सतलुज सिंधु नदी तक नौ सौ मील की यात्रा तय करती है

By: May 8th, 2019 12:05 am

सतलुज अपने उद्गम स्थल से अपने मिलन स्थल सिंधु  तक लगभग नौ सौ मील की यात्रा तय करती है। पष्ठचनद अर्थात पांच नदियों के प्राकृतिक मिलन में ब्यास सतलुज में, जेहलम चिनाब में, चिनाब रावी में, सतलुज, सिंधु में मिलती है जो अरब सागर  में विलीन हो जाती है…

गतांक से आगे …           

सतलुज : ऋग्वेद में वर्णित सरिता शुतुद्रि ही वर्तमान सतलुज है। अविभाजित पंजाब के नामकरण से जिन पांच नदियों का योगदान रहा है, उनमें सतलुज के अतिरिक्त अन्य  चार नदियां वर्तमान में ब्यास, रावी चिनाब तथा  जेहलम के नाम से जानी जाती हैं जो ऋग्वेद में क्रमशः विपाट (पिवाश) परूष्णी आसिक्नी और  वितस्ता कहलाती थीं। ‘शतुद्र’ यानी सैंकंडों धाराओं वाली के नाम से विख्यात हुई। उक्त दो नामों के अतिरिक्त सिलोदा, शतरूद्रा आदि भी सतुलज के नाम बताए गए हैं। हिमालय  से  निकलने के कारण इसे  हेमवंती अथवा हुफसिस कहा गया है। सतलुज को ग्रीक में हुपनिस अथवा हुफसिस कहा गया  है। जब सिंकदर महान भारत आया तो यही सतलुज उसकी विजय यात्रा की अंतिम सीमा बनी थी सतलुज अपने उदगम स्थल से अपने मिलन स्थल सिंधु  तक लगभग नौ सौ मील की यात्रा तय करती हैं। पष्ठचनद अर्थात पांच नदियों के प्राकृतिक मिलन में ब्यास सतलुज में जेहलम चिनाब में, चिनाब रावी में सतलुज में और सिंधु में मिलती है जो अरब सागर  में विलीन हो जाती है। प्रचलित कथा के अनुसार जब एक कामरू नरेश का सेनापति बाणसुर, इन नदियों के संघर्ष को न रोक सका तो उसने पीले जल (ब्रह्मपुत्र) को पूर्व और लाल जल (सिंधु) की पश्चिम दिशा की ओर जाने और नीले जल (सतलुज) को अपने पीछे-पीछे आने का आदेश दिया। सतलुज का मूल उद्गम स्थल पश्चिमी तिब्बत में समुद्र जल से 15,200 फुट की ऊंचाई पर स्थित  कैलाश मानसरोवर के पश्चिमी भाग में स्थित इसके जुड़वां सरोवर राक्सास ताल/ रावण ह्द को माना जाता है। सतलुज अपने मूल उद्गम  स्थल से कैलाश पर्वत की दक्षिणी ढलान पर उत्तर-पश्चिम दिशा में बहती हुई भारत में समुद्र तल से 3050 मीटर की ऊंचाई पर हिमाचल प्रदेश के शिप्की क्षेत्र से प्रवेश करती है। यहां पहुंचने तक यह पश्चिमी तिब्बती हिमालय में 450 किलोमीटर की लंबी यात्रा तय करती है। शिप्की से यह जिस क्षेत्र में प्रवेश करती है, उसे किन्नौर कहा जाता है। यह वही क्षेत्र है जो कभी अर्धदेवयोनि के रूप में ख्यात किन्नर- गंधर्वों का निवास क्षेत्र था। किन्नर कैलाश जिसे रल्ङङ् भी कहते हैं, बौद्ध-बौद्धेतर दोनों परंपरा के लोगों  के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थान है। ब्राह्मण परंपरा शिव-शिव का और बौद्ध परंपरा चक्रसंवर वज्रवराही का आस्थान मानती हैं।                       


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