सरकार भर सकेगी जेओए के पद

By: May 22nd, 2019 12:02 am

हाई कोर्ट ने पोस्ट कोड-556 का रिजल्ट घोषित करने की दी पावर

 शिमला  —प्रदेश हाई कोर्ट ने जूनियर ऑफिस असिस्टेंट पोस्ट कोड 556 के पदों को आयोग द्वारा तैयार की गई मैरिट के आधार पर भरने के लिए राज्य सरकार को हरी झंडी दे दी है। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए स्पष्ट किया कि राज्य सरकार मैरिट के अनुसार इन पदों को अनुबंध आधार पर भरने के लिए स्वतंत्र है। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि आयोग द्वारा जारी मैरिट के आधार पर जूनियर ऑफिस असिस्टेंट के पदों पर भर्ती स्टॉप गेप अरेंजमेंट होगी और ये मामले के अंतिम निर्णय पर निर्भर होगी। प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए कि वह दो सप्ताह के भीतर तीन से पांच सदस्यीय कमेटी का गठन करे जो कम्प्यूटर शिक्षा में उच्च डिग्रियां व डिप्लोमा धारकों और भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के तहत योग्यता प्राप्त उम्मीदवारों की समानता के बारे में निर्णय लेगी। खंडपीठ ने अपने आदेशों में यह भी स्पष्ट किया कि समानांतर योग्यता रखने वाले उम्मीदवार भी जूनियर ऑफिस असिस्टेंट के पदों के लिए योग्य माने जाएंगे, इस बारे उचित समय पर निर्णय लिया जाएगा।  ज्ञात रहे कि हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग ने  23 फरवरी को जूनियर ऑफिस असिस्टेंट पोस्ट कोड 556 का अंतिम परिणाम करीब अढ़ाई सालों बाद घोषित किया था। आयोग ने 1156 पदों के लिए ली गई इस परीक्षा में 596 अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया था, जबकि शेष अभ्यार्थियों को अयोग्य घोषित कर दिया गया। अयोग्य घोषित उम्मीदवारों ने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के समक्ष आवेदन दायर कर आरोप लगाया था  कि आयोग ने परिणाम बनाते समय न्यूनतम योग्यता की आड़ में कम्प्यूटर शिक्षा में उच्च डिग्रियां व डिप्लोमा प्राप्त अभ्यर्थियों को अयोग्य घोषित कर दिया। आयोग ने विभिन्न संस्थाओं से मान्यता प्राप्त डिग्री व डिप्लोमा धारकों को भी बिना कारण अयोग्य घोषित कर दिया है।  इसके परिणामस्वरूप लिखित व टाइपिंग परीक्षा में उनसे कम अंक हासिल करने वाले अभ्यर्थियों का चयन कर लिया गया। ट्रिब्यूनल ने याचिका का निपटारा करते हुए आदेश दिए थे कि जूनियर ऑफिस असिस्टेंट के पदों को भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के तहत ही भरा जाए। ट्रिब्यूनल द्वारा पारित इस निर्णय को हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए ट्रिब्यूनल द्वारा पारित निर्णय पर अंतरिम रोक लगा दी थी।


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