अभियानों का रिजल्ट जीरो, केस बढ़े

By: Jun 27th, 2019 12:10 am

ऊना—विश्व अंतरराष्ट्रीय नशा निवारण दिवस पर रैलियों व नारों से जागरूकता अभियान तो चलाए जाते हैं पर क्या इन अभियानों के कोई सकारात्मक परिणाम भी सामने आते हैं, शायद नहीं। पुलिस विभाग से मिले नशे के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि स्कूलों, कालेजों, पंचायतों व जिला प्रशासन द्वारा नशे का खात्मा करने के लिए चलाए गए अभियान सभी फेल होकर रह गए हैं।  नशा धीरे-धीरे पहाड़ की जवानी को निगल रहा है, जिस पर लगाम पाने के लिए सरकार व प्रशासन को जल्द ही कड़े कदम उठाने होंगे। पिछले दस सालों पर एनडीपीएस एक्ट के मामलों पर अगर नजर दौड़ाई जो तो वर्ष 2010 में 24 केस दर्ज हुए थे और 33 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। गत वर्ष 2018 में एनडीपीएस एक्ट के 106 केस दर्ज हुए थे, जिनमें 138 आरोपियों को पुलिस ने सलाखों के पीछे डाला था। जबकि वर्ष 2019 में 25 जून तक नशे के 35 केस दर्ज हो गए हैं और 50 आरोपियों को अरेस्ट किया गया है। केवल एक या दो दिन फॉरमेलिटी के लिए जिला प्रशासन व सामाजिक संस्थाएं नशे के खिलाफ सड़कों पर उतरती है और नशे के प्रति जागरूक करने के लिए नारेबाजी, भाषण व पेंटिंग प्रतियोगिताएं करवा इतिश्री कर ली जाती है, लेकिन क्या सच में इन अभियानों से युवा वर्ग नशे के प्रति जागरूक हो रहा है। क्या ऐसे अभियानों से प्रेरित होकर नशे के आदि युवाओं ने नशा छोड़ा है। अगर पुलिस विभाग के उक्त दिए आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो परिणाम बिलकुल इससे उलट हैं। पुलिस विभाग के रिकार्ड में साल दर साल नशे के आंकड़ों में वृद्धि हो रही है। प्रदेश में नशे की ज्यादातर खेप बाहरी राज्यों से पहंुच रही है। इस नशे को प्रदेश की सीमा में आने से कैसे रोका जाए इस तरह की कोई प्लानिंग पुलिस या जिला प्रशासन के पास नहीं है। कारण चाहे जो भी रहें हों जिला में नशा माफिया ने अपने पांव जरूर पसारे हैं और सरकारें व पुलिस प्रशासन इसे रोकने में विफल हुई हैं। पड़ोसी राज्य पंजाब से नशे की खेप हिमाचल में पहंुच रही है। चिट्टे जैसे जानलेवा नशे का सेवन करना युवाओं का प्रचलन बन गया है। इसकी ओवरडोज से जिला ऊना में ही दर्जनों युवा काल का ग्रास बने हैं। वर्ष 2014 में चिट्टे ने ऊना जिला में दस्तक दी थी और अब ऊना जिला इसका गढ़ बनता जा रहा है। उसेे रोकने में पुलिस प्रशासन पूरी तरह से नाकाम है। वहीं, बुद्धिजीवी वर्ग युवाओ में नशे की लत लगने का एक कारण बेरोजगारी को भी मानते हैं। रोजगार न मिलने पर युवा पहले नशे का सेवन करते हैं और फिर बाद में नशे की तस्करी में भी जुट जाते हैं। नशे की छोटी से डोज एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहंुचाने के हजारों रुपए दिए जाते हैं।


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