भूत से डरें नहीं, वह तो बस भूत है

By: May 25th, 2019 12:05 am

मस्तिष्क में असंतुलन का दौरा पड़ता है। रोगी के मस्तिष्क का एक बहुत छोटा अंश यह अनुमान लगाने की चेष्टा करता है कि इस आकस्मिक हलचल का कारण क्या हो सकता है? उसे दूसरे लोगों पर भूतों का आवेश आने की जानकारी देखने या सुनने से पहले ही मिल चुकी होती है। अस्तु क्षण भर में अपनी स्थिति उसी प्रकार की मान लेने का विश्वास जम जाता है…

-गतांक से आगे…

ऐंक्जाइटी न्यूरोसिस एवं हिस्टरिक न्यूरोसिस को हिस्टीरिया तो नहीं कहा जा सकता, पर उसकी सहेली या छाया कहने में हर्ज नहीं है। कोई कल्पना जब मस्तिष्क पर असाधारण रूप से हावी हो जाती है, तो उसे अनुभूतियां भी उसी प्रकार की होने लगती हैं। भूत-प्रेतों के आवेश प्रायः इसी स्थिति में आते हैं। मस्तिष्क में असंतुलन का दौरा पड़ता है। रोगी के मस्तिष्क का एक बहुत छोटा अंश यह अनुमान लगाने की चेष्टा करता है कि इस आकस्मिक हलचल का कारण क्या हो सकता है? उसे दूसरे लोगों पर भूतों का आवेश आने की जानकारी देखने या सुनने से पहले ही मिल चुकी होती है। अस्तु क्षण भर में अपनी स्थिति उसी प्रकार की मान लेने का विश्वास जम जाता है। बस, इतनी भर मान्यता शरीर के हिलने, झूमने, गरदन डुलाने, लंबी सांसें, उत्तेजना आदि भूतोन्माद के लक्षण प्रस्तुत कर देती है। इस श्रेणी में देवी-देवताओं के आवेशों की गणना की जा सकती है। भूतोन्माद अधिक अविकसित, अशिक्षित और असंस्कृत लोगों को आते हैं, उनमें भय, आक्रोश का बाहुल्य रहता है और हरकतों में तथा वचनों में निम्न स्तर की स्थिति टपकती है। जब कि देवोन्माद में अपेक्षाकृत सज्जनता एवं शिष्टता की मात्रा अधिक रहती है। आवेश एवं वार्तालाप भी ऐसा ही होता है, मानो कोई देव स्तर का व्यक्ति कर रहा हो। जिन लोगों ने देवी-देवताओं की चर्चा अधिक सुनी है, स्वयं उस पर विश्वास करते हैं, उनका मस्तिष्क आवेश की स्थिति में अपनी कल्पना, साथ ही हरकतें भी उसी स्तर की बना लेता है। वस्तुतः इन आवेशों में देव स्तर सिद्ध करने वाली कोई प्रामाणिकता नहीं होती। स्तर के अनुरूप इनका वर्गीकरण भूतोन्माद या देवोन्माद के रूप में किया जा सकता है, पर उनके बीच कोई बड़ा भेद नहीं होता। आयुर्वेद ग्रंथों में भूतोन्माद की कितनी ही शाखा-प्रशाखाओं का वर्णन है। उसे रोग की संज्ञा दी गई है और उपचार विधि बताई गई है। वस्तुतः उसे उन्माद का यदा-कदा आने वाला दौरा ही कह सकते हैं। आवेश गहरा हो तो रोगी के अवयव ही उत्तेजित होते हैं और वह उन्मत्तों जैसी हरकतें करता है, किंतु यदि दौरा हलका हो तो एक प्रकार से नशे जैसी स्थिति बन जाती है।     

 (यह अंश आचार्य श्री राम शर्मा द्वारा रचित किताब ‘भूत कैसे होते हैं, क्या करते हैं’ से लिए गए हैं)


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