मां छिन्नमस्तिका धाम

By: May 18th, 2019 12:07 am

छिन्नमस्तिका माता के दरबार में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं। छिन्नमस्तिका  देवी को चिंतपूर्णी भी कहा जाता है। उनके इस रूप की चर्चा शिव पुराण और मार्कंडेय पुराण में भी देखने को मिलती है। देवी चंडी ने राक्षसों का संहार कर देवताओं को विजय दिलाई थी। छिन्नमस्तिका जयंती के दिन व्रत रखकर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं…

दस महाविद्याओं में छिन्नमस्तिका माता छठी महाविद्या कहलाती हैं। इस बार देवी छिन्नमस्तिका जयंती 18 मई के दिन मनाई जाएगी। यह जयंती भारत वर्ष में धूमधाम के साथ मनाई जाती है। माता के सभी भक्त इस दिन माता की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। माता छिन्नमस्तिका जयंती पर माता के दरबार को रंग-बिरंगी रोशनियों और फूलों से सजाया जाता है। मंदिर में मंत्रोच्चारण के साथ पाठ का आयोजन किया जाता है। माता के दरबार में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं। छिन्नमस्तिका देवी को चिंतपूर्णी भी कहा जाता है। उनके इस रूप की चर्चा शिव पुराण और मार्कंडेय पुराण में भी देखने को मिलती है। देवी चंडी ने राक्षसों का संहार कर देवताओं को विजय दिलाई थी। छिन्नमस्तिका जयंती के दिन व्रत रखकर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मां छिन्नमस्तिका चिंताओं का हरण करने वाली है। देवी के गले में हड्डियों की माला मौजूद है और कंधे पर यज्ञोपवीत है। शांत भाव से देवी की आराधना करने पर शांत स्वरूप में प्रकट होती हैं, लेकिन उग्र रूप में पूजा करने से उग्र रूप धारण करती हैं। दिशाएं इनके वस्त्र हैं। देवी की आराधना दीवाली के दिन से शुरू की जानी चाहिए। छिन्नमस्तिका देवी का वज्र वैरोचनी नाम जैन, बौद्ध और शाक्तों में एक समान रूप से प्रचलित है। देवी की दो सखियां रज और तम गुण की परिचायक हैं। देवी स्वयं कमल के पुष्प पर विराजमान हैं जो विश्व प्रपंच का द्योतक है। एक बार देवी अपनी सखियों के साथ स्नान करने गईं। तालाब में स्नान के बाद उनकी सखियों को भूख लगी। उन्होंने देवी से कुछ खाने को कहा। सखियों की इस बात पर देवी ने उन्हें इंतजार करने को कहा, लेकिन सखियों ने उनकी बात नहीं मानी और भोजन के लिए हठ करने लगीं। तब भगवती मां ने स्वयं अपनी गर्दन अपने धड़ से काट डाली और उन में से दो रक्त धाराएं बह निकली, जो उन दोनों योगनियों के मुख में स्वयं जा गिरी। साथ ही प्रभु माया से एक तीसरी अमृतधारा बह निकली जो मां के कांतिमुख में प्रवाह करने लगी। तभी से इस देवी को छिन्नमस्तिका मां भी कहा जाता है। देवी दुष्टों के लिए संहारक और भक्तों के लिए दयालु हैं।

छिन्नमस्तिका जयंती पर विधिपूर्वक करें पूजा

देवी की पूजा मन से करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान इत्यादि कर देवी की प्रतिमा के समक्ष लाल फूलों की माला लेकर संकल्प करें। साथ ही विविध प्रकार के प्रसाद चढ़ाएं। देवी की पूजा में सावधानी अवश्य बरतें। देवी बहुत दयालु हैं वह अपने भक्तों पर विशेष कृपा करती हैं।

छिन्नमस्तिका जयंती का महत्त्व

छिन्नमस्तिका जयंती भारत में धूमधाम से मनाई जाती है। इस अवसर पर भक्त माता के दरबार को विभिन्न प्रकार से सजाते हैं। इस दिन दुर्गा सप्तशती के पाठ का आयोजन किया जाता है। यही नहीं इस अवसर पर लंगर का प्रबंध होता है जिसमें गरीब लोग अच्छा खाना खा सकें। साथ ही भक्तों पर मां कृपा बनी रहे इसके लिए मंदिर में स्तुति पाठ होता है। छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर झारखंड में स्थित है। यह मंदिर असम के कामख्या मंदिर के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है। यहां केवल मां छिन्नमस्तिका का ही मंदिर नहीं है, बल्कि शिव मंदिर, सूर्य मंदिर और बजरंग बली सहित सात मंदिर मौजूद हैं।


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