राजा पद्म सिंह ने की थीं नौ शादियां

By: May 22nd, 2019 12:03 am

राजा पद्म सिंह ने नौ शादियां की थीं। इनमें चार राजकुमारियां कोटखाई से, एक मंडी, एक सुकेत, एक सांगरी, आठवीं  ज्वाली देई लंबाग्राम (कांगड़ा की कटोच वंशीय) तथा नौवीं रानी शांता देवी डाडी के ठाकुर की बेटी थी। अन्य रियासतों की भांति बुशहर ने भी प्रथम महायुद्ध (1914-18) में भारत की अंग्रेजी सरकार की यथायोग्य सहायता की…

 गतांक से आगे …

पद्म सिंह (1873-1947) ः राजा शमशेर सिंह की मृत्यु 4 अगस्त, 1914 को सराहन में हुई। राजा ने अपनी मृत्यु से कुछ समय पूर्व अपने कनिष्ठ पुत्र मियां पद्म सिंह को बुशहर की राजगद्दी के लिए अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। सरकार ने बुशहर की गद्दी पर राजा शमशेर सिंह के कनिष्ठ पुत्र पद्म सिंह को बैठाने की मान्यता के आदेश जारी करके  रियासत के मैनेजर एलन मिचल को भेजे। राजा पद्म सिंह रानी से पैदा हुआ पुत्र न होकर एक ‘रखैल’ का पुत्र था। इसी कारण प्रारंभ में शमशेर सिंह के मन में उसे राजा बनाने के बारे में हिचकिचाहट थी। राजतिलक 13 नवंबर, 1914 को राजा बिलासपुर के हाथों से हुआ। इस अवसर पर बर्लटन सुप्रिटेंडेंट हिल स्टेट्स भी उपस्थित था। पहाड़ी रियासतों में से कुमारसैन के राणा, सांगरी के राजा देलध तथा खनेटी के शासक तथा जुब्बल के राजा की ओर उनके भाई ईसरी सिंह ने भाग लिया था। उस समय यह भी संभावना हो रही थी कि कहीं मुख्य रानी के कोई जीवित पुत्र न रहने के कारण सरकार रियासत को अंग्रेजी राज्य में न मिला दे, परंतु सरकार ने आदेश निकाले कि मैनेजर दो वर्ष तक और बुशहर राज्य का कार्यभार संभाले रहेगा और इस अवधि में नए राजा पद्म सिंह राज काज में हर प्रकार का प्रशिक्षण ग्रहण करें। सन् 1914 से लेकर 1917 तक एलन मिचल से ट्रेनिंग प्राप्त करने के पश्चात 1917 में राजा को प्रशासन के पूर्ण अधिकार दे दिए गए।

राजा पद्म सिंह ने नौ शादियां की थीं। इनमें चार राजकुमारियां कोटखाई से, एक मंडी, एक सुकेत, एक सांगरी, आठवी रानी ज्वाली देई लंबाग्राम (कांगड़ा की कटोच वंशीय) तथा नौवीं रानी शांता देवी डाडी के ठाकुर की बेटी थी।

अन्य रियासतों की भांति बुशहर ने भी प्रथम महायुद्ध (1914-18) में भारत की अंग्रेजी सरकार की यथायोग्य सहायता की। इससे प्रसन्न होकर सरकार ने चार अक्तूबर, 1918 को राजा पद्म सिंह को नौ तोपों की सलामी से सम्मानित किया। सन् 1864 में बुशहर के राजा ने रियासत के जंगल लीज पर अंग्रेजों को दिए थे, यह लीज 50 वर्ष के लिए थी। इसके अनुसार तथा एक अन्य अनुपूरक समझौते के द्वारा अंग्रेजों को जंगल से लकड़ी लेने तथा अन्य जंगली उत्पादों को प्राप्त करने का भी अधिकार दे दिया गया। यह अनुपूरक समझौता वर्ष 1871 में हस्ताक्षरित किया गया। सन् 1877 में इन दोनों समझौतों की शर्तें एक मुश्च प्रपत्र में शामिल कर दी गई। इस नए प्रावधान के अनुसार राजा को सौंपी गई भूमि के बदले में प्रतिवर्ष 10000 रुपए अदायगी अंग्रेज सरकार ने करनी थी तथा जंगल की संपूर्ण  देखभाल एवं रखरखाव की जिम्मेदारी अंग्रेज सरकार की ही थी।


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