मुद्दों की राजनीति से भटका प्रचार

By: May 16th, 2019 12:01 am

सियासी घमासान को गंभीरता से ले रहे लोग; एक-दूसरे पर छींटाकशी का दौर, हर तरफ बयानों पर ही चर्चा

शिमला – चुनाव प्रचार के दौरान राजनीति के गिरते स्तर पर एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है। जहां बुजुर्ग नेता इस पर बात पर नसीहतें दे रहे हैं, वहीं अधिकारी और कर्मचारी वर्ग में गंभीर चर्चा हो रही है। आला अधिकारी नेताओं के बयानों पर बात कर रहे हैं, कर्मचारियों को भी नेताओं की यह वाणी ठीक नहीं लग रही। ऐसे में मुद्दों से भटका हुआ चुनाव कहीं और ही घूम रहा है, जिसका नतीजा क्या निकलेगा, यह समय बताएगा। कई बड़े नेताओं ने सियासती घमासान में ऐसे बयान दिए, जो कि न तो उन्हें शोभा देते हैं और न ही उन ओहदों को, जिन पर ये नेता बैठे हुए हैं। पहाड़ का मतदाता शांत है और यहां के शांतिपूर्ण माहौल में उस तरह की गरमाहट नहीं दिख रही, जैसी दूसरे राज्यों में रही है। देवभूमि में  शांत माहौल में बात को सुना जाता है और समझा जाता है, लेकिन जिस तरह से नेता एक-दूसरे पर छींटाकशी कर रहे हैं, उसके छींटे कहीं न कहीं फैलते दिख रहे हैं। अधिकारी व कर्मचारी इस पर गंभीरता से बात कर रहे हैं और एक दूसरे को बता रहे हैं कि कौन नेता क्या बोल रहा है, फ्लां नेता ने किसके बारे में क्या कहा। इतना ही नहीं, उन नेताओं द्वारा एक-दूसरे पर इस तरह की छींटाकशी करनी चाहिए या नहीं, इस पर भी चर्चा की जा रही है। यह पहला मौका है, जिसमें राजनीति के गिरते स्तर पर बात हो रही है। मुद्दों का कहीं शोर नहीं  है। वर्तमान में चल रहे चुनावी माहौल को लेकर पढ़ा-लिखा वर्ग चिंतित है, जो यह समझ नहीं पा रहा कि उनकी बात कोई नहीं कर रहा, देश की बात कहीं नहीं हो रही, केवल एक-दूसरे पर चर्चा की जा रही है। वरिष्ठ नेता भी इस बाबत चिंतित हैं और नसीहतें दे रहे हैं। पुराना जमाना याद करवाने में लगे हैं। यह पहला मौका है कि देश में एक-दूसरे के खिलाफ बोलने वाले नेताओं को इतनी अधिक संख्या में बैन किया गया। हिमाचल में भी पहली दफा इस तरह का प्रतिबंध लगा। इससे साफ है कि राजनीति का स्तर गिर रहा है, जिस पर पढ़ा-लिखा तबका सोचने पर मजबूर है।

किस ओर जा रही देश की सियासत

राज्य सचिवालय की बात करें, तो यहां हरेक अधिकारी व कर्मचारियों की जुबान पर राजनीति के गिरते स्तर की बात है। सभी लोग यही कह रहे हैं कि देश की सियासत किस ओर जा रही है। गुजरे जमाने की बात भी ये लोग कहते हैं, जिनका कहना है कि पुराने नेताओं में कितनी अधिक सहनशीलता थी और उस समय चुनावी माहौल कैसा रहता था।


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