हफ्ते का खास दिन

By: May 1st, 2019 12:04 am

मन्ना डे

जन्म दिवस 1 मई

जन्म नाम : प्रबोध चंद्र डे

जन्म : 1 मई 1919

कलकत्ता, ब्रिटिश भारत

मृत्यु : 24 अक्तूबर, 2013

मन्ना डे यानी  मन्ना दा फिल्म जगत के एक सुप्रसिद्ध भारतीय पार्श्व गायक थे। उनका वास्तविक नाम प्रबोध चंद्र डे था। मन्ना दा का जन्म 1 मई, 1919 को हुआ था। उन्होंने सन् 1942 में फिल्म तमन्ना से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की और 1942 से 2013 तक लगभग 3000 से अधिक गानों को अपनी आवाज दी।

मुख्यतः हिंदी एवं बंगाली फिल्मी गानों के अलावा उन्होंने अन्य भारतीय भाषाओं में भी अपने कुछ गीत रिकार्ड करवाए। भारत सरकार ने उन्हें 1971 में पद्मश्री, 2005 में पद्म भूषण एवं 2007 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया।

मन्ना डे ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा केसी डे से हासिल की। उनके बचपन के दिनों का एक दिलचस्प वाकया है। उस्ताद बादल खान और मन्ना डे के चाचा एक बार साथ-साथ रियाज कर रहे थे। तभी बादल खान ने मन्ना डे की आवाज सुनी और उनके चाचा से पूछा यह कौन गा रहा है।

जब मन्ना डे को बुलाया गया तो उन्होंने उस्ताद से कहा बस ऐसे ही गा लेता हूं।  इसके बाद वह अपने चाचा से संगीत की शिक्षा लेने लगे। मन्ना डे 40 के दशक में अपने चाचा के साथ संगीत के क्षेत्र में अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई आ गए और फिर यहीं के होकर रह गए। 1943 में फिल्म तमन्ना में बतौर प्लेबैक सिंगर उन्हें सुरैया के साथ गाने का मौका मिला। हालांकि इससे पहले वह फिल्म राम राज्य में कोरस के रूप में गा चुके थे। दिलचस्प बात है कि यही एक एकमात्र फिल्म थी, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था।

मन्ना डे केवल शब्दों को ही नहीं गाते थे, बल्कि अपने गायन से शब्द के पीछे छिपे भाव को भी खूबसूरती से सामने लाते थे।  आवारा में उनके द्वारा गया गीत ‘तेरे बिना चांद ये चादनी’  बेहद लोकप्रिय हुआ। इसके बाद उन्हें बड़े बैनर की फिल्मों में अवसर मिलने लगे।

 ‘प्यार हुआ इकरार हुआ। श्री 420 ये रात भीगी-भीगी। चोरी-चोरी, जहां मैं जाती हूं वहीं चले आते हो।

 चोरी-चोरी, मुड़-मुड़ के न देख मुड़-मुड़ के’  ‘ 420’  जैसे अनेक सफल गीतों में उन्होंने अपनी आवाज दी। मन्ना डे को कठिन गीत गाने का शौक था।

 ‘लागा चुनरी में दाग, छुपाऊं कैसे पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई! सुर न सजे क्या गाऊं मै ‘जिंदगी कैसी है पहेली हाय, जैसे गीत भी लोगों की जुबान पर आज भी चढ़े हुए हैं।

 किसी भी निर्माता को यदि अपनी फिल्म में शास्त्रीय गीत गवाना होता था, तो वह सिर्फ  मन्ना डे को ही साइन करता था। 24 अक्तूबर, 2013 को मन्ना डे हम सब सक विदा हो गए।


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