आतंक, संवाद साथ-साथ नहीं

By: Jun 15th, 2019 12:05 am

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के दौरान भारत-पाक के प्रधानमंत्री मौजूद थे, लेकिन न तो वे रू-ब-रू हुए, नजरें तक नहीं मिलाईं, न ही आपस में हाथ मिलाए और बातचीत करना तो बहुत दूर की बात थी। प्रधानमंत्री मोदी और वजीर-ए-आजम इमरान खान एक ही समय में रात्रि भोज की मेज तक पहुंचे। वे आपस में तीन सीट दूर ही बैठे। वे गाला कल्चरल नाइट कार्यक्रम में भी आसपास ही बैठे, लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव इस कद्र पसरा रहा कि कोई संवाद संभव ही नहीं था। कश्मीर के अनंतनाग में आतंकी हमला और सीआरपीएफ के पांच जवानों की ‘शहादत’ के बाद प्रधानमंत्री मोदी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ बातचीत कैसे कर सकते थे। भारत सरकार के तौर पर हम अब भी इसी रुख पर अडिग हैं कि आतंकवाद के साथ बातचीत संभव नहीं है। यह रुख 2008 के 26/11 मुंबई आतंकी हमले के बाद से कायम है, लेकिन पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले और पुलवामा में 44 जवानों की शहादत के बाद तो यह रुख जिद में तबदील हो गया है। किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में आयोजित एससीओ सम्मेलन का पहला बुनियादी उद्देश्य यह है कि एक-दूसरे के विदेशी मामलों में दखल नहीं देना है, लेकिन पाकपरस्त और पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद न केवल भारत के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप है, बल्कि देश को खंडित करने की भी साजिशें पाकिस्तान के भीतर तैयार की जाती रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय संवाद के दौरान साफ कह दिया कि पाकिस्तान से बातचीत करने का माहौल नहीं है। पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। वह सुधरने को तैयार नहीं है, तो फिर बातचीत कैसे संभव है? चीन को ब्रीफ करना भारत की कूटनीति भी है, क्योंकि चीन पाकिस्तान का ‘आका’ है। दिलचस्प यह है कि खुद इमरान खान ने माना है कि भारत के साथ उनके देश के संबंध सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई है कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी कश्मीर समेत सभी मतभेदों को हल करने के लिए अपने प्रचंड जनादेश का इस्तेमाल करेंगे। बहरहाल एससीओ का बुनियादी एजेंडा यह भी है कि सभी सदस्य देश आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक लड़ाई लड़ते रहेंगे। मादक पदार्थों को एक-दूसरे के देश में नहीं जाने देंगे, लेकिन पाकिस्तान इस एजेंडे के विपरीत ही हरकतें करता रहा है, लिहाजा भारत समेत कुछ देशों के राजनयिक प्रयास हो सकते हैं कि पाकिस्तान को एससीओ से ही बाहर किया जाए। इस मुद्दे पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व नेताओं को ब्रीफ किया होगा कि मसूद अजहर को ‘वैश्विक आतंकी’ घोषित करने के बावजूद वह और हाफिज सईद जैसे आतंकी सरगना अब भी पाकिस्तान में सक्रिय हैं, लेकिन अब अनंतनाग के हमले से एक पुराना चेहरा सामने किया गया है- मुश्ताक जरगर। अल उमर मुजाहिदीन उसी का आतंकी संगठन है, लेकिन बीते कुछ सालों के दौरान निष्क्रिय रहा था। यही वह आतंकी है, जिसने 1989 में तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी रुबिया का अपहरण कराया था। उस पर 40 से ज्यादा हत्याओं के केस हैं। 1999 में कंधार विमान अपहरण के बदले में जिन आतंकियों को जेल से रिहा करना पड़ा था, मसूद अजहर और जरगर उन्हीं में शामिल थे। सवाल यह है कि कंगाली, बर्बादी और दिवालिएपन की कगार पर मौजूद पाकिस्तान इन आतंकियों को क्यों पालता-पोसता रहा है? यदि भारत में खून-खराबा कर अस्थिरता फैलाना ही पाकिस्तान का अघोषित मकसद है, तो फिर वजीर-ए-आजम इमरान खान बार-बार चिट्ठी लिखकर प्रधानमंत्री मोदी से गुहार क्यों करते हैं कि हमें बातचीत करनी चाहिए? किससे और क्या बातचीत की जाए? अभी तो एफएटीएफ की बैठक में फैसला होना है कि आतंकवाद के कारण ग्रे लिस्ट में मौजूद पाकिस्तान को अंततः काली सूची में डाला जाएगा या नहीं। यदि पाकिस्तान काली सूची में आ जाता है, तो उसे कोई भी देश और अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘आर्थिक मदद’ नहीं दे सकेंगी। पाकिस्तान की कंगाली ऐसी है कि वह दिन दूर नहीं, जब उसके नागरिक कटोरा लेकर भीख मांगने लगेंगे। लिहाजा आतंकवाद पर पाकिस्तान को कुछ संजीदा होना चाहिए और अपने देश के आम आदमी की चिंता करनी चाहिए। बहरहाल अभी तो कई और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत-पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों को जाना है। कब तक यह जलालत पाकिस्तान झेलता रहेगा कि वह उन मंचों पर अलग-थलग महसूस करे?


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