आजादी का अलख जगाने वाले बेटे के निधन से गरली गमगीन

गरली —धरोहर गांव गरली में 31 मार्च, 1924 को  जन्मे वयोवृद्ध वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पंडित सुशील रत्न भले ही वह अपने परिवार सहित विगत लंबे अरसे से ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र में सेटल हो गए हो, लेकिन पंडित सुशील रतन ने  प्रदेश व केंद्र कांग्रेस सरकार के बडे़-बडे़ औहदे पर रहने के बाद भी अपने पैतृक गांव गरली को कभी नहीं भुलाया। प्रदेश कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधिमंडल करने के बावजूद भी गरली के विकास कार्यों पर  श्री रतन जी का लाखों रुपए का योगदान रहा है। स्थानीय ग्रामीणों की बात मानें  कि विगत करीब 13 वर्ष पहले की बात की स्वतंत्रता सेनानी कल्याण बोर्ड के उपाध्यक्ष बनने के बाद वह पहली बार जब अपने पैतृक गांव गरली आए और जब उनकी निगाह अचानक तालाब रोड बाजार सड़क किनारे बने राजकीय प्राथमिक पाठशाला पर गई, तो वहां शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों की सुरक्षा हेतु बचाव डंगा दीवार न होने के कारण उन्होंने उसी वक्त अपनी निधि से करीब डेढ़ लाख रुपए देकर उक्त काम को मुक्कमल करवाया, वहीं इतना ही नहीं, गरली गर्ल्ज स्कूल के पुराने भवन की नाजुक स्थित को देखते हुए पंडित सुशील रतन ने उसके रखरखाव पर उन्होंने नौ लाख रुपए की घोषणा करके यहां  स्थायी निवासी होने का फर्ज निभाया था। कहा जा रहा है, जब भी व्योवृद्ध कांग्रेसी नेता पंडित सुशील रत्न को जब भी वक्त मिलता था, तो वह स्थानीय गरलीवासियों को कोई सूचना दिए, बगैर ही यहांं पहुंच जाते थे। ज्यों ही मंगलवार सुबह पंडित सुशील रतन के निधन की खबर गरली में पता चली तो पूरा गांव शौक ग्रस्त में डूब गया और हर कोई सन्न हो गया कि अचानक सुशील रत्न को किया हो गया।