सुबह की धूप  – कविता

By: May 26th, 2019 12:03 am

निकल आई है

सुबह की धूप

नरम, नाजुक, भोली सी, प्यारी सी

किसी मेमने जैसी

सुबह की धूप उतर रही है

हौले-हौले, शांत भाव से

आंगन में, खिड़कियों के पास

घर की छतों पर

पेड़ों की टहनियों पर

ओस से नहाए गुलाबों पर

खेल रही है खेल

शिशुओं की नींद से

कर रही है दान सबको

अपनी तपिश, ऊर्जा, आभा,

सुबह की धूप।

            —हंसराज भारती, बसंतपुर, सरकाघाट


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App