आत्म पुराण

By: Jun 22nd, 2019 12:05 am

उनके लिए अपना शरीर और पशु एक जैसा ही जान पड़ता है। चाहे कोई उनका अति सम्मान करके पूजा करे और चाहे उनको गालियां देकर मारे, बांधे या अन्य प्रकार से अपमानित करे, पर वे किसी अवस्था में हर्ष या शोक नहीं मानते। हे शिष्य! गर्भ उपनिषद में इस शरीर की जो व्यवस्था बतलाई है, उसे तू ध्यानपूर्वक श्रवण कर। उसका कथन है कि ब्रह्मा से लेकर कुत्ता तक जितने भी शरीर देखने में आते हैं, वे सब पंचभूतों से समस्त ज्ञानेंद्रिय और कर्मेंद्रिय उत्पन्न होती हैं। इसी के ज्ञान शक्ति वाले अंतःकरण का प्रादुर्भाव होता है जो  मन, बुद्धि,  चित्त और अहंकार इन चार वेद वाला है। इन्हीं सबसे मिलकर सूक्ष्म और स्थूल शरीर बनते हैं, ये शरीर चार तरह के बताए गए हैं जरायुज, अंडज,  स्वेदज , उदभिञ्ज। इनमें से उदभिञ्ज शरीर दो प्रकार के होते हैं-एक पाप कर्मजन्य और दूसरे पुण्यकर्मजन्य।

इनमें से जो वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर हैं, वे पाप कर्मजन्य है, क्योंकि वे नरक का दंड पाने वाले यम यातना शरीर है और जो वृक्ष तथा लता स्वर्ग में होती है, वे देवता रूप हैं, इसलिए उनको पुण्य कर्मजन्य कहा गया है। हे शिष्य! इस स्थूल शरीर में शुक्ल (श्वेत) रक्त (लाल) कृष्ण (काला), धूम्र, पीते, कपिल, पांडुर, यह सात रूप अथवा वर्ण होते हैं, इनमें से धुआं जैसे रंग का नाम धूम्र है और कपिला गौ के समान रंग का कपिल कहा गया है। कपिल रंग में जब श्वेत मिल जाता है, तब उसे पांडुर करते हैं। इस शरीर में छह प्रकार के स्पर्श होते हैं कोमल, कठिन, मध्यम, उष्ण, शीत, अनुष्णाशीत। जो स्पर्श न कोमल हो न कठिन हो उसे मध्यम कहा गया है। इसी प्रकार जो स्पर्श उष्ण भी न हो और शीत भी न हो उसे अनुष्णाशीत कहा गया है। इस शरीर में दो प्रकार के गंध रहते हैं सुगंध और दुर्गंध, इनमें से सुगंध तो पुण्यवान योगियों के शरीरों से प्रकट होती है। शेष सब जीव तो दुर्गंध का ही अनुभव करते हैं। इस शरीर में छह प्रकार के रस भी हैं।  कटु, तीक्ष्ण, कषाय क्षार, अमल, छह मधुर। फिर इस शरीर में दो प्रकार के शब्द बतलाए गए हैं। एक ध्वनि रूप और दूसरे वर्ण रूप। ध्वनि रूप के सात भेद तो ये हैं। निषाद, ऋषभ ,गंगाधर, 4. षड्ज, मध्यम, धैवत, पंचम। सातों स्वर का परिचय नारद मुनि ने इस प्रकार दिया है।

षड्जरौति मयूरस्त गावोनदंन्चिर्षभ।

अजाविकौचणांधारं कौचोनदति मध्यम।।

पुष्पसाधारणे काले कोकिलौरौति पञ्चमं।

अश्वस्तु धैवतंरौति निषादं रौति कुंजरः।

अर्थात-‘मोर पक्षी षडजं स्वर का उच्चारण करता है और गायों का स्वर ऋषभ कहा जाता है। बकरी और भेड़ गांधार स्वर का उच्चारण करती हैं और क्रौंच पक्षी का शब्द मध्यम कहा

गया है। कोयल की बोली पंचम स्वर मानी जाती है और अश्व धैवत स्वर का उच्चारण करता है। हाथी का स्वर निषाद कहा जाता है।’ इन्हीं सात स्वरों में यह छह राग गाए जाते हैं श्रीराग, बसंत, पंचम, भैरव, मेघनाद, नट नारायण। इनमें से प्रत्येक राग की छह रागनियां कही गई हैं, जो सब मिलकर 36 हो जाती है। इन्हीं में गौड़ी, द्रविणी, मालवं कौशिका, गन्धारी, देशाख्या, भैरवी, गुर्जरी, कर्णाटकी आदि का उल्लेख पाया जाता है।


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