साहित्यिक पत्रिकाओं तक हिमाचली सफर

By: May 26th, 2019 12:04 am

देश की साहित्यिक पत्रिकाओं तक हिमाचल का सफर अब दिखाई देने लगा है। कुछ कहानियां अपने संदर्भों की बानगी में प्रस्तुत हो रही हैं, तो प्रकाशित पुस्तकें समीक्षा का विषय बन रही हैं। नया ज्ञानोदय में ‘विमल राय पथ’ पर राजेंद्र राजन के हस्ताक्षर हैं, तो कथादेश में सुदर्शन वशिष्ठ अपनी कहानी ‘जंगल का गीत’ पेश कर रहे हैं। इंदौर से प्रकाशित ‘नई दुनिया’ में एसआर हरनोट की कहानी ‘मां पढ़ाती है’, मदर्स डे की प्रासंगिकता में लिप्त रही। ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ के ताजा अंक में स्व. सुरेश सेन निशांत की रचनाशीलता पर डा. आत्मा रंजन विस्तृत आलेख के माध्यम से आदरांजलि दे रहे हैं, तो राजस्थान पत्रिका के 19 मई के अंक में पवन चौहान की बाल कहानी ‘इनाम वाला पेज’ का प्रकाशन उन्हें स्थापित करता है। युवा लेखक पवन चौहान के लिए कथादेश की अखिल भारतीय प्रतियोगिता में स्थान पाना भी खास रहा। परिकथा में प्रियवंदा ने ‘मौन से संवाद’ पर अपनी बेहतरीन टिप्पणी की है। दृष्टि पत्रिका में लघुकथाओं का अंक दो ऐसे साहित्यकारों को जोड़ रहा है, जिनका संबंध हिमाचल से परोक्ष में रहा है। सुशील राजेश की ‘आशीर्वाद’ तथा कमलेश भारतीय की ‘कागज का आदमी’ तथा ‘पहचान’ अपनी छटा बिखेर रही हैं।

शिमला में पुस्तक यात्रा

पुस्तकों की यात्रा शीघ्र ही शिमला के गेयटी थियेटर में कई लेखकों और पाठकों से मुलाकात करेगी। धर्मशाला में नेशनल बुक ट्रस्ट के मेले के बाद शिमला में ओकार्ड का काफिला अपनी पांचवीं पायदान पर पहुंच रहा है।

सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन ओकार्ड, कला, भाषा एवं संस्कृति विभाग तथा अकादमी एक साथ मिलकर पुस्तक संस्कृति पर कितना दखल दे पाते हैं, यह प्रतीक्षारत मजमून रहेगा। पिछले साल मेले के दौरान ओकार्ड सृजन सम्मान की शुरुआत में जब ‘पगडंडियां गवाह’ बनीं, तो डा. आत्मा रंजन का कविता संग्रह विशेष चर्चा का विषय रहा। देखें इस साल का सृजन किसे ताज पहनाता है। बहरहाल चर्चित साहित्यकार एसआर हरनोट ने हिमाचल मंच तथा आभी प्रकाशन के बैनर तले हिमाचली लेखकों को अपनी पुस्तकें सजाने का प्रश्रय उपलब्ध कराया है। पुस्तक मेलों के जरिए हिमाचली लेखक अपने विराम के बाहर कितनी बिरादरी समाहित कर पाएगा, यह देखना होगा, क्योंकि यहां भी तसदीक कुछ और होता है। अंत में पाठक के नजरिए से :‘अब हवाएं ही करेंगी रोशनी का फैसला जिस दीए में जान होगी वो दीया रह जाएगा।’               

— निर्मल असो                           

 


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