर्थन में खुलकर न आने की मतदाताओं की सोच ने भी झंडों और पोस्टरों के प्रचार पर विराम लगाया है। करीब दो दशक पहले तक अधिकतर मतदाता खुलकर अपने नेताओं के समर्थन में आते थे और परिवार के अधिकतर सदस्य वोट को लेकर मिलकर फैसला लेते थे, लेकिन हाल ही में यह ट्रेंड बदला है और परिवार के लोग अब वोट को लेकर अपने स्तर पर निर्णय लेने लगे हैं।


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