सुने लें किसान धान के सबसे बेहतर बीज ये रहे

By: May 19th, 2019 12:07 am

हिमाचल के मैदानी इलाकों में गेहूं की थ्रेशिंग खत्म हो गई है, जबकि पहाड़ी एरिया में यह काम जोरों से चल रहा है। अब धान का सीजन शुरू होने वाला है। ऐसे में किसान जानना चाह रहे हैं कि वे इस बार धान की कौन सी किस्में रोपें जिससे पैदावार डबल हो जाए।  हमारे पास किसान लगातार खोखले बीजों की  शिकायत कर रहे हैें। तो आइए ,किसान भाइयों की यह टेंशन भी दूर कर देते हैं। अपनी माटी के इस अंक में हम धान की उन किस्मों के बारे में आपको बताएंगे , जो हिमाचल सरकार ने प्रमाणित की हैं। यानी इन किस्मों पर किसान भरोसा कर सकते हैं। ये वे किस्में हैं, जिनसे पैदावार भी काफी होती है तथा इसके खराब रिजल्ट पर सरकार को पूछा भी जा सकता है।    – रिपोर्ट : प्रतिमा चौहान

 प्रमाणित धान की किस्में ये रहीं

एचपीआर- 2143

एचपीआर-1068

आरपी -2421

कस्तूरी, पालम लाल धान-1

पालम बासमती-1

हिम पालम धान-1

हिम पालम धान-2

राइज- 6508

राइज- 6129

राइज स्टार -795

लक्ष्मी श्री-सावा 200

एलजी – 92.01

एलजी – 93.01

एलजी – 94.02

एनपीएच -369

 राज्य सरकार की ओर से किसानों को धान पर सबसिडी देने की योजना है। जरूरत के हिसाब हर बीज पर सबसिडी दी जाती है

-डा देशराज, डायरेक्टर, एग्रीकल्चर

सोलन के चंबाघाट में मशरूम केंद्र को चार करोड़

उद्यान विभाग के चंबाघाट स्थित मशरूम केंद्र में आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण किसान भवन बनेगा। इसके लिए करीब 4 करोड़ का बजट स्वीकृत हो गया है और टोकन मनी को लोनिवि को जमा भी करवा दिया गया है। किसान भवन बनने से मशरूम केंद्र में प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसान व बागबानों को लाभ मिलेगा। उम्मीद जताई जा रही है कि आचार संहिता हटते ही इस भवन के निर्माण की प्रक्रिया आरंभ हो जाएगी। सोलन ऐसा जिला है जहां कोई किसान भवन नहीं है, जबकि यह कई जिलों का भी केंद्र है और किसान-बागबानों का यहां आना-जाना लगा रहता है।  इस केंद्र में प्रदेश के पांच जिलों सोलन, सिरमौर, शिमला, बिलासपुर व किन्नौर के किसान-बागबान मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण ग्रहण करने आते हैं। इस प्रशिक्षण में आने वाले किसानों को ठहरने की यहां कोई सुविधा नहीं है और किसानों को मशरूम अनुसंधान निदेशालय के विश्रामगृह में ठहरना पड़ता है। इससे किसानों को बड़ी राहत मिलेगी। इस  किसान भवन में 3 सेट वीआईपी, 2 ऑफिसर सेट, 17 डबल बैडिड रूम, डोरमेटरी, बड़ा डायनिंग हॉल, किचन, शौचालय, स्नानागार आदि की सुविधाएं उपलब्ध होंगी। डायनिंग हॉल में करीब 50 लोग एक साथ खाना खा सकेंगे।

– सौरभ शर्मा-सोलन

सबसे अहम दिन : वोट के जरिए आज अपनी बेहतरी खोज रहे हिमाचली किसान

हिमाचल की सभी चार लोकसभा सीटों पर आज मतदान हो रहा है। प्रदेश में खेती इतना अहम सेक्टर है कि इससे 69 फीसदी कामकाजी आबादी को सीधा रोजगार मिलता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाले प्रदेश में जब ज्यादातर लोग पोलिंग बूथ पर जाएंगे,तो कोई खेत में गेहूं को छोड़कर आएगा,तो किसी के जहन में बंदरों और लावारिस पशुओं की फिक्र होगी। कोई खाद की चिंता लेकर जाएगा ,तो कोई कर्ज की परेशानी। प्रदेश में बेहतर बीज-खाद के अलावा 80 फीसदी जमीन बारिश पर निर्भर रहती है। वहीं 86 फीसदी किसान छोटे और मझौले हैं। खैर,चुनावों में इस बार किसानों के मसले कम ही सुनाई पड़े हैं। ..पर नेताओं ने वादे भी किए हैं। किसान इन्हीं वादों  में से अपनी बेहतरी का विकल्प चुनेंगे। बहरहाल ‘अपनी माटी’ के जरिए प्रदेश के अग्रणी मीडिया ग्रुप की किसान-बागबानों से अपील है कि वे सभी मतदान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लें।

– डेस्क रिसर्च

माटी के लाल

जीते का खीरा आर्गेनिक

रणजीत सिंह फोनः 9805392590

ठानपुरी पंचायत के रणजीत सिंह  ने आर्गेनिक खेती से बंपर खीरे की फसल तैयार की है। उन्होंने बताया कि हम आर्गेनिक खेती करते हैं। और आर्गेनिक खेती के लिए हमारी मदद कृषि विशेषज्ञ विवेक सूद कच्छयारी ने की है। इनकी मदद से हमने आर्गेनिक खेती से कई फसलें तैयार की हैं।

टिप्स : मेरा सभी किसान भाईयों से अनुरोध है, वे भी अपने बागानों  में आर्गेनिक खेती का प्रयोग करें। 

– पूजा चोपड़ा

शिमला-सोलन में कहीं खेत में न सड़ जाए गेहूं

मौमस की मार अब शिमला और सोलन-सिरमौर जिला के किसानों की गेहूं की फसलों को नुकसान पहुंचा रही है। शिमला जिला के जिन क्षेत्रों में गेहूं की फसलों की कटाई कर रखी है, उसकी थ्रेसिंग अभी तक फार्मर नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में किसानों ने गेहूं की फसल को काट कर उसे खेतों में ही रखा है। बार-बार मौसम में हो रहे परिवर्तन और बारिश व ओलावृष्टि की वजह से काफी नुकसान हो रहा है। जिला के मशोबरा, रामपुर, चौपाल व बसंतपुर क्षेत्र में सबसे ज्यादा किसान गेहूं की फसलों को उगाते हैं।  हैरत तो यह है कि शिमला जिला के 50 फीसदी किसान गेहूं की फसलों की उगाई करते हैं। किसानों की मानें तो इस मौसम में गेहूं को भिगोने से बचाने के लिए अंदर बाहर करने से भी खासा नुकसान उन्हें हो रहा है। बता दें कि मैदानी क्षेत्रों में अधिकतर किसानों ने थ्रेसिंग का कार्य पूरा कर दिया है। हालांकि सोलन, सिरमौर के कुछ एक ऐसे किसान होंगे, जो किन्हीं कारणों से थ्रेसिंग नहीं करवा पा रहे हैं। ऐसे में इन दोनों जिलों के किसान भी काफी परेशान हैं। फिलहाल यह तो साफ है कि अब गेहूं की थे्रसिंग किसान तभी करवा पाएंगे जब मौसम साफ रहेगा।

– सिटी रिपोर्ट

चैरी के बाद बादाम, खुमानी भी बाजार में

चैरी के बाद बादाम व खुमानी ने मार्किट में दस्तक  दे दी है। मौजूदा सीजन की फसलें मार्किट में पहुचंने से मंडियों मे भी चहल-पहल आरंभ हो गई है। वहीं मंडियों में नई फसल के बागबानों के लिए अच्छे दाम मिलने से बागबानों के चेहरे भी खिल गए हैं। बुधवार को शिमला ढली फल मंडी में ऊपरी शिमला के निचले क्षेत्रों से बादाम व खुमानी के बाक्स पहुंचे हैं। नई फसल  के यह बाक्स जिला शिमला रामपुर के निरसू व करसोग से आए हैं। जिसके शुरुआत में ही बागबानों को अच्छे दाम मिल रहे हैं। जानकारी के तहत फल मंडी में खुमानी के दो किलो का बाक्स 220 रुपए के हिसाब से बिका। इसके अलावा बादाम के भी बागबानों अच्छे दाम मिल रहे हैं। मार्किट में चैरी की भी धूम है। खासतौर पर ब्लैक चैरी के बागबानों को बेहतर दाम मिल रहे हैं।  जिला शिमला के निचले क्षेत्रों से स्टोन फ्रूट की फसले मार्किट में पहुंचते ही मौजूदा सीजन का आगाज हो गया है। इसके ऊंचाई वाले क्षेत्रों से भी स्टोन फ्रूट की फसल मार्किट में पहुंचनी शुरू हो जाएगी। जिला शिमला के निचले क्षेत्रों से जून माह की 20 तारिक के बाद अर्ली वैराइटी का सेब भी मार्किट में पहुंचना शुरू हो जाएगा। इसके साथ ही राज्य में सेब सीजन का आगाज हो जाता है।

जिला शिमला में बपंर फसल की उम्मीदें

जिला शिमला में मौजूदा सीजन के दौरान बपंर फसल की उम्मीदे लगाई जा रही है। हालांकि जिला शिमला में अप्रैल के बाद मई माह के दौरान भी ओलावृष्टि कहर बरपा रही है। मगर इसके बावजूद भी जिला शिमला बीते वर्ष के मुकावले अधिक फसल होने की उम्मीदे लगाई जा रही है।

नौहराधार में फिर तैयार होंगी सेब की धांसू किस्में

उद्यान विभाग नौहराधार द्वारा वर्षों पुराने सेब के पौधों का जीर्णोंद्वार करके नया बागीचा तैयार करने की अच्छी पहल शुरू की गई। उद्यान विभाग नौहराधार व इसके साथ ही अखरोट फार्म में दर्जनों बीघा जमीन मौजूद है और इसमें कई वर्षों से पुराने सेब के पौधे रायल, गोल्डन, रेड गोल्डन की किस्में थी जो कि अब पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी। अब विभाग ने नई किस्म के पौधे लगाकर इन बागीचों को नया रूप दे दिया है। उद्यान विभाग नौहराधार में विभाग ने सुपर चीफ, जेरोमाइन, गालाशिको, रेडलोकस, गेलगाला आदि नई किस्मों के सेब पौधे लगाए गए हैं, जिससे अखरोट फार्म के पास 200 पौधे व नौहराधार उद्यान विभाग में 1200 लगा दिए हैं। करीब एक हेक्टेयर जमीन पर पुराने पौधों को उखाड़ कर नए तरीके से ट्रेंच बनाकर गड्ढे बनाकर पौधे लगाए हैं जो विभाग द्वारा इस क्षेत्र में अच्छी पहल हो गई है। विभाग ने रोपण के तुरंत बाद मलचिंग की गई। एसएमएस उद्यान विभाग राजगढ़ उजागर सिंह तोमर ने बताया कि उद्यान विभाग नौहराधार, चाड़ना, अंधेरी में जो विभाग है वहां पर पौधे पुराने हो चुके थे। बागीचे की आयु खत्म थी। अब विभाग ने जीर्णोंदार करके इन क्षेत्रों में नई किस्मों के पौधे लगाने शुरू कर दिए हैं और अभी नौहराधार में करीब चार हेक्टेयर पर और लगाए जाने हैं।

– संजीव ठाकुर, नौहराधार

अद्भुत लसोड़ा

मंजू लता सिसोदिया

सहायक प्राध्यापक वनस्पति

विज्ञान, एमएलएसएम कालेज सुंदरनगर एवं भूतपूर्व सहायक प्राध्यापक वनस्पाति विज्ञान केंद्रीय विश्वविद्यालय वाराणासी

लसोड़ा एक वृक्ष है, जो कि भारत एवं विश्व के अनेक भागों में पाया जाता है। इसे अनेक नामों से जाना जाता है। जैसे कि गोंदी, निसोरा, लसुड़ा, रेतु इत्यादि। इसका वानस्पातिक नाम कार्डियां भाइकिसा है। इसका पेड़ बहुत बड़ा होता है। युनानी चिकित्सा पद्धति में इसका  प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। यह पूरा पौधा बहुत ही गुणकारी है। इसके पत्ते और फल खाने योग्य होते हैं इसका पेड़ लगभग 30-40 फुट ऊंचा होता है। इसके कच्चे फलों की सब्जी और आचार भी बनाया जाता है। पके हुए लसोड़े मीठे होते हैं। और इसके अंदर गोंद की तरह चिकना और मीठा रस होता है। भारत में कुछ राज्यों में इसके पत्तों का उपयोग पान की जगह भी किया जाता है। इसमें पान की तरह स्वाद होता है।

लसोड़ा अद्भुत गुणों से भरपूर है :

इसके फलों का स्वभाव शीतल होता है, यह मीठा कसैला, कृमि नाशक, कफ निकालने वाला पाचन में सहायक, जलन को दूर करने वाला और  शरीर  में उत्पन्न होने वाले अनेक प्रकार के विषमत पदार्थों का नाश करता है। लसोड़े की छाल को उबालकर इसका काढ़ा कफ, गले के रोगों , दांतों का दर्द, मसूड़ों की सुजन और हैजा (कालरा) को दूर करने में सहायक है और मुंह के छालों से छुटकारा दिलाता है। इसकी छालों को पीसकर इसका लेप आखों पर लगाने से आंखों को ठंडक मिलती है। लसोड़े के कच्चे फलों को उबालकर उनके अंदर के बीज को बाहर निकाल दिया जाता है। और इसका आचार और सब्जी बनाई जाती है। इस पौधे की लकड़ी भी बहुत चिकनी और मजबूत होती है। इसका उपयोग इमारती लकड़ी के रूप में भी किया जाता है।

बारिश ने पहाड़ों  पर किया  प्रहार, मैदान पर बरसाया प्यार

हिमाचल भर में हो रही बारिश और तेज तूफान ने किसान-बागबानों के सारे समीकरण बदल दिए हैं। ताजा बारिश से अच्छा और बुरा दोनों तरह का गणित बना है। मैदानों में गेहूं थ्रेशिंग हो गई है। वहां हो रही बारिश भिंडी, करेला, घीया, मिर्च आदि नकदी फसलों के लिए संजीवनी का काम कर रही है,वहीं पहाड़ी इलाकों में बारिश कहर से कम नहीं। चंबा जिला के सलूणी की भांदल घाटी में ओलों और बारिश ने  खेतों में बीजी मक्की तबाह कर दी है, जबकि मटर को भी नुकसान पहुंचा है। इसी तरह सोलन-शिमला और सिरमौर के ऊंचाई वाले इलाकों में गेहूं खेतों में सड़ने की कगार पर आ गई है। इसी तरह रोहड़ू, ठियोग और मतियाना में भी ओलों ने सेब को बर्बाद कर दिया है। उधर मौसम विभाग का दावा है कि 20 के बाद मौसम साफ हो जाएगा।

 -टेकचंद वर्मा, शिमला

किसान बागबानों के सवाल

  1. इस मौसम में किन- किन फसलों की बुआई करें?

– पवन कुमार, मंडी

  1. टमाटर में पत्ता धब्बा रोग के लिए कौन सी दवाई का छिड़काव करें? – जितेंद्र, चंबा

 आप सवाल करो, मिलेगा हर जवाब

आप हमें व्हाट्सऐप पर खेती-बागबानी से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी भेज सकते हैं। किसान-बागबानों के अलावा अगर आप पावर टिल्लर-वीडर विक्रेता हैं या फिर बीज विक्रेता हैं,तो हमसे किसी भी तरह की समस्या शेयर कर सकते हैं।  आपके पास नर्सरी या बागीचा है,तो उससे जुड़ी हर सफलता या समस्या हमसे साझा करें। यही नहीं, कृषि विभाग और सरकार से किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा तो हमें नीचे दिए नंबरों पर मैसेज और फोन करके बताएं। आपकी हर बात को सरकार और लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।

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