विभाग मुस्तैद, इस बार कम सुलगे जंगल

बिलासपुर – हिमाचल के जंगलों को फायर सीजन के दौरान आग से बचाने के लिए किए जा रहे प्रयास अब फलदायी सिद्ध होने लगे हैं। विभागीय प्रयासों का ही नतीजा है कि इस वर्ष अभी तक वनों में आग लगने के महज 31 मामले ही सामने आए हैं और लगभग 2.78 लाख रुपए के नुकसान का आकलन किया गया है, जबकि पिछले साल इस अवधि में यह आंकड़ा कहीं अधिक था। यानी 122 मामले सामने आए थे, जिनमें 12.66 लाख रुपए के नुकसान का आकलन किया गया था। हालांकि इस बार वनों में आग की घटनाओं से निजात मिलने में मौसम की भी मदद मिली है। क्योंकि नियमित तौर पर बारिशें होते रहने से जंगलों में भी नमी है। जानकारी के मुताबिक इस साल अभी तक सामने आए आग लगने के 31 मामलों में वनों का 150 हेक्टेयर एरिया आग की भेंट चढ़ा है, जिसमें 278502 रुपए के नुकसान का आकलन किया गया है। प्रदेश में सर्वाधिक मामले रामपुर और धर्मशाला में सामने आए हैं। रामपुर में 15 मामले, जबकि धर्मशाला में 8 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि मंडी व बिलासपुर में 2-2 और सोलन में 3 व हमीरपुर में एक मामला सामने आया है। विडंबना यह है कि बिलासपुर जिला में सामने आए 2 मामलों में 11 हेक्टेयर एरिया में 1.50 लाख रुपए के नुक्सान का आकलन किया गया है, जबकि रामपुर में सामने आए 15 मामलों में 96 हेक्टेयर एरिया को 67002 रुपए के नुकसान का आकलन किया गया है। इसके अलावा सोलन में सामने आए 3 मामलों में 11 हेक्टेयर एरिया को छह हजार  का नुकसान पहुंचा है। बावजूद इसके पिछले साल की तुलना में इस बार नुकसान का आंकड़ा कहीं कम है।  उधर, शनिवार को बिलासपुर में कार्यरत सीसीएफ (फायर प्रोटेक्शन एंड फायर कंट्रोल) अशोक चौहान ने बताया कि इस बार वनों को आग से बचाने के लिए और अधिक बेहतर कदम उठाए गए हैं। विभागीय प्रयासों की बदौलत सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। जंगलों को आग से बचाने के लिए विभाग की ओर से पुख्ता इंतजाम किए गए हैं ।  वन कर्मी भी सूचना मिलते ही घटनास्थल पहुंच रहे हैं।

फायर अलर्ट मैसेज सिस्टम प्रभावी

इस बार फायर अलर्ट मैसेजिंग सिस्टम को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया गया है। इसके तहत किसी जंगल में आग लगने पर सेटेलाइट के माध्यम से अधिकारियों तथा संबंधित बीओ के मोबाइल पर मैसेज आ जाता है। समय रहते सूचना मिलने से आग पर काबू पाने के प्रयास तुरंत प्रभाव से शुरू कर दिए जाते हैं। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में गठित सांझा वन समितियों की मदद भी ली जाती है। इसी का नतीजा है कि वनों में आग के मामलों में गिरावट आई है।