लड़कियों को सिखाई जाती थी तलवारबाजी

By: May 18th, 2019 12:06 am

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है सातवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

राहत मंजिल की यह स्वच्छंद परंपरा और संस्कृति, सईदा के दादा, सर अफसर उल मुल्क की बनाई हुई थी। वह अपने समय के बागी थे, जो मानते थे कि महिलाओं को भी सशक्त होना चाहिए-उनके परिवार की लड़कियों को खिलौनों के साथ-साथ तलवार से खेलना भी सिखाया जाता था-क्योंकि सर अफसर जानते थे कि जिंदगी में बहुत सी चुनौतियां पेश आती हैं, तो उन्हें बहादुरी से उनका सामना करने के लिए तैयार होना चाहिए। सईदा को बचपन से तलवार चलाना सिखाया गया था, दरअसल राहत मंजिल की लड़कियों के लिए तलवारबाजी एक जरूरी अभ्यास था। उन्हें याद है कि वह बमुश्किल चार साल की होंगी जब परिवार के अन्य बच्चों के साथ शेर के बच्चे से खेला करती थीं, जिससे वे सब साहसी और निडर बन सकें। अपने वालदैन के घर में अपने बचपन के दिनों को याद करके अचानक उनकी आंखों में चमक आ गई। तभी उनकी अम्मी, अमीना-चूंकि वह अपने घर आई हुई थीं-कमरे में आईं। सौम्य सी आवाज वाली एक नाजुक महिला, वह राहत मंजिल की आखिरी महिला थीं। अपनी बेटी के पास आते हुए उन्होंने पूछा, ‘अब कैसा लग रहा है, मेरी बच्ची?’ सईदा ने पेट पकड़कर मुड़कर उनकी तरफ देखा और उसी पल अपनी बच्ची के चेहरे को देखकर अमीना जान गईं कि अब डाक्टर को बुलाने का समय आ गया है। नसीरुल्लाह बंद कमरे के बाहर बेचैनी से चक्कर लगा रहे थे, वह कमरा अब एक प्राइवेट डिलीवरी रूम बन गया था। किसी से कुछ न कहकर वह मन ही मन अपनी बेगम और होने वाले बच्चे की सलामती की दुआ मांग रहे थे। उनके पिता, समीउल्लाह बेग, हैदराबाद के चीफ जस्टिस और बेहद सम्मानित व्यक्ति थे। वह अपने समय के उन कुछ व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने कैम्ब्रिज में पढ़ाई की थी। उन्होंने अपने बेटों को भी पढ़ने के लिए वहीं भेजा और उन्हें इस बात की संतुष्टि थी कि उनके जीते जी ही दोनों बेटे चीफ जस्टिस बन गए थे। नसीरुल्लाह उत्तर प्रदेश के चीफ जस्टिस बने, तो वहीं हमीदुल्ला, उनके छोटे भाई, चीफ जस्टिस आफ इंडिया नियुक्त हुए। मजे की बात यह है कि समीउल्लाह हैदराबाद में कार में बैठकर निकलते, तो सकपकाए से लोग अपने घुटनों के बल बैठ जाते थे, यह सोचकर कि वह अल्लाह का ही कोई अवतार हैं। हालांकि समीउल्लाह बेग सरकार में मुख्य ओहदा संभाले हुए थे, लेकिन फिर भी वह स्वतंत्रता आंदोलन के मजबूत समर्थक रहे थे। ब्रिटिश शासन के प्रति अनुदारता दिखाते हुए उन्होंने एक समारोह में वायसराय के सम्मान में खड़े होने से मना कर दिया था और बड़े ही नाटकीय रूप से वह उनके आने के कुछ देर बाद समारोह छोड़कर चले गए थे। मोतीलाल नेहरू-करीबी मित्र-के लिए चीफ जस्टिस के घर के दरवाजे हमेशा खुले थे।      


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