विष्णु पुराण

By: May 18th, 2019 12:06 am

चौरों विलीहे पतित मर्यादादूशकस्तथा।

देवद्विजपितृद्वेष्टा रत्नदूषयिता चयः।

स याति कृमिभक्षे वै कृमिशे च दृरिष्टकृत।

पितृदेवातिथीस्त्यक्त्वा पर्यश्रांति नराधमः।

लालाभक्षे स यात्युग्रैशरकर्ता च वेधके।

करोति कर्णिनो यश्च यश्च खखांदि कृन्नर।

प्रयांत्येते विशसने नरके भृशदारुणे।

असत्प्रषिगृहीता तु नरके यात्यधोशुखे।

अयाज्ययाजकश्चैव तया नक्षत्रसूचकः।

वेग पूयवहे चैको याति मिष्ठान्नभुङ्नर।

लाक्षामांसरसानां च तिलानां लवणस्य च।

विक्रेता ब्राह्मणो याति तमेव नरकं द्विज।

मार्जारकुक्कुटच्छागश्वराह विवहङ्गमान।

पोषन्नरक याति त तमेत द्विजसत्तम्।

चोर तथा मर्यादा नष्ट करने वाले को विमोहित नरक मिलता है। देवता, द्विज तथा पितरोंका द्वेषी तथा रत्न को दृषित करने वाला कृमिभक्ष नरक में जाता है तथा अनिष्ट यज्ञ के अनुष्ठान करने वाले को कमीशर नरक मिलता है। पितर देवता, अतिथिका ध्यान न कर उनसे पहले ही भोजन कर लेने वाले को अत्युग्र लालाभक्ष नरक की यंत्रणा भोगनी होती है। बाण-निर्वाता वेध नरक में जाता है। कणीं नामक बाण तथा खंगादि शस्त्र के बनाने वाले लोग अत्यंत दारुण विशंसन नरक को प्राप्त होते हैं। अमत प्रतिग्रह से ग्रहण करने वाला, अवल का याजक, नक्षत्र विद्या से जीविका चलाने वाला अधोमुख नरक में गिरता है। साहस (क्रूर) कर्म वाले मनुष्य को पूय वह नरक मिलता है। अकेले ही सुस्वादु भोजन को खा लेने वाला लाख, मांस, रस, तिलया, लवण बेचने वाला ब्राह्मण भी उसी नरक में जाता है। वियाव, कुक्कुट, छाग, अश्व, शूकर या पक्षियों को पालने वाला भी उसी पूयवह नरक को प्राप्त होता है।

रङ्गोपजीवौ कैवर्त्तः कण्डाशो गरदस्तथा।

सूचीं मणिषकश्चैध पर्वकारी च यो द्विजः।

आगरदाही मित्रघ्नः शाकुनिर्ग्रामयाजकः।

रुधिराये पतन्त्येते सोम विक्रीणते च ये।

मखहा ग्रामहन्ता च यानि वैतरणी नरः।

रेतः पंतादिकर्त्तारो मर्यादाभेदिनीं हि ये।

ते कृष्णे यात्शाचाश्च कहकामीतिनश्चये।

असिपत्रपवन यानि वनच्खेदी वृथैव यः।

औरभ्रिको मृगव्याधो वहनज्वाले पतंन्ति वे।

यान्त्येते द्विजे यत्रैव व चापा केषु वह्निदा।

व्रतानां लोपको यश्च स्वाश्रमाद्विचरूतश्च यः।

सन्देशयातनामध्ये पतस्तावृभावपि।

दिववा स्वप्ने च स्कन्दते ये नरा ब्रह्मवारिणः।

पुत्रैषध्यापिता ये च ते हतंति स्वभोजने। नट या मल्ल वृत्ति वाला, धीवर, कर्म करने वाला कुत्स का अन्न खाने वाला, विष खिलाने वाला, चुगली करने वाला, स्त्री वृत्ति से जीविकोपार्जन करने वाला धनादि के लोभ वश पर्व के बिना ही पूर्व काल में होने वाले कत्कार्य कराने वाला ब्राह्मण घर में अग्नि लगाने वाला, शकुन बताने वाला, मित्र का हत्यारा, ग्राम-पुरोहित और सोम काविक्रेता इन सबको सधिरांध नरक की प्राप्ति होती है। यज्ञ या ग्राम को नष्ट करने वाले मनुष्य को वैतरणी नामक नरक की प्राप्ति होती है। रेतपातादि करने वाले, खेत के मेंड तोड़ने वाले, अरवित्र और छलवृत्ति से जीविका चलाने वाले कृष्ण नरक में और व्यर्थ ही वनों के काटने वाले असिपत्र बन नरक में गिरते हैं।


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