ममता का दरकता किला

By: May 30th, 2019 12:05 am

यह आम चुनाव और भाजपा-एनडीए की ऐतिहासिक जीत का ही फलितार्थ है। राजनीतिक दलों और चेहरों की ‘चूहा-दौड़’ पहले भी जारी रही है। नतीजतन पाले और पार्टियां बदली जाती रही हैं। यह प्रधानमंत्री मोदी के ‘राजनीतिक करिश्मे’ का दौर है, लिहाजा भाजपा में शामिल होने को भगदड़ मची है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी ‘तृणमूल कांग्रेस’ के दो विधायक और 62 पार्षद टूट कर भाजपा में आए हैं और मोदी-शाह की विशाल सेना के सदस्य बने हैं। सीपीएम का भी एक विधायक ‘मोदीमय’ हुआ है। यह पालाबदल सात चरणों में जारी रहेगा, यह दावा भाजपा के बंगाल प्रभारी एवं महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने किया है। यह टूट-फूट आकस्मिक और संयोग भर नहीं है। याद करें, चुनाव प्रचार के दौरान बंगाल की धरती पर ही प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया था कि तृणमूल के 40 विधायक उनके संपर्क में हैं। उस दावे का क्रियान्वयन शुरू हो गया है। कभी ममता दीदी के दाहिने हाथ रहे, लेकिन अब भाजपा में बंगाल के नए शिल्पकार मुकुल राय का भी दावा है कि तृणमूल के 100 विधायक उनके संपर्क में हैं। टूटन की प्रक्रिया की अभी शुरुआत हुई है। इसे बंगाल की ममता सरकार को गिराने की साजिश या रणनीति ही करार न दिया जाए, बल्कि सत्ता के नए रंग, सियासत के नए जनाधार और समीकरणों का दौर खुल रहा है। बंगाल में वामपंथियों का दुर्ग ढहा, तो ममता बनर्जी का दौर शुरू हुआ। अब ममता का तिलिस्म समाप्ति की कगार पर है, तो बंगाल भी ‘भगवा’ हो सकता है। भाजपा का दावा है कि विधानसभा चुनाव जब भी हों, उसे दो-तिहाई बहुमत हासिल होगा। अब भाजपा के दावों की हंसी नहीं उड़ाई जा सकती। लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा को 40 फीसदी से ज्यादा वोट मिले, तो तृणमूल के हिस्से 43 फीसदी वोट ही आए। फासला बेहद कम हुआ है और 2021 में विधानसभा चुनाव होने ही हैं। बेशक तृणमूल विधायकों और पार्षदों के पाला बदलने से ममता की सत्ता बरकरार रहे, लेकिन उनका आधार हिल गया है, जमीन दरकने लगी है, ममता के प्रति अस्वीकृति बढ़ने लगी है। इससे ममता की सियासी शख्सियत पर भी मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा। चुनाव के दौरान ममता ने प्रधानमंत्री मोदी को ‘एक्सपायरी पीएम’ कहा था और मोदी-शाह दोनों को ही ‘गुंडा’ करार दिया था। ममता मुगालते में थीं कि चुनाव के बाद मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे, लेकिन नियति कुछ और ही तय करती है। आज मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रधानमंत्री मोदी और उनकी कैबिनेट के शपथ-ग्रहण समारोह में शामिल होने की स्वीकृति दे रही हैं और इसे ‘संवैधानिक शिष्टाचार’ करार दे रही हैं। ममता यह यथार्थ भी देख रही हैं कि करीब 57 फीसदी हिंदू वोट और 65 फीसदी ओबीसी वोट भाजपा के पक्ष में गए हैं। 2014 में हिंदू वोट करीब 21 फीसदी ही भाजपा को मिले थे। ममता की तृणमूल कांग्रेस का सहारा अब मुस्लिम वोट ही हैं। करीब 70 फीसदी मुस्लिम वोट सिर्फ तृणमूल को ही मिले हैं, लिहाजा ममता अब भी तुष्टिकरण की हांक रही है। हमारा मानना है कि अब बंगाल में मजहबी धु्रवीकरण ही नहीं, बल्कि राजनीतिक धु्रवीकरण भी जारी है, क्योंकि तृणमूल के नेता अब ममता के साथ घुटन महसूस कर रहे हैं और उससे निजात पाना चाहते हैं। भाजपा ही एकमात्र विकल्प है। मुस्लिम पार्षद भी तृणमूल छोड़ कर भाजपा में आए हैं और मुस्लिम विधायक आने की बात कर रहे हैं। ऐसा आभास है कि मुस्लिम वोटबैंक ने जिस तरह कांग्रेस और वाममोर्चे को छोड़ा है, उसी तरह ममता की पार्टी को भी अलविदा कह सकता है। आम चुनाव के जनादेश से साफ है कि 92 मुस्लिम बहुल सीटों में से 45 पर भाजपा-एनडीए उम्मीदवार जीते हैं। बहरहाल बंगाल से राजनीतिक टूटन की जो प्रक्रिया शुरू हुई है, वह बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों तक जा सकती है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App